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हिमाचल में कांग्रेस और बीजेपी के 147 बागी खेल बिगाड़ने को तैयार

हिमाचल विधानसभा चुनाव में बागी सियासी गणित बिगाड़ने को तैयार हैं. इस बार कुल 147 बागी प्रत्याशियों ने मैदान में ताल ठोक दी है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
दिनेश अग्रहरि/सतेंदर चौहान
  • चंडीगढ़,
  • 28 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 11:41 AM IST

हिमाचल विधानसभा चुनाव में बागी सियासी गणित बिगाड़ने को तैयार हैं. इस बार कुल 147 बागी प्रत्याशियों ने मैदान में ताल ठोक दी है. टिकट न मिलने से नाराज ये उम्मीदवार अपनी-अपनी पार्टियों से बगावत कर चुनावी दंगल में कूदे हैं. कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी से टिकट न मिलने के कारण बगावत पर उतरे प्रत्याशियों ने निर्दलीय नामांकन पत्र भर कर यह सिद्द कर दिया है कि दोनों ही पार्टियों में बगावत पर पूरी तरह से नियंत्रण नही हो पाया है.

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बागियों से निपटने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों ने अपने बड़े दिग्गज नेताओं को हिमाचल भेजा. मिन्नतें, अपील, लालच, चेतावनी सब तरह के हथकंडे अपनाए गए, लेकिन सिर्फ 10 के करीब बागी ही संतुष्ट हुए हैं.

भाजपा के वरिष्ठ नेता और हिमाचल भाजपा के चुनाव प्रभारी थावर चंद गहलोत का दावा है कि भाजपा के बागी प्रत्याशियों को मनाने का प्रयास किया गया है. इनमे से कई लोग पार्टी के साथ वापिस शमिल हो कर अपना नामांकन वापिस भी ले चुके हैं. भाजपा का दावा है की सभी बागियों के साथ पार्टी संपर्क में है और सभी को जल्द ही माना लिया जाएगा और सभी पार्टी के लिए काम करके पार्टी को भारी बहुमत से जीत दिलाएंगे.

14 सीटों पर होगा असर

नामांकन वापसी के आखिरी दिन 41 निर्दलीय उम्मीदवारों के नाम वापिस लेने के बाद अब मैदान में 111 निर्दलीय डट गए हैं.14 सीटें ऐसी हैं जहां पर कांग्रेस और बीजेपी के बागी किसी भी पार्टी का खेल खराब कर सकते हैं. ऐसे में दोनों ही प्रमुख पार्टियों के लिए बगावत का झंडा बुलंद करने वाले सिरदर्द साबित हो रहे हैं. आखिरी दिन दोनों ही पार्टियां अपनों का मनाने का प्रयास करती हैं मगर ज्यादा कामयाबी नहीं मिली. अब 9 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए कुल 348 प्रत्याशी मैदान में हैं. पिछले विधानसभा चुनाव यानी 2012 में 459 उम्मीदवारों ने किस्मत आजमाई थी. कैसे समीकरण बिगाड़ सकते हैं आज़ाद उम्मीदवार

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कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के बागी हवा का रुख किसी भी तरफ मोड़ सकते हैं. इसका सीधा सबूत है 2012 का चुनाव. इस चुनाव में 152 आजाद उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे, जिनमें से सिर्फ 5 विधानसभा तक पहुंचने में कामयाब हुए, लेकिन इनमें से कइयों ने जिताऊ उम्मीदवारों की कमर तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी.17 सीटें ऐसी थीं जिनमें बागियों ने 5000 से ज्यादा वोट लेकर पूरा समीकरण बदल कर रख दिया.

उधर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरीश रावत भी केंद्र से बागियों को मनाने शिमला आये थे. उन्होंने दावा किया की कांग्रेस के ज्यादातर बागियों ने नामांकन वापिस ले लिया है. उन्होंने कहा की 2-3 लोगों ने नहीं माना, लेकिन पार्टी को अभी भी उम्मीद है की जल्द ही पार्टी उन्हें मनाने में सफलता हासिल कर लेगी. कांग्रेस के लिए राहत की बात ये है हमीरपुर जिला की भोरंज सीट पर कांग्रेस के बागी प्रेम कौशल ने अपना नामांकन वापस ले लिया है. इसी तरह से शिमला ग्रामीण में भी कांग्रेस के दो बागियों खेमराज और देवेंद्र ठाकुर ने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं.

परिवारवाद बना प्रमुख मसला

गौरतलब है कि हिमाचल की चुनावी रणभूमि में कांग्रेस और भाजपा दोनों पार्टियाँ एक दूसरे पर वार करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही हैं और हर पैंतरा आज़मा रहीं हैं.  इसी सिलसिले में परिवारवाद एक अहम मुद्दा बन गया है, जहां बीजेपी ने परिवारवाद और भ्रष्टाचार को कांग्रेस की समाप्ति का कारण बताया है तो वहीं कांग्रेस ने भाजपा को अपने गिरेबान में झांकने की सलाह दी है.

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कांग्रेस में इस समय आधा दर्जन नेता पुत्र व पुत्रियां चुनाव लड़ रहे हैं, जिनमें मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह और कैबिनेट मंत्री कौल सिंह ठाकुर और उनकी बेटी चंपा ठाकुर, एक साथ एक ही पार्टी से चुनावी दंगल में छलांग लगा चुके हैं. इतना ही नही कांग्रेस में परिवारवाद इस तरह से हावी हो चुका है की विधान सभा अध्यक्ष बीबीएल बुटेल ने अपनी सीट छोड़ पुत्रमोह में अपने बेटे आशीष बुटेल को पालमपुर सीट से टिकेट का दावेदार बना डाला. तो वहीँ बंजार विधान सभा क्षेत्र से पूर्व कैबिनेट मंत्री सवार्गीय कर्ण सिंह के बेटे आदित्य सिंह को इस सीट से मैदान में उतारा है.

उधर वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह का कहना है की भाजपा परिवारवाद की बात न ही करे तो अच्छा होगा. उन्होंने कहा कि जिनके घर शीशे के हों वो दूसरों पर पत्थर नही फेंकते. उन्होंने भाजपा के बहाने धूमल पर निशाना साधा और कहा कि उन्होंने एक्टिव राजनीति में रहते हुए अपने बेटे अनुराग ठाकुर को लॉन्च किया है. अगर केंद्र की ही बात करें तो राजनाथ सिंह ने अपने बेटे को राजनीति में उतारा और आज वे विधायक हैं. गुजरात में वसुंधरा राजे के बेटे आज सांसद हैं. उन्होंने साफ़ किया की जहां तक वंशवाद की बात है तो मैं पिछले 5 साल से कांग्रेस संगठन में काम कर रहा हूं. युवा कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर काम किया है. साथ ही इस दौरान प्रदेश का दौरा कर कोने-कोने में युवाओं की आवाज को सुना है.

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