
एक फरवरी को बजट के भाषण में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जब देश के अग्रणी शैक्षणिक संस्थानों में निवेश बढ़ाने के लिए रिवाइटलाइजिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड सिस्टम्स इन एजुकेशन (राइज) नामक अभियान को लॉन्च करने का प्रस्ताव रखा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मेज थपथपाकर इसका स्वागत किया. वित्त मंत्री ने कहा, ''शोध और इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए अगले चार साल में इस अभियान में 1,00,000 करोड़ रु. के निवेश की योजना है.
इसको फंड करने के लिए हायर एजुकेशन फाइनेंसिंग एजेंसी (हेफा) को उपयुक्त तरीके से तैयार किया जाएगा." लेकिन जहां बजट और हेफा के जरिए निवेश को लेकर केंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपा रही थी, वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (डूटा) विरोध-प्रदर्शन की तैयारी कर रहा था.
8 फरवरी को मानव संसाधन विकास (एमएचआरडी) मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संवाददाता सम्मेलन में राइज की खूबी बताते हुए कहा कि इससे संस्थानों की गुणवत्ता बढ़ेगी तो ठीक इसी दिन डूटा ने विरोध-प्रदर्शन किया.
दरअसल, सरकार ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों और आइआइटी, आइआइएम जैसे अग्रणी संस्थानों को अपने फंड का कुछ हिस्सा खुद जुटाने की योजना बनाई है. और इसको लेकर शिक्षक-संघों और छात्र संगठनों की भौंहें तन गई हैं. अब इन संस्थानों को सीधे सरकार से फंड नहीं मिलेगा बल्कि हेफा के जरिए ही फंड मिलेगा. सरकार ने सितंबर 2016 में ही हेफा के गठन के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी थी.
यह केनरा बैंक की साझेदारी में बना है, जो मार्केट से भी फंड हासिल करेगा. नई नीति के तहत यह योजना है केंद्रीय विश्वविद्यालयों को जहां हेफा से मिलने वाले कुल फंड का कम-से-कम 10 फीसदी खुद जुटाना होगा, वहीं बाकी 90 फीसदी सरकार चुकाएगी. वहीं आइआइटी, एनआइटी और आइआइएम जैसे संस्थानों को 25 फीसदी खुद जनरेट करना होगा.
डूटा के उपाध्यक्ष सुधांशु कुमार कहते हैं, ''यह साफ तौर पर उच्च शिक्षा से सरकार का हाथ खींचना है." विश्वविद्यालयों के मिलने वाले फंड को लेकर शिक्षक संघ की नाराजगी की वजह खुद शिक्षकों और प्रोफेसरों को मिलने वाले वेतन से भी जुड़ा है.
दरअसल, 30 जनवरी को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने सातवें वेतन आयोग के तहत पे-रीविजन को लेकर सभी विश्वविद्यालयों को पत्र लिखा कि इसे 13 जनवरी 2016 को भेजे गए वित्त मंत्रालय के दिशा-निर्देश से ही कार्यान्वित किया जाएगा. उसके मुताबिक, स्वायत्तत संस्थान के बतौर विश्वविद्यालयों को वेतन के लिए 30 फीसदी फंड खुद जुटाना होगा. इससे भी सरकार की नई फंडिंग नीति का खुलासा होता है.
सुधांशु का कहना है, ''सरकारी विश्वविद्यालय भला फंड कहां से जुटाएंगे, ये कोई मुनाफा कमाने वाले निजी कंपनी तो हैं नहीं?" शिक्षकों के विरोध में सातवें वेतन आयोग के अनुसार, अपने वेतनमान में कथित विसंगितयों, उसमें देरी, प्रमोशन जैसे विभिन्न मुद्दे शामिल हैं.
वहीं शिक्षकों-कर्मचारियों की एक प्रमुख मांग सरकार की ओर से 100 फीसदी फंड देना जारी रखना है. एमएचआरडी के राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने इंडिया टुडे से कहा, ''कॉर्पोरेट रिसर्च के जरिए संस्थान फंड अर्जित कर सकें, ऐसी व्यवस्था है. मसलन, फैकल्टी और छात्र कॉर्पोरेट कंपनियों के साथ रिसर्च करके फंड जनरेट कर सकते हैं." लेकिन डूटा के पूर्व अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्र कहते हैं, ''30 प्रतिशत रकम कोई छोटी रकम नहीं है."
हालांकि सुधांशु बताते हैं, ''यूजीसी, एमएचआरडी और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के बीच एक मेमोरेंडम साइन करने की योजना सरकार ने बनाई है. इसके फॉर्मेट में 30 फीसदी के फंड जनरेशन के तरीके में एलम्नाइ, यूजर चार्ज और फीस बढ़ाने के उपाय बताए गए हैं. अब एलुमिनी के फंड से कहीं संस्थान चल सकता है क्या?" वहीं यूजर चार्ज और फीस बढ़ाने से जाहिर तौर पर छात्र प्रभावित होंगे.
