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होलाष्‍टक शुरू, जानें क्‍यों माना जाता है अशुभ...

होलाष्टक शब्द सुनते ही होली आने की आहट मन में जाग जाती है. लेकिन इस समय को शुभ नहीं माना जाता. जानिए क्‍यों है ऐसा...

आज से होलाष्‍टक आज से होलाष्‍टक

होलाष्टक शब्द सुनते ही होली आने की आहट मन में जाग जाती है. जी हां, होली से आठ दिन पहले फाल्गुन महीने की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक की शुरुआत हो जाती है. इस साल होलाष्टक 5 मार्च से शुरु होकर 12 मार्च तक रहेगा.

क्या है होलाष्टक
होलाष्टक को समझने के लिए पहले इसके शाब्दिक अर्थ को समझते हैं. होलाष्टक यानी होला और अष्टक से मिलकर बना शब्दल. होला का अर्थ होली से है और अष्टक यानि आठ दिन. सरल शब्दों में कहा जाए तो होली से पहले के 8 दिन होलाष्टक कहलाते हैं. होलाष्टक शुरु होते ही लोग होली की तैयारी शुरु कर देते हैं. होलिका पूजन के लिए होली के 8 दिन पहले जिस स्थान पर होलिका दहन करना है, उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करके होली का डंडा स्थापित कर दिया जाता है और सूखी लकड़ियां, उपले एकत्रित करके हर दिन लोग उसी स्थान में जमा करते जाते हैं ताकि होलिका दहन के दिन बड़ा ढेर इकट्ठा हो सके.

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क्यों अशुभ माना जाता है होलाष्टक
धर्म ग्रंथों में होलाष्टक के 8 दिन मांगलिक कार्यों के लिए अशुभ माने जाते हैं. इसके पीछे कई मान्यताएं हैं. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव की तपस्या भंग करने की कोशिश करने पर भोलेनाथ से कामदेव को फाल्गुन महीने की अष्टमी को भस्म कर दिया था. प्रेम के देवता कामदेव के भस्मा होते ही पूरे संसार में शोक की लहर फैल गई थी. तब कामदेव की पत्नी रति ने शिवजी से क्षमा याचना की और भोलेनाथ ने कामदेव को फिर से जीवित करने का आश्वासन दिया. इसके बाद लोगों ने रंग खेलकर खुशी मनाई थी.

कुछ ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि होली के 8 दिन पहले से प्रहलाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप ने काफी यातनाएं देना शुरू कर दिया था. आठवें दिन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बिठाकर मारने का प्रयास किया गया था लेकिन आग में ना जलने का वारदान पाने वाली होलिका जल गई थी और बालक प्रह्लाद बच गया था. ईश्वर भक्त प्रह्लाद के यातना भरे 8 दिनों को शुभ नहीं माना जाता है इसलिए कोई भी शुभ काम ना करने की परंपरा है.

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