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झारखंड चुनावः एक था 'महाराणा प्रताप' का चेतक और एक है 'सरयू' का चेतक!

इधर, सरयू राय भाजपा से बागी होकर मौजूदा मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. उधर, चमचमाता हुआ 'चेतक' भी वही पुरानी ठसक लिए अपने स्वामी के इंतजार  मुस्तैद है. 

नाम है चेतक और नंबर है, डी इ एस-1490 नाम है चेतक और नंबर है, डी इ एस-1490
संध्या द्विवेदी
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  • 22 नवंबर 2019,
  • अपडेटेड 5:27 PM IST

हवा से बाते करने वाला चुस्त और स्वामिभक्त 'चेतक' अगर नहीं होता तो महाराणा प्रताप की वीरता के किस्से उतने वीररस से ओतप्रोत नहीं होते जितने आज हैं. बिहार के एक दिग्गज नेता जो झारखंड बनने के बाद नए राज्य की सियासत में रम गए,  सरयू राय की कहानी भी बिना 'चेतक' अधूरी ही है. अब जाहिर है, यहां चेतक किसी घोड़े का नाम नहीं ही होगा. क्योंकि अस्सी के दशक में घोड़ की सवारी तो फबती नही. लेकिन 'बजाज चेतक' तो उस समय युवाओं के दिल की धड़कन हुआ करता था. 'हार्ले डेविड्सन' पर बैठे आज के युवा क्या ही इतराते होंगे जितना उस समय 'चेतक' का सवार इतराता था. खैर, स्कूटर की महिमा फिर कभी. लेकिन फिलहार तो दिग्गज नेता सरयू राय के चेतक पर ही बात करते हैं. सरयू राय अपने इस 'चेतक' से महाराणा प्रताप के मुकाबले ज्यादा नहीं तो कुछ कम भी प्रेम नहीं करते हैं.

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यही वह स्कूटर है जिस पर बैठकर सरयू राय ने नब्बे के दशक में लालू यादव के खिलाफ चारा घोटाले की लड़ाई लड़ी. वो कहते हैं, ''सीबीआई के एक बड़े अफसर ने एक बार कहा कि मेरे ऊपर खतरा है. चार पहिए में सिक्योरिटी के साथ ही मुझे घूमना चाहिए. लेकिन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता रहा कि मैं अपने स्कूटर पर ही महफूज हूं''. विश्वामित्र की तपोभूमि बक्सर के सरयू राय के तेवर भी महाराणा प्रताप से कम नहीं हैं.

तीन-तीन मुख्यमंत्रियों (लालू, जगन्नाथ मिश्र और मधुकोड़ा) को जेल भिजवाने वाले सरयू राय झारखंड विधानसभा चुनाव में भी मौजूदा मुख्यमंत्री रघुवर दास को जेल भिजवाने का ऐलान कर चुके हैं. घोटालों का पुलिंदा लिए सरयू राय कह रहे हैं, '' तीन को जेल भिजवा चुके अब चौथे की बारी है.''

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तो जैसा स्वामी वैसा भक्त. दोनों में ठसक बराबा. 1980 में खरीदे गए डी इ एस-1490 नंबर के 'चेतक' की ठसक आज भी बरकरार है.

सरयू राय के एक करीबी ने बताया, ''स्कूटर की झाड़-पोछ नियमित रूप से होती है.'' सरयू राय का यह आदेश है कि 'चेतक' का रखरखाव ढंग से किया जाए. पटना स्थित रघुवंश अपार्टमेंट में आज भी यह स्कूटर महफूज है. हालांकि इस स्कूटर की सवारी अब कभी-कभार ही हो पाती है. सरयू राय चेतक को बहुत लकी मानते हैं.

इधर, सरयू राय भाजपा से बागी होकर मौजूदा मुख्यमंत्री के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. उधर, चमचमाता हुआ 'चेतक' भी वही पुरानी ठसक लिए अपने स्वामी के इंतजार  मुस्तैद है.  

'चेतक' पर जो भी चढ़ा वह खास हो गया!

पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस में वित्त एवं उद्योगमंत्री अमित मित्रा इसके पहले स्वामी हैं तो दूसरे स्वामी सरयू राय भी रघुवर दास की सरकार में संसदीय मामलों और खाद्या आपूर्ति मंत्री रहे. सरयू राय भी इस स्कूटर को बेहद भाग्यशाली मानते हैं.

