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भारतीय लड़कियां मां की पिटाई की सर्वाधिक शिकार: यूनिसेफ

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाएं अपनी बेटियों या सौतेली बेटियों पर सर्वाधिक सितम ढाती हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 से 19 साल की भारतीय लड़कियों में से 41 प्रतिशत को अपनी मां या सौतेली मां के हाथों पिटाई या प्रताड़ना झेलनी पड़ती है, जबकि मात्र 18 प्रतिशत पर यह सितम उनके पिता या सौतेले पिता करते हैं.

UNICEF द्वारा जारी की गई रिपोर्ट UNICEF द्वारा जारी की गई रिपोर्ट
aajtak.in
  • न्यूयॉर्क,
  • 05 सितंबर 2014,
  • अपडेटेड 8:56 AM IST

यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में महिलाएं अपनी बेटियों या सौतेली बेटियों पर सर्वाधिक सितम ढाती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि 15 से 19 साल की भारतीय लड़कियों में से 41 प्रतिशत को अपनी मां या सौतेली मां के हाथों पिटाई या प्रताड़ना झेलनी पड़ती है, जबकि मात्र 18 प्रतिशत पर यह सितम उनके पिता या सौतेले पिता करते हैं.

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'हिडन इन प्लेन साइट : अ स्टैटिस्टिकल एनालिसिस ऑफ वायलेंस अगेंस्ट चिल्ड्रन' नामक यह रिपोर्ट शुक्रवार को जारी की गई. यह रिपोर्ट 190 देशों के बच्चों पर कराए गए सर्वेक्षण पर आधारित है. सभी तरह की यातना, क्रूरता, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार के साथ ही एक बच्चे को खाने या असहज हालात में रहने के लिए विवश करना भी शारीरिक हिंसा के तहत आता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 15 से 19 वर्ष आयुवर्ग की 25 प्रतिशत लड़कियों पर भाइयों और बहनों द्वारा शारीरिक हिंसा की गई. विवाहित युवतियों या एक संबंध में रह रहीं इसी आयुवर्ग की 33 प्रतिशत युवतियों ने स्वयं पर पति या साथी द्वारा शारीरिक हिंसा किए जाने की बात कही, लेकिन महज एक प्रतिशत को अपनी सास की मारपीट झेलनी पड़नी. रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनियाभर में 20 साल से कम उम्र की दस में से करीब एक लड़की को जबर्दस्ती बनाए गए यौन संबंध झेलने पड़े. 15 से 19 वर्ष आयुवर्ग की तीन में एक लड़की को (शादीशुदा या जिसकी शादी होने वाली थी) अपने पति या साथी की भावनात्मक, शारीरिक या यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा.

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यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एंथनी लेक ने कहा, 'ये बेचैन कर देने वाले तथ्य हैं. कोई सरकार या माता-पिता उन्हें नहीं देखना चाहेंगे.' उन्होंने कहा, 'लेकिन हम जब तक उस सच्चाई का सामना न करें जो क्रोध दिलाने वाला प्रत्येक आंकड़ा पेश करता है, तब तक उन बच्चों की जिंदगी खराब होती रहेगी, जिन्हें एक सुरक्षित व संरक्षित बचपन पाने का अधिकार है. हम कभी इस मानसिकता को नहीं बदल पाएंगे कि बच्चों पर होने वाली हिंसा आम और क्षम्य है. यह दोनों में से कोई नहीं है.'

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