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गुजरात चुनाव: विपक्ष के सबसे बड़े मुद्दे नोटबंदी और जीएसटी की निकली हवा?

कांग्रेस ने प्रचार के शुरुआत से ही दावा किया कि नोटबंदी से किसान, मजदूर और छोटे कारोबारी परेशान हुए और इससे देश की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा. इसके साथ ही 1 जुलाई से लागू जीएसटी को राज्य में मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस ने छोटे और मध्यम कारोबारियों को रिझाने की कोशिश की...

नोटबंदी और जीएसटी नहीं बन सका मुद्दा नोटबंदी और जीएसटी नहीं बन सका मुद्दा
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 18 दिसंबर 2017,
  • अपडेटेड 1:36 PM IST

गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 के नतीजों से एक बार फिर साफ हो गया कि केन्द्र सरकार द्वारा बीते एक साल के दौरान आर्थिक सुधारों की दिशा में लिए गए कड़े कदम चुनाव का मुद्दा नहीं बन पाए. इन दोनों राज्यों में जहां विपक्ष ने नोटबंदी और जीएसटी को मुद्दा बनाते हुए केन्द्र में सत्तारूढ़ बीजेपी को घेरने की कोशिश की, वहीं चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया है कि विपक्ष के इस सबसे बड़े दांव की हवा पूरी तरह से निकल चुकी है.

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खासतौर पर गुजरात चुनावों के प्रचार का केन्द्र नोटबंदी और जीएसटी को माना जा रहा था. कांग्रेस ने प्रचार के शुरुआत से ही दावा किया कि नोटबंदी से किसान, मजदूर और छोटे कारोबारी परेशान हुए और इससे देश की अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा. इसके साथ ही 1 जुलाई से लागू जीएसटी को राज्य में मुद्दा बनाते हुए कांग्रेस ने छोटे और मध्यम कारोबारियों को रिझाने की कोशिश की. कांग्रेस की यह कोशिश एक हद तक कारगर भी दिखी जब गुजरात के कई औद्योगिक इलाकों में कारोबारी इसके विरोध में उतर आए.

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इसके जवाब में केन्द्र सरकार ने जीएसटी में उन उत्पादों पर बड़ी रियायत का ऐलान किया जिसका सीधा ताल्लुक गुजरात के कारोबार से है. जीएसटी काउंसिल ने 7 अक्टूबर को 27 उत्पादों के टैक्स दर में कटौती का ऐलान किया. इन उत्पादों में सूरत के कपड़ा उद्योग को राहत पहुंचाने और नायलॉन और पॉलिस्टर समेत खाखरा और नमकीन जैसे खाद्य उत्पादों को राहत दी गई जिससे विरोध का सुर कमजोर पड़ जाए. हालांकि इन कटौती के बावजूद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को उम्मीद जगी रही कि जीएसटी से परेशान कारोबारी बीजेपी को सबक सिखाने के लिए तैयार है, लिहाजा जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स का तमगा दे दिया.

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मोदी सरकार के तीन साल

देश के ज्यादातर आर्थिक आंकड़े दिखा रहे हैं कि मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पहले तीन साल के कार्यकाल के दौरान ज्यादातर आर्थिक मामलों के जानकारों का मानना रहा कि केन्द्र सरकार ने अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए कई नीतियों में फेरबदल किया है. इसके चलते जहां पहले दो साल के कार्यकाल के दौरान आर्थिक आंकड़े कमजोर रहे लेकिन तीसरे साल से मोदी सरकार की नीतियों का असर आंकड़ों में दिखाई देने लगा है.

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इन तीन साल के आंकड़ों की तुलना में जब देश में जुलाई 2017 में जीएसटी लागू किया गया तो दोनों राज्य हिमाचल और गुजरात में जीएसटी का दबाव मुद्दा नहीं बन सका. भले विपक्ष ने जीएसटी को देश की अर्थव्यवस्था को पीछे ढकेलने वाला कदम करार दिया लेकिने इन राज्यों के वोटरों ने आर्थिक सुधार को अपने वोट का आधार नहीं बनाया.

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