
दिल्ली मेट्रो की इस घटना की जानकारी न तो आपको किसी न्यूज पेपर ने दी होगी और न ही न्यूज चैनल ने. लेकिन इतना जरूर है कि इस खबर को पढ़ने के बाद आप जब आज मेट्रो में सफर कर रहे होंगे तो चौकन्ने जरूर रहेंगे.
दिल्ली मेट्रो जब शुरू हुई थी तो महिला कोच की कोई अलग व्यवस्था नहीं थी लेकिन कुछ वक्त बाद इंजन के ठीक बाद वाले डिब्बे को महिला कोच घोषित कर दिया गया. महिला कोच जिसमें पुरुषों का चढ़ना तक प्रतिबंधित है. चढ़ने पर जुर्माने का भी कानून है. खैर महिला कोच की व्यवस्था होनी चाहिए या नहीं, ये भेदभाव है या नहीं, महिला सशक्तिकरण के दौर में इस तरह का आरक्षण सही है या नहीं, ये बहस का मुद्दा है और इस पर हर किसी की अपनी एक अलग राय हो सकती है. पर इस बात को नहीं झुठलाया जा सकता है कि मेट्रो की व्यवस्था कहीं न कहीं हमारी समाजिक व्यवस्था को ही दिखाता है.
महिला कोच बन जाने से एक ओर जहां महिलाओं को कुछ आराम मिला वहीं ज्यादातर लड़कों ने इस पर नाराजगी जताई. कल इसी मुद्दे पर एक बार फिर बात छिड़ी. फेसबुक यूजर द्युति सुदीप्ता ने कल अपने फेसबुक स्टेटस पर इस पूरे मामले को शेयर किया है. आप भी पढ़िए...
मेट्रो में सुनी गई बातें:
पहला लड़का: देख लेडीज कोच पूरा खाली है. इधर इतना भरा हुआ है. पर फिर भी हमें वहां जाकर बैठना मना है. खाली पड़ी हुई हैं सीटें.
दूसरा लड़का: हां यार...देख, पूरा का पूरा कोच दे रखा है उनको. वो भरती हैं नहीं. ऊपर से हमारे कोच में भी दो-दो सीटें दे रखी हैं. हम बैठ गए तो उठा दिए जाते हैं. भले उनका पूरा कोच खाली पड़ा हो. वो तो भर लें पहले.
आंटी: आप लोग पैदा ही नहीं होने दे रहे हो न बेटा और नसीब से पैदा हो भी रही हैं तो उनको पढ़ने, लिखने, बाहर निकलने से रोक रहे हो. जी-जान लगाकर. ये सब काम बंद कर दो. कोख में मार देना, दूध में डुबो देना, रोकटोक करना...फिर देखो न बेटा, मेट्रो की सीट क्या, ऑफिस की कुर्सियां, खेल के मैदान, सबकुछ भर देंगी ये. पर उसी चीज से तो डर रहे हो आप...है न? है न बेटा...