
हिंदी फिल्म जगत में कुमुद कुमार गांगुली के नाम से लोग भले ही लोग परिचित न हों, लेकिन अशोक कुमार और दादा मुनि के नाम से सिनेजगत और सिने प्रेमी अच्छी तरह परिचित हैं. 80 और 90 के दशक की फिल्मों में सिगार फूंकते और मुस्कुराते हुए शख्स का किरदार दर्शकों के लिए जैसे फिल्मों का एक जाना पहचाना और अपनापन वाला सहज चरित्र हो गया था.
सोमवार, 13 अक्टूबर को प्यारे दादा मुनि का जन्मदिन है. उनका जन्म 13 अक्टूबर 1911 को बिहार के भागलपुर में एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था. पेशे से वकील कुंजलाल गांगुली के बड़े बेटे अशोक कुमार आगे चलकर अपने छोटे भाइयों अनूप कुमार और किशोर कुमार के लिए भी फिल्म जगत में करियर बनाने की प्रेरणा बने.
चलती का नाम गाड़ी
मशहूर प्लेबैक सिंगर किशोर कुमार ने तो अपने कई इंटरव्यू में भी यह स्वीकार किया था कि उन्हें न केवल अभिनय, बल्कि सिंगिंग की प्रेरणा भी बड़े भाई से मिली थी, क्योंकि अशोक बचपन से ही उनके भीतर बालगीतों के जरिए गायन के संस्कार डालते आए थे. तीनों भाइयों ने फिल्म ‘चलती का नाम गाड़ी’ में साथ काम भी किया था जो सुपरहिट रही थी.
अशोक कुमार वैसे तो शुरू से ही फिल्म क्षेत्र में आना चाहते थे, लेकिन वह एक्टर नहीं बल्कि एक कामयाब फिल्म डायरेक्टर बनना चाहते थे. 1934 में अशोक कुमार ने मुंबई के न्यू थिएटर में बतौर लेबोरेटरी सहायक काम करना शुरू किया था. बाद में उनके बहनोई और दोस्त शशिधर मुखर्जी ने उन्हें अपने पास बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में काम करने के लिए बुलवा लिया था.
हीरो के बीमार होने के बाद पार लगी ‘जीवन नैया’
अशोक कुमार के अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने की घटना किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं थी. 1936 में बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो की फिल्म ‘जीवन नैया’ के नायक नज्म उल हसन अचानक बीमार पड़ गए और कंपनी संकट में पड़ गई. तब स्टूडियो के मालिक हिमांशु राय की नजर आकर्षक लैबोरेटरी सहायक अशोक कुमार पर पड़ी और उन्होंने फिल्म में नायक की भूमिका निभाने का उन्हें प्रस्ताव दिया. यहीं से अशोक कुमार का अभिनय सफर शुरू हुआ.
एक एक्टर के तौर पर अशोक कुमार ने एक्टिंग की प्रचलित शैलियों को दरकिनार कर अपनी स्वाभाविक शैली विकसित की. वह एक्टिंग में प्रयोग करने और जोखिम लेने से कभी घबराए नहीं और पहली बार हिंदी सिनेमा में एंटी हीरो किरदार का चलन भी उन्होंने ही शुरू किया था.
'जीवन नैया' के बाद उनकी अगली फिल्म 'अछूत कन्या' थी. 1937 में प्रदर्शित 'अछूत कन्या' बेहद कामयाब रही. इस फिल्म ने अशोक कुमार को हिंदी फिल्म जगत के बड़े सितारों की श्रेणी में ला खड़ा किया.
मधुबाला और लता मंगेशकर को बुलंदियों पर पहुंचाया
आगे चलकर बॉम्बे टॉकीज के बैनर तले बतौर प्रोडक्शन चीफ अशोक कुमार ने 'मशाल', 'जिद्दी' और 'मजबूर' जैसी कई फिल्में बनाईं. इसी दौरान उन्होंने 1949 में प्रदर्शित सुपरहिट फिल्म 'महल' का निर्माण किया, जिसने एक्ट्रेस मधुबाला के साथ-साथ प्लेबैक सिंगर लता मंगेशकर को भी शोहरत की बुंलदियों पर पहुंचा दिया था.
अशोक कुमार का मनोरंजन जगत में योगदान सिर्फ बड़े पर्दे तक ही सीमित नहीं रहा. वर्ष 1984 में दूरदर्शन के इतिहास के पहले शोप ओपेरा ‘हमलोग’ में वे सीरियल के सूत्रधार की भूमिका में दिखाई दिए और दूरदर्शन के लिए ही ‘भीमभवानी’, 'बहादुर शाह जफर' और 'उजाले की ओर' जैसे धारावाहिकों में भी अपने अभिनय के जौहर से दर्शकों का उन्होंने मनोरंजन किया.
पद्मभूषण अशोक कुमार
अशोक कुमार को वर्ष 1999 में पद्मभूषण सम्मान से नवाजा गया था. वर्ष 2001 में उत्तर प्रदेश सरकार ने उन्हें अवध सम्मान से विभूषित किया था. 1988 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया और वर्ष 1969 में फिल्म 'आशीर्वाद' के लिए अशोक कुमार को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कर व फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था.
मुंबई में 10 दिसंबर 2001 को 90 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह चुके महान अभिनेता अशोक कुमार भले ही आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन मुंह में सिगार और होठों पर हमेशा मुस्कान रखने वाले इस बहुमुखी प्रतिभा के धनी कलाकार की यादें आज भी सिने-प्रमियों के मन में बसी हैं.
इनपुट: IANS