
बात 23 अगस्त की शाम की है. लुटियंस की दिल्ली में 11 अकबर रोड स्थित अमित शाह के घर जाने से पहले असम बीजेपी के अध्यक्ष सिद्धार्थ भट्टाचार्य ने अपने पूर्व राजनैतिक प्रतिद्वंद्वी और राज्य के पूर्व मंत्री हेमंत बिस्व सरमा के साथ जश्न मनाया था. इन दोनों ने राज्य के ज्यादातर आम और खास लोगों को हैरत में डाल दिया था. इतना कि बीजेपी नेतृत्व बैठक के खत्म होने तक इस मामले पर अंधेरे में था. वहीं गुवाहाटी में टीवी चैनलों के “ब्रेकिंग न्यूज” टिकर पर यह चल रहा था कि भट्टाचार्य बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से मिलकर तिवा स्वायत्त परिषद के चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन की वजह से अपना इस्तीफा देने जा रहे हैं. तिवा के नतीजे एक दिन पहले ही आए थे.
कहानी ठीक उलट थी. एक साल से चल रहे भट्टाचार्य के मिशन का इस बैठक के बाद सुखांत होने जा रहा था&बीजेपी आलाकमान किसी समय असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का दायां हाथ रहे सरमा को राज्य में बीजेपी के सात में से छह लोकसभा सांसदों के विरोध के बावजूद पार्टी में शामिल करने को तैयार हो गया था. बैठक के एजेंडे को गोपनीय रखा गया था ताकि ऐन मौके पर किसी अड़ंगे से बचा जा सके, खास तौर पर केंद्रीय मंत्री सर्वानंद सोनोवाल की ओर से, जिन्हें सरमा का पार्टी में प्रवेश मुख्यमंत्री के पद की अपनी दावेदारी के लिए खतरा नजर आ रहा था.
इस खेल में सरमा भी अपनी तरफ से पूरा योगदान दे रहे थे और उन्होंने कांग्रेस की तिवा में जीत पर ट्वीट भी किया था. कभी अपने उस्ताद रहे तरुण गोगोई से चार साल तक चली जंग में पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के गोगोई का पक्ष लेने के फैसले से नाराज सरमा ने पिछले साल 21 जुलाई को असम के स्वास्थ्य और शिक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था.
तो फिर भला संघ और बीजेपी नेतृत्व ने भट्टाचार्य का साथ देकर सरमा को शामिल करने पर रजामंदी क्यों जताई? इसका जवाब सरमा की राज्य में लोकप्रियता और चुनाव प्रबंधन में उनकी कारीगरी में निहित है. 2006 से 2014 के बीच स्वास्थ्य मंत्री के रूप में जालुकबारी से तीन बार विधायक रहे सरमा ने कई लोकप्रिय कदम उठाए, जिनमें 24 घंटे की एंबुलेंस सेवा और ग्रामीण अस्पतालों में डॉक्टरों की मौजूदगी की अनिवार्यता शामिल थे. इसी तरह 2011 से 2014 तक शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने स्कूली शिक्षकों की भर्ती की एक पारदर्शी प्रक्रिया पेश की जिसकी परिणति लगभग दो लाख नई भर्तियों में हुई. गुवाहाटी स्थित पत्रकार और विश्लेषक दिलीप चंदन का कहना है, “सरमा ने उस राज्य में लाखों युवाओं को उम्मीद दिखाई थी जहां शिक्षकों की नौकरियां खुलेआम बेची जाती थीं. इससे उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ.” असम के एक मंत्री का दावा है कि इस बढ़ती लोकप्रियता ने ही 2011 में राजनीति में शामिल होने वाले गोगोई के बेटे गौरव के मन में असुरक्षा की भावना पैदा कर दी.
वकालत से राजनीति में आए इस 46 वर्षीय नेता के पूर्वोत्तर के नेताओं में सोशल मीडिया पर सबसे ज्यादा फॉलोअर हैं. वे व्यक्तिगत रूप से ज्यादातर टिप्पणियों और संदेशों का खुद जवाब देते हैं. कांग्रेस के एक महासचिव ने इस बात पर निराशा जताई कि सरमा के पार्टी से जाने का मतलब है असम का अगले दस साल के लिए कांग्रेस के हाथ से निकल जाना. उनका कहना था कि पार्टी के पास राज्य में इस समय कोई ऐसा नेता नहीं है जो सरमा से टक्कर ले सके.
