
उत्तर प्रदेश पुलिस की कार्यप्रणाली के दो विरोधाभासी रूप दिखाई पड़ते हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले 20 वर्ष से अपराध की दुनिया में सक्रिय मुजफ्फरनगर के बागोवाली गांव निवासी नदीम ने दो महीने पहले दिल्ली जेल से छूटते ही लूटपाट शुरू कर दी थी.
पुलिस ने बड़ी मुश्किल से नदीम को शामली जिले के कैराना इलाके से 5 सितंबर को गिरफ्तार किया. अगले दिन पुलिस नदीम को मुजफ्फरनगर ले आई. दोपहर करीब दो बजे सिपाही दीपक कुमार और नवीन कुमार 12,000 रु. के इनामी बदमाश नदीम को हथकड़ी लगाकर पैदल ही कोर्ट में पेश करने जा रहे थे.
ये मुजफ्फरनगर के सिविल लाइंस इलाके में जानसठ ओवरब्रिज के नीचे पहुंचे ही थे कि बाइक सवार दो युवक सिपाहियों की आंखों में मिर्च झोंककर नदीम को हथकड़ी समेत हिरासत से छुड़ा ले गए. लापरवाह सिपाहियों को निलंबित कर दिया गया. सकते में आई पुलिस ने नदीम को पकडऩे के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया. जिले से बाहर जाने वाली हर सड़क की नाकाबंदी कर दी गई. करीब 50 घंटे बाद मुजफ्फरनगर के ककरौली इलाके में जटवाड़ा गंगनहर पर बाइक पर सवार होकर भाग रहे नदीम का पुलिस से सामना हो गया. दोनों पक्षों में मुठभेड़ हुई और अंत में पुलिस ने उसे मार गिराया.
नदीम जैसा हश्र 20,000 के इनामी बदमाश सुनील शर्मा का भी हुआ. अवध में सक्रिय सलीम-सोहराब-रुस्तम गैंग का शार्प शूटर सुनील 8 अगस्त को हरदोई से लखनऊ कोर्ट में पेशी के दौरान पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया था. इसके बाद उसने लखनऊ के ही एक बिल्डर अजय रस्तोगी से 20 लाख रु. रंगदारी मांगी और इसे वसूलने के लिए 31 अगस्त की तारीख भी तय कर दी थी. इसके बाद से सुनील को पकडऩे के लिए लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार ने खुद मोर्चा संभाल लिया.
1 सितंबर की तड़के साढ़े चार बजे एसएसपी दीपक को मुखबिर ने सुनील के शहीद पथ पर होने की सूचना दी. इसके बाद लखनऊ पुलिस हरकत में आ गई. हर तरफ से घिरता देख सुनील ने पुलिस पर गोलियां चलाईं. आधे घंटे की मुठभेड़ में वह पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया. 2009 में तीन इनामी बदमाशों को मुठभेड़ में मार गिराने के आठ वर्ष बाद लखनऊ पुलिस के खाते में पहला 'एनकाउंटर' दर्ज हुआ.
पिछले डेढ़ महीने के दौरान प्रदेश में डेढ़ दर्जन से अधिक दुर्दांत अपराधियों को पुलिस ने 'एनकाउंटर' में मार गिराया है (देखें बॉक्स). कानून-व्यवस्था पर लगातार आलोचना का शिकार यूपी पुलिस ने जिस आक्रामक ढंग से अपराधियों की धरपकड़ का अभियान शुरू किया है उससे पुलिस फोर्स की छवि बदलने की छटपटाहट साफ नजर आती है. सेवानिवृत्ति आइपीएस अफसर एस.आर. दारापुरी कहते हैं, ''एनकाउंटर से कुछ समय के लिए तो अपराधियों में भय व्याप्त होता है लेकिन पुलिस की छवि इस बात पर निर्भर करती है कि उसने छोटे-बड़े अपराधों में कितनी त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई की है.''
चुनौती बने माफिया गैंग
कानून-व्यवस्था पर लगातार आलोचना झेल रहे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 4 जुलाई को पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के बाद सबसे प्रभावशाली पद अपर पुलिस महानिदेशक (एडीजी), कानून-व्यवस्था के पद पर बदलाव किया.
मेरठ जोन के एडीजी आनंद कुमार को इस पद पर बिठाया गया और एडीजी (यातायात) के पद पर तैनात रहे प्रशांत कुमार मेरठ भेजे गए. डीजीपी सुलखान सिंह और एडीजी आनंद कुमार ने सबसे पहले हर जिले में आपराधिक गैंग की सूची तैयार कराई. इसके बाद हर जिले के पुलिस कप्तानों को लखनऊ स्थित डीजीपी कार्यालय में अलग-अलग बुलाया गया. उनकी काउंसिलिंग की गई. अपराधियों की सूची सौंपी गई और उन्हें पकडऩे की एक समय सीमा तय की गई.
