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हलफनामा-इंटरनेट बंद होने से रोजगार और अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की इंटरनेट ब्लैकआउट पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 से 2017 के दौरान भारत में 16315 घंटे इंटरनेट पर रोक रही और इससे अर्थव्यवस्ता को 3.04 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा. गुजरात में पाटीदार आंदोलन के वक्त इंटरनेट पर लंबी पाबंदी लगी. तब यानी 2015 में गुजरात में छह बार में 528 घंटे इंटरनेट बंद रहा और इससे 112.96 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ. इसमें भी सबसे ज्यादा नुकसान सूरत और अहमदाबाद को हुआ.

साभराः इंडिया टुडे साभराः इंडिया टुडे
मनीष दीक्षित
  • ,
  • 20 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 5:58 PM IST

2019 में 19 दिसंबर तक देश में 100 बार इंटरनेट बंद हो चुका है जबकि 2014 में 6 बार और 2015 में 14 बार इंटरनेट बंद किया गया. यह जानकारी देने वाली सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर की रिपोर्ट के मुताबिक 2018 में 134 बार इंटरनेट बंद किया गया. इंटरनेट बंद करने की इस कसरत का आर्थिक नुकसान देश और लोगों को उठाना पड़ता है.

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आमतौर पर हिंसा की आशंका, बिगड़ती कानून-व्यवस्था या अफवाहों पर लगाम लगाने के लिए इंटरनेट बंद कराया जाता है. नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ इन दिनों देश के दर्जनों शहरों में इंटरनेट बंद कराया जा रहा है ताकि अफवाहों पर लगाम लगाई जा सके और प्रदर्शनकारियों का जमावड़ा बढ़ने से रोका जा सके. लेकिन इस तरह की पाबंदी का सबसे ज्यादा नुकसान उन आम लोगों को उठाना पड़ता है जिनकी जिंदगी इंटरनेट आधारित बिजनेस पर टिकी होती है जैसे टैक्सी और ट्रैवल ऑपरेटर. 20 दिसंबर को गाजियाबाद में इंटरनेट बंद होने के चलते ओला-उबर जैसी एग्रीगेटर कनेक्टेड टैक्सी चलाने वाले सैकड़ों लोगों को ग्राहक नहीं मिले. इंटरनेट बंद होने के चलते उन्हें चौराहे या कालोनियों में खड़े रहकर सवारी का इंतजार करना पड़ा. इसी तरह अनेक छोटे कारोबारियों को तकलीफ का सामना करना पड़ा. इसी तरह सैकड़ों लोग एटीएम ठप होने से कैश नहीं निकाल सके. बैंकों में भी काम नहीं हो सका. मोटे तौर पर देखा जाए तो ई-कॉमर्स, पर्यटन, आइटी सर्विस, बैंकिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं पर इंटरनेट बंद होने का सबसे बड़ा असर पड़ता है. टेलीकॉम सेक्टरको इसलिए नुकसान होता है क्योंकि उसकी क्षमता का उपयोग नहीं हो पाता है जैसा कि कश्मीर के मामले में दिखता है.

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स्वयंभू गुरु राम रहीम के फैसले के वक्त हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन ने 72 घंटे इंटरनेट बंद कराया था. कश्मीर में आए दिन इंटरनेट बंद होता है लेकिन वहां ज्यादा आर्थिक गतिविधियां न होने के कारण नुकसान भी उतना ज्यादा नहीं होता है. पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को ज्यादा नुकसान होता है.

इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशंस की इंटरनेट ब्लैकआउट पर जारी रिपोर्ट के मुताबिक, 2012 से 2017 के दौरान भारत में 16315 घंटे इंटरनेट पर रोक रही और इससे अर्थव्यवस्ता को 3.04 अरब डॉलर का नुकसान झेलना पड़ा. गुजरात में पाटीदार आंदोलन के वक्त इंटरनेट पर लंबी पाबंदी लगी. तब यानी 2015 में गुजरात में छह बार में 528 घंटे इंटरनेट बंद रहा और इससे 112.96 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ. इसमें भी सबसे ज्यादा नुकसान सूरत और अहमदाबाद को हुआ.

भारत की इंटरनेट इकोनॉमी 2020 तक 250 अरब डॉलर का आंकड़ा छू लेगी जो कि जीडीपी का 7.5 फीसदी होगा. ई कॉमर्स और वित्तीय सेवाएं ही इंटरनेट इकोनॉमी की अगुआई करती हैं. एक सर्वे के मुताबिक भारतीय मोबाइल पर 45 फीसदी वक्त मनोरंजन, 34 फीसदी सर्च और सोशल मीडिया पर संदेश भेजने में और 4 फीसदी शॉपिंग में बिताते हैं. लेकिन कारोबार और उद्योगों के लिए अब इंटरनेट सबसे जरूरी संसाधन बन गया है. इंटरनेट जितना विध्वंस के लिए इस्तेमाल हो रहा है उससे ज्यादा आर्थिक गतिविधियों के लिए हो रहा है. नागरिक प्रदर्शनों के दौरान कानून-व्यवस्था कायम रखना सरकार की जिम्मेदारी है. उसके पास निषेधात्मक कार्रवाई करने के तमाम उपाय हैं. लेकिन सबसे पहले सूचना के प्रसार पर रोक से आम लोगों को, जिनका प्रदर्शन से कोई वास्ता नहीं है, बहुत नुकसान उठाना पड़ता है. उनकी रोजी-रोटी पर संकट आ जाता है. सरकार को कानून-व्यवस्था के लिए चुस्त और प्रभावी सिस्टम बनाना चाहिए जिससे कानून का पालन करने वालों को नुकसान न उठाना पड़े.

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