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हरियाणा की सियासत में करीब 30 फीसदी जाट समुदाय किसी भी पार्टी को चुनाव जिताने और किसी भी सरकार को गिराने की ताकत रखते हैं. यही वजह है कि हरियाणा की राजनीतिक धुरी लंबे समय तक जाट समुदाय के इर्द-गिर्द ही घूमती रही है. विधानसभा चुनाव के लिए महज चंद दिन ही बाकी हैं और हरियाणा में जाटलैंड इलाके में आनी वाली सीटों पर विपक्षी चक्रव्यूह को भेदना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती बनी हुई है.
जाटलैंड वाली सीटें
हरियाणा में रोहतक, सोनीपत, पानीपत, जींद, कैथल, सिरसा, झज्जर, फतेहाबाद, हिसार और भिवानी जिले की करीब 30 विधानसभा सीटों पर जाटों का अच्छा प्रभाव है. इसी के चलते इस इलाके को जाटलैंड कहा जाता है. यहां की सीटों पर जाट समुदाय हार-जीत का फैसला करते हैं. जाटलैंड की इन 30 सीटों पर बीजेपी के बड़े दिग्गजों को भी कड़ी चुनौती मिल रही है, जिसके चलते पार्टी के जाट नेता अपने इलाके से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं.
बीजेपी के जाट नेता घिरे
बीजेपी के जाट बिरादरी के दो कद्दावर मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ अपनी बादली और नारनौंद सीट पर कैप्टन अभिमन्यू के अलावा प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला टोहाना सीट पर कड़े मुकाबले में फंसे हुए हैं. इसके अलावा गढ़ी सांपला, किलोई, बेरी, महम, कैथल, ऐलनाबाद जैसी कई विधानसभा सीटों पर बीजेपी उम्मीदवार को विपक्षी प्रत्याशियों से कड़ी चुनौती मिल रही है. बीजेपी को किसी सीट पर जेजेपी से तो किसी पर कांग्रेस के साथ सीधा मुकाबला है.
जाट समुदाय पर किसका क्या दांव?
हरियाणा के जाटलैंड में बीजेपी ने महज 20 जाट उम्मीदवारों को उतारा है. दूसरी तरफ कांग्रेस ने हरियाणा की सत्ता में वापसी के लिए जाटों पर भरोसा जताया है और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को हरियाणा चुनाव की कमान सौंपी है. कांग्रेस ने 27 जाट उम्मीदवारों मैदान में उतारा है तो दुष्यंत चौटाला की पार्टी जेजेपी ने 34 जाट प्रत्याशी पर दांव खेला है. इसके अलावा इनेलो से करीब 30 जाट प्रत्याशी ताल ठोक रहे हैं.
जाटलैंड की 10 सीटें बीजेपी ने जीती थी
बता दें कि पिछले विधानसभा और हाल के लोकसभा चुनाव में भी जाटलैंड से जुड़ी सीटों पर विपक्ष का सियासी तिलिस्म नहीं तोड़ पाई थी. पिछले चुनाव में जाटलैंड की 30 में से बीजेपी महज 10 सीटे ही जीत सकी थी. जाट वोटरों ने पिछले चुनाव में भले ही बीजेपी का खुलकर समर्थन न किया हो लेकिन हरियाणा में जाट वोटरों की अनदेखी मुमकिन नहीं है, यही वजह है कि पार्टी ने सुभाष बराला को प्रदेश अध्यक्ष बनाया और ओपी धनखड़ और कैप्टन अभिमन्यु जैसे कद्दावर जाट नेताओं को कैबिनेट में जगह दी. बावजूद इसके इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में जाट बाहुल्य विधानसभा सीटों पर बीजेपी बढ़त नहीं बना पाई.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ करने के बावजूद जाट बहुल विधानसभा सीटों पर बीजेपी पिछड़ गई थी. इनमें से एक सीट थी नारनौद जो बीजेपी के जाट नेता और कैबिनेट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु का विधानसभा क्षेत्र है. जबकि दूसरे जाट नेता और कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश धनकड़ की सीट बादली में भी यही हाल था. इसी तरह गढ़ी सांपला-किलोई, बेरी और महम में भी बीजेपी पीछे रही थी. इसी के चलते बीजेपी के ये दिग्गज अपने ही दुर्ग में घिरे हुए नजर आ रहे हैं.