
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प मोड़ पर आ पहुंचा है. मतदान से ठीक दस दिन पहले बीजेपी ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप वरिष्ठ नेता प्रेम कुमार धूमल के नाम का ऐलान कर सबको चौंका दिया है. धूमल के नाम की घोषणा के बाद अब मुकाबला दो राष्ट्रीय दलों के साथ, उनके दो बुजुर्ग नेताओं के बीच हो गया है.
बीजेपी ने धूमल को चेहरा बनाकर न सिर्फ हिमाचल के चुनावी समीकरणों को बदलने की ट्रिक अपनाई है, बल्कि पार्टी पर 75 साल की उम्र सीमा तक चुनाव लड़ने के लगे तमगे को भी दूर किया गया है. लेकिन इससे भी बड़ा सवाल ये है कि क्या बीजेपी को हार के डर ने ऐसा करने पर मजबूर किया है?
दरअसल, ये सवाल इसलिए क्योंकि 2015 में दिल्ली में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला था. दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी जबरदस्त लीड कर रही थी. अरविंद केजरीवाल के चेहरे के साथ आप चुनावी रण में बीजेपी-कांग्रेस से आगे निकलती नजर आ रही थी. वहीं बीजेपी के पास केजरीवाल जितना कोई मजबूत फेस भी नहीं था. अचानक पार्टी ने देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी को सीएम पद का उम्मीदवार बना दिया.
दो हफ्ते पहले किया था बेदी के नाम का ऐलान
दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 7 फरवरी 2015 को मतदान होना था. चुनाव प्रचार अपने चरम पर था. नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने पूरी ताकत झोंकी हुई थी. इसी दरम्यान 20 जनवरी को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने किरण बेदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषणा की. नतीजा ये रहा कि किरण बेदी ने कृष्णा नगर सीट से चुनाव लड़ा और वो अपनी सीट भी नहीं जीत पाईं.
बीजेपी ने परंपरा को बदला
हिमाचल के दो बार सीएम रह चुके प्रेम कुमार धूमल को सीएम कैंडिडेट बनाकर बीजेपी ने चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम घोषित न करने की अपनी परंपरा को भी बदला है. 2017 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हुए लेकिन पार्टी ने किसी भी सूबे में चुनाव से पहले सीएम फेस की घोषणा नहीं की थी. यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा में चुनाव से पहले कोई फेस सामने नहीं लाया गया. यहां तक कि सबको चौंकाते हुए बीजेपी ने यूपी में योगी आदित्यनाथ, गोवा में मोदी कैबिनेट से निकालकर मनोहर पर्रिकर और उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम बनाया.
महाराष्ट्र-हरियाणा में भी नहीं दिया था नाम
इससे पहले केंद्र में मोदी सरकार बनने के तुरंत बाद महाराष्ट्र का चुनाव भी बीजेपी ने मोदी के फेस पर ही लड़ा और जीत दर्ज की. जिसके बाद देवेंद्र फडणवीस को सीएम बनाया गया. हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मजबूत कांग्रेसी नेतृत्व को परास्त कर बीजेपी ने अनुभवहीन मनोहर लाल खट्टर को सूबे की कमान सौंपी.
ऐसे में हिमाचल प्रदेश के लिए घोषणा पत्र जारी करने के बाद सीएम फेस के नाम की घोषणा थोड़ा चौंकाने वाली है. सूत्रों के मुताबिक, 9 नवंबर को मतदान से ठीक पहले पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अचानक ये फैसला लिया है. बताया जा रहा है कि 31 अक्टूबर को राजगढ़ की रैली से धूमल के नाम का ऐलान करने से पहले अमित शाह ने मंगलवार को धूमल को शिमला तलब किया था. धूमल अपने गृह जनपद हमीरपुर में चुनावी रैली कर रहे थे, जहां से उन्हें शिमला बुलाकर अमित शाह ने उनसे मीटिंग की. बताया जा रहा है कि इसी के बाद धूमल को सीएम उम्मीदवार बनाने पर अंतिम निर्णय किया गया.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि वीरभद्र सिंह हिमाचल में बड़ा कद रखते हैं. कांग्रेस ने उनके नाम का ऐलान कर चुनावी माहौल को अपनी तरफ आकर्षित करने का कार्ड खेला था, जिसका असर भी नजर आ रहा था. माना जा रहा है कि इसी के चलते बीजेपी को भी अंतिम वक्त पर सूबे के सबसे भरोसेमंद और मजबूत चेहरे प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व का ऐलान करना पड़ा.