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कहीं आप भी तो गर्भावस्‍था से जुड़ी इन अजीबोगरीब बातों पर भरोसा नहीं करते!

गर्भवती होने के साथ ही महिला को नुस्‍खे बताने वालों की भीड़ जुट जाती है. जिनमें से कुछ वाकई काम के होते हैं लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि उनमें से ज्‍यादातर अंधविश्‍वास और सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होते हैं.

aajtak.in
  • नई दिल्‍ली,
  • 19 जून 2015,
  • अपडेटेड 5:22 PM IST

गर्भवती होने के साथ ही गर्भवती महिला को सलाह और नुस्‍खे बताने वालों की भीड़ जुट जाती है, जिनमें से कुछ सलाह और नुस्‍खे वाकई काम के होते हैं, लेकिन उनमें से ज्‍यादातर अंधविश्‍वास और सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होते हैं.

गर्भवती महिलाएं, ऐसे समय में शारीरिक और मानसिक बदलाव से गुजर रही होती हैं, ऐसे में एक अंदरूनी डर हमेशा बना रहता है और यही डर उन्‍हें इन भ्रांतियों को मानने के लिए मजबूर करता है.

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मिथ-1. गर्भवती महिला के सामने सुंदर से बच्‍चे की तस्‍वीर लगाने से होने वाला बच्‍चा भी खूबसूरत पैदा होता है.

वास्‍तविकता- दरअसल, ऐसा कुछ भी नहीं है. गर्भ में पलने वाले बच्‍चे के नैन-नक्‍श जीन पर निर्भर करते हैं. हां, जहां तक सुंदर बच्‍चे की तस्‍वीर आंखों के सामने लगाने की बात है, वो इस लिहाज से अच्‍छा है कि अच्‍छी तस्‍वीर देखकर गर्भवती महिला को अच्‍छा महसूस होता है और ऐसी स्थिति में खुश रहना काफी अहम होता है.

मिथ-2. सातवें महीने के बाद नारियल पानी पीने से बच्‍चे का दिमाग भी नारियल जितना बड़ा हो जाता है.

वास्‍तविकता- ये बात सरासर गलत है. आश्‍चर्य तो इस बात का है कि ये बात आई कहां से. दरअसल, नारियल के पानी में पोटैशियम भरपूर होता है, लेकिन वो किसी भी तरह से मस्तिष्‍क के आकार के लिए जिम्‍मेदार नहीं होता है.

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मिथ-3. सुबह का पहला निवाला सफेद खाना चाहिए. इससे बच्‍चे का रंग गोरा होता है.

वास्‍तविकता- ये भी अपने आप में एक बहुत ही बड़ा मिथ है. जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं कि गर्भ में पलने वाले बच्‍चे का रंग-रूप जीन पर निर्भर करता है, ऐसे में आप चाहे सफेद खाएं या फिर काला बच्‍च्‍ो के रंग पर कोई असर नहीं पड़ता है.

मिथ-4. ग्रहण के दौरान गर्भवती महिला को छिप जाना चाहिए और किसी भी प्रकार की गतिविधि से बचना चाहिए.

वास्‍तविकता- गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं को ग्रहण के दौरान कमरे में चुपचाप बैठ जाने की सलाह दी जाती है. पर सोचने वाली बात ये है की ग्रहण एक निश्चित प्रक्रिया है और इसका बच्‍चे के जन्‍म पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है. हालांकि, इसका मतलब ये बिल्‍कुल नहीं है कि ग्रहण को बेपरवाह होकर नंगी आंखों से देखा जाए लेकिन, ये बात केवल गर्भवती महिलाओं के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए लागू होती है.

मिथ-5. गर्भ के आकार से बच्‍चे का लिंग पता चल जाता है.

वास्‍तविकता- ये भी अपने आप में एक बड़ा ही दिलचस्‍प मिथ है. गर्भ का आकार, गर्भ में बच्चे की पोजीशन के बारे में बताता है. गर्भ के आकार का बच्चे के लिंग से कोई कनेक्शन नहीं है.

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मिथ-6. मां की रंगत से बच्‍चे के लिंग का पता चल जाता है.

वास्‍तविकता- दरअसल, गर्भवती की रंगत पूरी तरह उसके हार्मोन्‍स पर निर्भर करती है. गर्भावस्‍था के दौरान महिलाओं के हार्मेन्‍स में काफी बदलाव आते हैं, जिसकी वजह से जहां कुछ महिलाओं की रंगत निखर जाती है तो कुछ सांवली हो जाती हैं और कुछ ऐसी भी होती हैं, जिनके चेहरे पर धब्‍बे बन जाते हैं. इससे बच्‍चे का लिंग बता देना वाकई मिथ ही है.

मिथ-7. घी, मक्‍खन और तेल का अधिक सेवन करने से बच्‍चे का जन्‍म आराम से हो जाता है.

वास्‍तविकता- ऐसा कुछ भी नहीं है. घी, मक्‍खन बच्‍चे के जन्‍म को आरामदायक बनाने में मददगार नहीं होते हैं. बल्कि इनके अति सेवन से शरीर में कैलोरी की मात्रा काफी अधिक हो जाती है और एक बार बच्‍चे का जन्‍म हो जाने के बाद उसे कम करना काफी मुश्किल हो जाता है.

मिथ-8. गर्भवती महिला को अपने नियमित आहार से दोगुना खाना चाहिए क्‍योंकि उसे सिर्फ अपने लिए नहीं बच्‍चे के लिए भी खाना होता है.

वास्‍तविकता- ये शायद सबसे सामान्‍य मिथ है, लेकिन पूरी तरह से सच नहीं. माना कि आपके बच्‍चे को आपसे ही पोषण मिलता है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने आहार से दोगुना आहार लें. गर्भवती महिला को अपने दैनिक आहार में 300 कैलोरी का इजाफा करना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि वो तैलीय खाने के बजाय ज्‍यादा से ज्‍यादा पौष्टिक आहार ले.

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