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मवेशियों की खरीद-फरोख्त को लेकर केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन पर बढ़ते विवाद के बीच केंद्र सरकार अब यू टर्न के मूड में दिख रही है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा है कि पशुवध संबंधी अधिसूचना में बदलाव के लिए आए सुझावों पर सरकार विचार कर रही है.
पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में किए गए बदलाव के बारे में केंद्रीय पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि यह किसी की खान-पान की आदतों को बदलने या मांस कारोबार रोकने के लिए नहीं किया गया. उन्होंने कहा, पशुवध संबंधी अधिसूचना सरकार के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं है. इसमें बदलाव के लिए आए सुझावों पर पुनर्विचार किया जाएगा.
दरअसल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पशु क्रूरता निवारण अधिनियम -1960 के तहत एक नया नोटिफिकेशन जारी किया है. इसमें यह प्रावधान है कि पशु बाजारों से मवेशियों की खरीद करने वालों को लिखित में यह वादा करना होगा कि इनका इस्तेमाल खेती के काम में किया जाएगा, न कि मांस के लिए. इन मवेशियों में गाय, बैल, सांड, बछड़े, बछिया, भैंस आदि शामिल हैं.
इन नए नियमों के तहत पशु बाजार में आने वाले हर मवेशी का लिखित रिकॉर्ड रखना जरूरी होगा. इसके अलावा सीमापार और दूसरे राज्यों में पशुओं की हत्या रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय सीमा से 50 किलोमीटर और राज्यों की सीमा से 25 किलोमीटर के अंदर पशु बाजार लगाने पर भी प्रतिबंध लगाया गया है.
इस अधिसूचना के जारी होने के बाद से ही विभिन्न राज्यों में खासा विरोध देखा जा रहा है. कई लोग जहां इसे अनौपचारिक मीट बैन करार दे रहे थे, तो वहीं कुछ इसे सारे देश पर हिन्दुवादी सोच थोपने का आरोप लगा रहे थे. केंद्र के इस फैसला के विरोध में दक्षिण एवं उत्तर पूर्वी भारत के विभिन्न राज्यों में विरोध स्वरूप बीफ पार्टी का आयोजन किया था. वहीं मेघालय के गारो हिल्स के बीजेपी नेता बर्नार्ड मराक ने पार्टी पर ईसाइयों और आदिवासी लोगों की भावनाओं से खेलने का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया था.
ऐसे में सरकार पर राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों और चमड़ा उद्योग की तरफ से बढ़ते दबाव के बीच पर्यावरण मंत्री हर्षवर्धन ने बीते गुरुवार को प्रधानमंत्री कार्यालय के अफ़सरों से बात की थी. इसके बात सूत्रों ने बताया था कि इस अधिसूचना के कुछ प्रावधानों की भाषा बदली जा सकती है और भैसों को अधिसूचना के दायरे से बाहर रखने पर भी सरकार विचार कर रही है.