
गुजरात दंगा न सिर्फ भारतीय राजनीति के इतिहास का एक बदनुमा दाग है, बल्कि देश की एकता को प्रभावित करने वाला एक बड़ा हादसा भी है. सुनवाई पूरी होने के 29 महीने बाद गुजरात हाई कोर्ट आज इस केस पर अपना फैसला सुना सकता है.
पंद्रह साल पहले 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा में 59 लोगों की आग में जलकर मौत हो गई. ये सभी 'कारसेवक' थे, जो अयोध्या से लौट रहे थे.
27 फरवरी की सुबह जैसे ही साबरमती एक्सप्रेस गोधरा रेलवे स्टेशन के पास पहुंची, उसके एक कोच से आग की लपटें उठने लगीं और धुएं का गुबार निकलने लगा. साबरमती ट्रेन के S-6 कोच के अंदर भीषण आग लगी थी. जिससे कोच में मौजूद यात्री उसकी चपेट में आ गए. इनमें से ज्यादातर वो कारसेवक थे, जो राम मंदिर आंदोलन के तहत अयोध्या में एक कार्यक्रम से लौट रहे थे. आग से झुलसकर 59 कारसेवकों की मौत हो गई. जिसने इस घटना को बड़ा राजनीतिक रूप दे दिया और गुजरात के माथे पर एक अमिट दाग लगा दिया.
शाम में मोदी ने बुलाई बैठक
जिस वक्त ये हादसा हुआ, नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे. इस घटना को एक साजिश के तौर पर देखा गया. घटना के बाद शाम में ही मोदी ने बैठक बुलाई. बैठक को लेकर तमाम सवाल उठे. आरोप लगे कि बैठक में 'क्रिया की प्रतिक्रिया' होने की बात सामने आई.
ट्रेन की आग को साजिश माना गया. ट्रेन में भीड़ द्वारा पेट्रोल डालकर आग लगाने की बात गोधरा कांड की जांच कर रहे नानवती आयोग ने भी मानी. मगर, गोधरा कांड के अगले ही दिन मामला अशांत हो गया. 28 फरवरी को गोधरा से कारसेवकों के शव खुले ट्रक में अहमदाबाद लाए गए. ये घटना भी चर्चा का विषय बनी. इन शवों को परिजनों के बजाय विश्व हिंदू परिषद को सौंपा गया. जल्दी ही गोधरा ट्रेन की इस घटना ने गुजरात में दंगों का रूप ले लिया.
एसआईटी की विशेष अदालत ने एक मार्च 2011 को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था जबकि 63 को बरी कर दिया था. इनमें 11 दोषियों को मौत की सजा सुनाई गई जबकि 20 को उम्रकैद की सजा हुई. बाद में उच्च न्यायालय में कई अपील दायर कर दोषसिद्धी को चुनौती दी गई जबकि राज्य सरकार ने 63 लोगों को बरी किए जाने को चुनौती दी है.