पिछले साल गोगोई की जगह सरमा को मुख्यमंत्री बनाने के अपनी मां के फैसले को वीटो करने वाले राहुल गांधी को शायद इस गलती का एहसास बहुत देर से हुआ. ऐसा बताया जाता है कि 24 अगस्त को उन्होंने सोनिया गांधी के राजनैतिक सचिव अहमद पटेल को यह संदेशा भिजवाया था, “मेरा निजी नंबर हेमंत को भेजकर उन्हें मुझ से तुरंत बात करने को कहें.” लेकिन सरमा ने राहुल का इंतजार खत्म न करने का फैसला किया.
हालांकि बीजेपी में सरमा का प्रवेश पिछले महीने खटाई में पड़ता नजर आ रहा था. मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि तत्कालीन गुवाहाटी विकास मंत्री सरमा 2010 में गुवाहाटी के एक जलापूर्ति प्रोजेक्ट के लिए अमेरिकी कंसल्टेंसी फर्म लुई बर्गर से कथित तौर पर रिश्वत पाने वालों में से एक थे. असम के कई बीजेपी सांसदों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब बीजेपी संसदीय दल ने जल्द ही एक पर्चा जारी कर दिया जिसमें कहा गया कि सरमा रिश्वत के मामले में मुख्य अभियुक्त हैं. हालांकि पूर्व मंत्री का कहना था कि अमेरिकी न्याय विभाग की अपनी विज्ञप्ति में यह कहा गया था कि रिश्वत नेताओं को नहीं बल्कि अधिकारियों को दी गई. अब भट्टाचार्य भी इसी तरह का बचाव पेश कर रहे हैं. “जब हमने अमेरिका में संबद्ध कोर्ट के सामने दाखिल की गई चार्जशीट और कोर्ट के फैसले को पढ़ा तो हमने पाया कि उसमें सरमा का कहीं कोई उल्लेख नहीं था.”
2010 और 2014 में सरमा ने राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के उम्मीदवारों की विजय सुनिश्चित करने के लिए बीजेपी विधायकों की तरफ से क्रॉस वोटिंग सुनिश्चित की थी. बीजेपी अब अपने फायदे के लिए उनकी इसी चुनाव प्रबंधन की कारीगरी का इस्तेमाल करना चाहती है. उन्होंने ही तमाम प्रतिकूलताओं और सत्ता विरोधी लहर के बावजूद असम और मणिपुर में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की और फिर 2013 में मिजोरम में पार्टी को सत्ता में लौटाने वाले चुनावों का वित्तीय प्रबंधन भी देखा.
बीजेपी इस साल शुरू में बोडोलैंड क्षेत्रीय जिला (बीटीएडी) के चुनावों और फिर अगस्त में तिवा के चुनावों में हार की वजह से भी सरमा को किसी भी तरह अपने साथ लाना चाहती थी. बीजेपी का आंतरिक सर्वे कहता है कि आने वाले चुनावों में तस्वीर में नाटकीय रूप से कोई बदलाव नहीं आया तो बीजेपी 2016 में 50 से भी कम सीटें हासिल कर पाएगी जो बहुमत के लिए जरूरी 63 सीटों से बहुत कम है. ऐसी स्थिति में उसे गठबंधन के लिए साथियों की जरूरत होगी और सरमा उस समय सौदेबाजी में बहुत काम आ सकते हैं. उनके तीनों संभावित गठबंधन साथियों&बीपीएफ, एआइयूडीएफ और एजीपी से अच्छे संबंध हैं.
बीजेपी उम्मीद लगा रही है कि वह सरमा की लोकप्रियता और कौशल का इस्तेमाल असम में अपनी पहली सरकार बनाने में कर सकती है, लेकिन उनके समर्थकों के लिए सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या बीजेपी में उन्हें वह मिलेगा जो उन्हें कांग्रेस के भीतर नहीं मिल पाया&मुख्यमंत्री की कुर्सी?
नई पार्टी में सरमा के लिए यह आसान नहीं होगा क्योंकि सोनोवाल भी उस पद पर आंखें गड़ाए हैं. इन दोनों के बीच की कड़ी प्रतिस्पर्धा उस समय की है जब दोनों ही 1980 के दशक में ऑल असम स्टुडेंट्स यूनियन के सदस्य थे. एक बीजेपी नेता का तो कहना है कि दरअसल लुई बर्गर रिश्वत घोटाले में सरमा को मुख्य अभियुक्त के रूप में पेश करने वाले पर्चे के पीछे असली दिमाग सोनोवाल का ही था.
अब यह देखना रोचक होगा कि एक असमी फिल्म में बाल अभिनेता के तौर पर शुरुआत करने वाले सरमा कैसे नई भूमिका में असम में कमल खिला पाते हैं.