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कहानी जनता परिवार के बिखराव भरे अतीत की

जनता परिवार का अतीत हमेशा से ही मतभेदों भरा रहा है. एकता और एकजुटता की बजाए कलह-कटुता और बिखराव ही जनता दल की कुंडली का लिखा अमिट लेख. आइए जरा नजर डालते हैं जनता दल की बुनियाद से जुड़े नेताओं के बिखराव भरे अतीत पर.

पहले बिखरे, अब हुए एकजुट पहले बिखरे, अब हुए एकजुट
aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 15 अप्रैल 2015,
  • अपडेटेड 5:11 PM IST

जनता परिवार का अतीत हमेशा से ही मतभेदों भरा रहा है. एकता और एकजुटता की बजाए कलह-कटुता और बिखराव ही जनता दल की कुंडली का लिखा अमिट लेख. आइए जरा नजर डालते हैं जनता दल की बुनियाद से जुड़े नेताओं के बिखराव भरे अतीत पर.

संघर्ष के सिपाही आज मिलने के लिए निकल पड़ें, फिर से उस उजड़े चमन को सजाने जिसकी रौनक अपने ही हाथों से अक्सर मटियामेट करते रहे हैं. इमरजेंसी के बाद देश में जनता सरकार बनीं तो उसी वक्त से जनता परिवार में झगड़े की आग ऐसी सुलगी की लोकनायक जयप्रकाश नारायण का संपूर्ण क्रांति का सपना उन्हीं की आंखों के सामने चकनाचूर हो गया. सत्ता का नशा क्रांति पर काबिज हो गया जिसकी वजह से समाजवादी कुनबा धीरे-धीरे जातीय गोलबंदी की सियासत और वंशवादी गुटों में तब्दील होता चला गया.

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जनता सरकार में मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के बीच बंटवारा हो गया. मोरारजी की सरकार से अलग होकर चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार गठित कर ली. जनता सरकार के पतन के बाद जनता पार्टी का समाजवादी कुनबा भी बिखर गया. जिसे जहां राजनीति का रास्ता मिला वो उसी पार्टी के जरिए राजनीति करने लगा और आखिर में राजीव गांधी सरकार के वक्त बोफोर्स की तोप से निकले घोटाले के कथित जिन्न ने नए सिरे से जनता परिवार को एकजुट होने का मौका दिया. राजीव सरकार में वित्त मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस से बगावत कर दी तो सारे युवा तुर्क उनकी छतरी के नीचे आकर खड़े हो गए. जनता दल की बुनियाद पड़ गई.

11 अक्टूबर 1988 को वीपी सिंह की अगुवाई में जनता दल की बुनियाद पड़ी. जनता पार्टी, जनमोर्चा और लोकदल का जनता दल में विलय हो गया. लेकिन वीपी सिंह सरकार बनने के बाद जनता दल में पहली टूट चंद्रशेखर की अगुवाई में हुई. चंद्रशेखर ने अलग होकर जनता दल समाजवादी का गठन किया. कांग्रेस के समर्थन से वो प्रधानमंत्री बने. हालांकि चंद्रशेखर सरकार चार महीने में ही गिर गई. जनता दल समाजवादी का नाम बदलकर समाजवादी जनता पार्टी हो गया.

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फिर तो विभाजन का सिलसिला ही चल पड़ा. अहम की लड़ाई में दिल टूटने के साथ ही दल भी टुकड़े टुकड़े होता चला गया. कोई नेता इधर गया तो कोई उधर. वीपी सिंह, लालू यादव, नीतीश कुमार और शरद यादव के साथ देवेगौड़ा जनता दल को बचाने में जुटे लेकिन कोई तरकीब काम नहीं आई.

जनता दल से अलग हुए चंद्रशेखर और मुलायम सिंह यादव में भी फूट पड़ गई. 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी जनता पार्टी से अलग होकर समाजवादी पार्टी का गठन कर लिया. 1992 में चौधरी अजीत सिंह ने भी जनता दल से अलग होकर आरएलडी नामकी नई पार्टी बना ली. ये जनता दल में दूसरी टूट थी.

1994 में जनता दल से अलग होकर जॉर्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार ने समता पार्टी की बुनियाद रखी. ये जनता दल की तीसरी टूट थी.

1996 में कर्नाटक के नेता रामकृष्ण हेगड़े भी जनता दल से अलग हो गए, उन्होंने लोकशक्ति नामक नई पार्टी का गठन कर लिया. ये जनता दल की चौथी टूट थी.

1997 में लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर आरजेडी का गठन किया. ये जनता दल में पांचवी बड़ी टूट थी.

1998 में नवीन पटनायक जनता दल से अलग हो गए. ओडिशा में बीजेडी का गठन हुआ. ये जनता दल की छठी बड़ी टूट थी.

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1999 में बचे-खुचे जनता दल के भी दो हिस्से बन गए. देवेगौड़ा की अगुवाई में जनता दल सेक्युलर और शरद यादव की अगुवाई में जनता दल यूनाइटेड. ये बिखराव का सातवां अध्याय था जिसमें जनता दल का अस्तित्व हमेशा के लिए खत्म हो गया.

तो ये थी जनता दल की यात्रा के आखिरी पड़ाव तक पहुंचने की छोटी सी कहानी. बंटवारे का सिलसिला आगे भी चलता रहा और जनता दल से निकलकर बनी पार्टियों में भी बिखराव एक सिरे से दूसरे सिरे तक बढ़ता ही गया. मसलन रामविलास पासवान ने जेडीयू से अलग निकलकर लोकजनशक्ति पार्टी का गठन कर लिया और जनता परिवार के नेताओं ने एक एककर सत्ता के लिए ना-ना करते हुए भी प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाली एनडीए का दामन भी थाम लिया.

सत्ता के लिए विचार को पीछे छोड़ने के इस सफर में एकजुटता की जरूरत भी वक्त वक्त पर चंद नेताओं ने महसूस की. जॉर्ज फर्नांडीज और नीतीश कुमार की अगुवाई वाले समता पार्टी का विलय शरद यादव की अगुवाई वाली जेडीयू में हो गया. यानी बिखरे जनता परिवार में मिलन की प्रक्रिया भी शुरू हुई जो अब फिर से परवान चढ़ रही है.

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