इस बार का बजट भी कुछ ऐसी ही कहानी बयान करता है. उच्च शिक्षा के कुल बजट में जहां बेहद मामूली बढ़त हुई है, वहीं केंद्रीय विश्वविद्यालयों सरीखे स्वायत्त संस्थानों की बजट में कटौती (देखें बॉक्स) ने भी शिक्षकों और छात्रों को अंदेशों से भर दिया है.
घटता जाए बजटः उच्च शिक्षा के कुल बजट में जहां इस साल मामूली वृद्धि हुई है, वहीं कई स्वायत्त संस्थआनों की बजट कटौती की गई है.देश के कुल बजट में शिक्षा की भागीदारी भी लगातार घटती जा रही है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की छात्रसंघ अध्यक्ष गीता कुमारी कहती हैं, ''सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सभी के लिए शिक्षा अफोर्डेबल बनाए लेकिन वह तो इसका उल्टा करने को विश्वविद्यालयों को मजबूर कर रही है."
कुछ ऐसा ही तर्क आदित्यनारायण मिश्र का है. वे सरकार के राइज अभियान और हेफा के जरिए फंडिंग की नीति को उच्च शिक्षा के निजीकरण की कवायद बताते हैं. उनका कहना है, ''आजादी के बाद से अगर सामाजिक परिवर्तन संभव हो पाए हैं तो वे शिक्षा के जरिए ही हुए हैं, खासकर उच्च शिक्षा से.
सरकार ने इसका अनुदान लगातार कम करते हुए इसे ही कमजोर कर दिया. अब भाजपा सरकार दरअसल अनुदान आधारित शिक्षा को लोन आधारित शिक्षा बनाने पर तुली है."
वहीं यूजीसी के एक पूर्व चेयरमैन नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं कि फंड का कुछ हिस्सा खुद जनरेट करने की नीति से संस्थानों की स्वायत्तता प्रभावित होगी. हालांकि शिक्षाविद् और अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच के अध्यक्ष मंडल के सदस्य अनिल सदगोपाल का मानना है कि यह कोई नई नीति नहीं है.
नोटः 1- बजट करोड़ रु. में, इस बार एमएचआरडीका कुल बजट 85,010.29 करोड़ रु. है. जिसमें स्कूल एजुकेशन और लिटरेसी को 50,000करोड़ रु.और बाकी 35,010.29 करोड़ रु.उच्च शिक्षा के लिए.
वे कहते हैं, ''मोदी सरकार पिछले तीन साल से यही कर रही है. उसने आते ही आइआइटी, केंद्रीय विश्वविद्यालयों आदि संस्थानों को अपना फंड खुद जनरेट करने को कह दिया, वे एलम्नाइ, कॉर्पोरेट आदि से फंड जुटाएं. इसीलिए आइआइटी-आइआइएम वगैरह की फीस पिछले तीन साल में करीब तीन गुना बढ़ चुकी है.
कुल मिलाकर सरकार का फैसला यही है कि वह शिक्षा को फंडिंग नहीं करेगी." वे यह भी कहते हैं, ''वर्तमान सरकार का महामंत्र है कि जिसकी कुव्वत है तो शिक्षा पाए, जिसकी नहीं है वह शिक्षा से बाहर निकल जाए."
कुछ अग्रणी संस्थान तो फंडिंग जुटा भी सकते हैं लेकिन अधिकतर संस्थानों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों के लिए फंडिंग जुटाना टेढ़ी खीर साबित होगा. सुधांशु कहते हैं कि विश्वविद्यालयों के पास छात्रों की फीस बढ़ाने के सिवाय और कोई चारा नहीं रहेगा.
पिछले तीन साल में मोदी सरकार को छात्र और युवाओं का विरोध सबसे ज्यादा झेलना पड़ा है. अब अगर नई नीति की वजह से छात्रों पर असर पड़ता है तो सरकार को फिर उनके विरोध का सामना करना पड़ेगा.
इसके संकेत मिलने लगे हैं. पिछले दिनों डूटा के विरोध-प्रदर्शन में दिल्ली के शिक्षक-कर्मचारियों समेत जामिया मिल्लिया इस्लामिया, इग्नू और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय आदि विश्वविद्यालयों के छात्र भी शामिल हुए.
फिलहाल डूटा सरकार से भिड़ने को तैयार है. सुधांशु कहते हैं, ''असल में हमारे संस्थानों पर भी संकट आ गया है. सो, हम चुप नहीं रहेंगे. 16 फरवरी को हम एमएचआरडी के सामने प्रदर्शन करेंगे जिसमें विभिन्न संस्थानों के छात्र भी शामिल होंगे.
उसके बाद 27 फरवरी को डीयू में शिक्षकों की जनरल बॉडी मीटिंग रखी है. अगर सरकार अपने कदम से पीछे नहीं हटती है तो हम फिर और बड़े स्ट्राइक की ओर बढ़ेंगे." जाहिर है, सरकार के लिए आगे की राह आसान नहीं और शिक्षक तथा छात्र आर-पार के मूड में हैं.
—साथ में सुजीत ठाकुर
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