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गुजरात चुनाव: आनंदीबेन पटेल को टिकट न देने के ये हैं मायने

बीजेपी नेतृत्व के इस फैसले को समझा जाए तो एक तरफ गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की याद आती है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी की तरफ से ये साबित करने की कोशिश नजर आती है कि आरक्षण के लिए आंदोलनरत पाटीदारों के विरोध के बावजूद वो मजबूत स्थिति में है.

गुजरात की पूर्व सीएम आनंदीबेन पटेल गुजरात की पूर्व सीएम आनंदीबेन पटेल
जावेद अख़्तर
  • नई दिल्ली,
  • 27 नवंबर 2017,
  • अपडेटेड 12:41 PM IST

गुजरात विधानसभा चुनाव में टिकट बंटवारे पर विरोध और बगावत के चलते भारतीय जनता पार्टी को नामांकन के आखिरी दिन उम्मीदावारों की अंतिम लिस्ट जारी करनी पड़ी.

इस लिस्ट में 34 प्रत्याशियों की घोषणा की गई, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल का नाम कहीं नजर नहीं आया. वो जिस घाटलोडिया सीट से विधायक थीं, वहां से भूपेंद्र पटेल को टिकट दे दिया गया. जिसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि बीजेपी के उम्मीदवारों की लिस्ट से सिटिंग विधायक और पूर्व सीएम का पत्ता क्यों काटा गया?

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बीजेपी नेतृत्व के इस फैसले को समझा जाए तो एक तरफ गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की याद आती है, वहीं दूसरी ओर बीजेपी की तरफ से ये साबित करने की कोशिश नजर आती है कि आरक्षण के लिए आंदोलनरत पाटीदारों के विरोध के बावजूद वो मजबूत स्थिति में है.

केशुभाई को 2002 में नहीं मिला था टिकट

पाटीदारों के आरक्षण आंदोलन पर जब गुजरात में बवाल के बाद कर्फ्यू लगा तो पूरे देश में इस सन्नाटे पर चर्चा हुई. पाटीदारों का आंदोलन हिंसा में बदल गया. गोलीबारी, तोड़फोड़ और आगजनी देखने को मिली. मौत हुईं, लोग घायल हुए, नौजवान जेल गए. ये सब तब हुआ जब सूबे की कमान आनंदीबेन पटेल के हाथों में थी. लेकिन कुछ वक्त बाद ही उन्हें सीएम की गद्दी छोड़नी पड़ी.

2001 में जब गुजरात पर भूकंप का कहर टूटा तो तत्कालीन मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल की गद्दी चली गई. केशुभाई ने सेहत का हवाला देते हुए अपना इस्तीफा दे दिया. जबकि उन पर सरकार चलाने में विफल होने, सत्ता के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार जैसे आरोप भी चर्चा का विषय रहे. उनकी जगह नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी दी गई. मगर, बात सिर्फ सीएम पद जाने तक ही सीमित नहीं रही, 2002 में जब विधानसभा चुनाव हुए बीजेपी ने उन्हें टिकट भी नहीं दिया.

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वहीं आनंदीबेन पटेल ने अगस्त 2016 में जब सीएम पद से इस्तीफा दिया तो उन्होंने अपने उस फैसले के पीछे उम्र का हवाला दिया. उनके इस्तीफे के बाद अब जब 2017 में सूबे में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं तो उन्हें चुनावी राजनीति से आउट कर दिया गया है. ऐसा तब हुआ है, जब हाल ही में आनंदीबेन ने इस बात के संकेत दिए थे कि अगर पार्टी कहती है तो वह चुनाव लड़ने पर विचार कर सकती हैं.

आजतक से बात करते हुए आनंदीबेन ने कहा था कि अगर पार्टी उन्हें ऐसा प्रस्ताव देती है तो वे इस पर विचार करेंगी. यहां तक कि वो ये भी कह चुकी हैं कि घाटलोडिया सीट हो या कोई और, इस बात का फैसला पार्टी नेतृत्व और प्रतिनिधिमंडल ही करेगा कि कौन कहां से चुनाव लड़ेगा. सोमवार को दिल्ली के अशोका रोड स्थित जिस पार्टी मुख्यालय से अमित शाह पूरे देश की राजनीति पर फैसले लेते हैं, वहां से पार्टी नेतृत्व ने यह तय कर दिया कि आनंदीबेन पटेल घाटलोडिया सीट तो क्या कुल 182 में से किसी भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ेंगी.

2001 में भी बीजेपी ने अपने सबसे कद्दावर पटेल नेता और पूर्व सीएम को चुनावी राजनीति से बेदखल कर दिया, वहीं अब 2017 में ठीक उसी अंदाज गुजरात की वरिष्ठ पेटल नेता और पूर्व सीएम को विधानसभा चुनाव न लड़ाने का फैसला किया गया है.

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पटेलों के बिना भी मजबूती का संदेश

आनंदीबेन को टिकट न मिलने के पीछे उनका 'पटेल' होना भी एक वजह समझा जा रहा है. भले ही आनंदीबेन के कार्यकाल में आरक्षण की मांग कर रहे पटेलों पर पुलिस ने लाठियां बरसाई हों, लेकिन उन्हें टिकट न देना पार्टी की तरफ से एक बड़ा संदेश समझा जा रहा है.

दरअसल, गुजरात में पटेल समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोट रहा है. लेकिन 2015 से हार्दिक पटेल के नेतृत्व में शुरू हुआ पाटीदारों का आंदोलन बीजेपी से दूरी का सबब बनता गया. हालात ये हो गए कि पाटीदार नरेंद्र मोदी और अमित शाह के खिलाफ खुलेआम बोलने लगे. बीजेपी को हराने की चेतावनी देने लगे. यहां तक बीजेपी नेताओं को चुनाव प्रचार के दौरान काले झंडे दिखाने लगे, उनकी सभाओं में कुर्सी फेंकने लगे. अंत में ये हुआ कि पाटीदारों ने कांग्रेस को समर्थन का ऐलान कर दिया.

ऐसे में गुजरात के बदले सियासी समीकरणों को देखते हुए ये संभावना जताई जा रही है, करीब दो दशक से गुजरात की सत्ता पर काबिज बीजेपी को कहीं न कहीं पाटीदारों का विरोध बैकफुट पर ले जा रहा है. कांग्रेस भी पाटीदार और ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर के समर्थन और दलित नेता जिग्नेश मेवाणी के बीजेपी विरोध से खुद को मजबूत स्थिति में आंक रही है. ऐसे में बीजेपी ने अपनी पार्टी की पटेल नेता और पूर्व मुख्यमंत्री को टिकट न देकर अपनी जीत और पटेलों के विरोध के बावजूद अपनी मजबूत स्तिथि को लेकर आश्वस्त होने का संदेश भी देने की कोशिश की है.

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