पिछले तीन महीने के दौरान पूरे प्रदेश में रिकॉर्ड 700 से अधिक वे अपराधी पकड़े गए हैं जिन पर 10,000 रु. या इससे अधिक का इनाम था. आनंद कुमार कहते हैं, ''पुलिस वही है, कानून वही है, हमने पुलिस को किसी भी दबाव में न आकर अपराधियों पर सिर्फ सक्चत कार्रवाई करने का संदेश दिया है.'' अपराधियों को गिरक्रत में लाने के लिए पुलिस ने कई स्तर पर रणनीति बनाई है (देखें ग्राफिक्स).
प्रदेश में शांति के साथ कांवड़ यात्रा समापन के लिए वाहवाही बटोर रही पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती उन माफिया गिरोहों का सफाया करने की है जो कई वर्षों से नाक में दम किए हुए हैं.
मेरठ, बागपत और बुलंदशहर के आसपास के इलाकों में योगेश भदौड़ा और उधम सिंह का गैंग सक्रिय है. इसके अलावा मुकीम काला गैंग ने भी पश्चिमी यूपी में जमकर आतंक मचाया है. इस गैंग के शार्पशूटर मुनशाद और वाजिद काला की घेराबंदी के लिए पुलिस ने प्रयास शुरू किए हैं. इससे बदमाशों ने दूसरे राज्यों में समर्पण करना शुरू कर दिया है.
50,000 रु. के इनामी बदमाश बिल्लू दुजाना ने पिछले महीने दिल्ली में सरेंडर कर दिया. एडीजी मेरठ प्रशांत कुमार कहते हैं, ''दूसरे राज्यों में सरेंडर करने वाले बदमाशों पर नजर रखी जा रही है. उनसे पूछताछ की जाएगी.''
सवाल भी उठ रहे
बदमाशों के साथ पुलिस की मुठभेड़ पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं. पश्चिमी यूपी में पुलिस ने दो माह में कुख्यात बदमाश विपुल खूनी, फुरकान, शत्रु बालियान, इरशाद, नफीस और इसरान को अलग-अलग जिलों से गिरफ्तार किया है.
इन सभी बदमाशों की टांगों में गोलियां लगी हैं. खास बात यह है कि इनमें से विपुल खूनी, शत्रु बालियान और इसरान से पुलिस की मुठभेड़ रात के अंधेरे में हुई है. इसके बावजूद इन बदमाशों की टांगों में पुलिस की गोलियां लगीं जिससे इनकी जान नहीं गई. वहीं दूसरी ओर पुलिस ने कैराना के भूरा गांव में इनामी बदमाश नौशाद उर्फ डैनी और सरवर से रात में ही मुठभेड़ की और उसे मार गिराया. नौशाद की टांगों के ऊपर ही सभी गोलियां लगीं जबकि सरवर के सिर में गोली लगी थी.
इस पर मुजफ्फरनगर के एक वकील सिराजुद्दीन का कहना है कि रात के अंधेरे में मुठभेड़ करने वाली पुलिस का निशाना कभी तो बदमाशों की टांगों पर लगता है और कभी वह सीधे सीने को भेद देता है, इसी से कुछ गड़बड़ी की आशंका जाहिर होती है.
दारापुरी कहते हैं, ''आमतौर पर किसी खूंखार अपराधी से सीधी मुठभेड़ होने पर पुलिस के जवान ज्यादा घायल होते हैं. अचानक ऐसा क्या हो गया कि मुठभेड़ के दौरान पुलिसकर्मियों को बेहद मामूली चोटें आ रही हैं और बदमाश पर निशाना अचूक बैठ रहा है?'' एडीजी कानून-व्यवस्था आनंद कुमार कहते हैं, ''अगर कोई अपराधी पुलिस पर गोली चलाएगा तो हम भी चुप नहीं बैठेंगे. मुठभेड़ पर सवाल उठाकर पुलिस के मनोबल को कमजोर करने की साजिश अब कामयाब नहीं हो पाएगी.''
पुलिस के सामने अभी कई चुनौतियां हैं. 9 सितंबर को मुरादाबाद के आइएमए भवन में जिगर मुरादाबादी की पुण्य तिथि पर हुए मुशायरे में सबसे अधिक तालियां अलीगढ़ से आए कलीम समर ने बटोरी जब उन्होंने अपना कलाम पढ़ाः ''कल दारोगा थाने में बोला ये दीवान से/आ गए कल्लन के पैसे छोड़ दो सम्मान से.'' जाहिर है, पुलिस को छवि सुधारने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है.