वे कहते हैं, इस स्कूटर सवार होने के बाद ही मित्रा और मैं मंत्री बनें. हालांकि सरयू राय कहते हैं, हम दोनों ही क्यों जितने लोगों ने इस स्कूटर की सवारी की वो आज राजनीति और पत्रकारिता के क्षेत्र में परचम लहरा रहे हैं.

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बिहार के सीएम नीतीश कुमार से लेकर डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी, केंद्रीय मंत्री रवि शंकर प्रसाद, अश्विनी कुमार चौबे या फिर आरजेडी के स्टालवार्ट लालू प्रसाद, जगदानंद सिंह, शिवानंद तिवारी और अब्दुल बारी सिद्दीकी तक सबने किसी न किसी कारण से अस्सी के दशक में इस चेतक की सवारी की है.

सरयू राय तक कैसे पहुंचा चेतक?

आज तो हाल यह है कि कंपनियां दुपहिया या चार पहिया वाहन बेचने के लिए आपको पछियाए रहती हैं. तीन-चार घंटे में कागजी कार्रवाई के बाद गाड़ी आपकी. लेकिन पहले ऐसा नहीं था. बजाज चेतक की बुकिंग 1970 में की गई और इसकी डिलिवरी 1980 में हुई. दो साल तक दिल्ली में इसकी सवारी करने के बाद 1982 में मित्रा ने इसको अपने मित्र सरयू राय को बेच दिया था. 15 वर्षों तक सवारी करने बाद सरयू राय इसे अपने भतीजे संतोष राय को देकर झारखंड की सियासत करने चले गए.

चेतक के पहले स्वामी जो आज घोर वामपंथी पार्टी में मंत्री हैं, 'अमित मित्रा' 1980 में भाजपा से चुनाव लड़ना चाहते थे. वे अमेरीका की ड्यूक यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद जब भारत आए तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से आकर्षित होकर भगवा ध्वज उठाने का मन बनाया. वे पटना आए और संघ के हेडक्वार्टर में रुके. यहां उनकी मुलाकात सरयू राय से हुई. अमित मित्रा भाजपा के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने का मन बना चुके थे, लेकिन संघ और भाजपा की स्थानीय इकाई किसी बाहरी को उम्मीदवार बनाने के पक्ष में नहीं थी.

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जब भाजपा में मौका नहीं मिला तो अमित मित्रा जनता पार्टी की युवा विंग के राष्ट्रीय महासचिव बन गए. खैर, सियासत में विचारधाराएं मौका मिलने पर पनपती और संवरती हैं. जहां मौका मिला विचारधाराएं भी अपनी धाराएं बदल लेती हैं. जैसा कि अमित मित्रा के साथ हुआ. फर्ज कीजिए अगर  उस समय उन्हें बिहार की संघ और भाजपा की स्थानीय इकाई ने मौका दे दिया होता तो वे संघ के बिल्कुल विपरीत विचारधारा वाली पार्टी तृणमूल में न होते. खैर, अब तो यह कहना भी मुश्किल है कि कब, कौन, किस पार्टी में आएगा और कब, कौन, किस पार्टी से जाएगा?

छोड़िए, हमें अपनी कहानी से कतई भटकान नहीं है, तो हम सरयू राय के पास चेतक कैसे पहुंचा इसका किस्सा बताते हैं. राय ने बिहार के एक वरिष्ठ पत्रकार को यह किस्सा जैसे बताया, वैसे ही इसे पढ़िए, ''मैं अपनी राजदूत मोटर साइकिल पर अमित मित्रा को पीछे बिठाकर नालंदा यूनिवर्सिटी का खंडहर दिखाने ले गया था. मेरी वो मोटर साइकिल चोरी हो गई तो अमित मित्रा अपनी बजाज 'चेतक' स्कूटर 1982 में मुझे बेचकर विदेश पढ़ाने चले गए क्योंकि उनके मन में राजनीति के प्रति दुराव पैदा हो गया था''.

सुभाष चन्द्र बोस के नाती अमित मित्रा 1990 में भारत लौट आए और कई वर्षों तक वे फिक्की के जनरल सेक्रेटरी रहे. भारत सरकार ने 2008 में मित्रा को पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा. इसी दौर में वे ममता बनर्जी के संपर्क में आए. बतौर तृणमूल कांग्रेस नॉमिनी 2011 का चुनाव लड़े और 5 चुनाव तक अजेय रहे.

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