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होलाष्टक शुरू, अब आठ दिन नहीं होंगे शुभ संस्कार

फाल्गुन माह की पूर्णिमा (16 मार्च) को होलिका दहन किया जाएगा और इसके अगले दिन 17 मार्च को धुलेण्डी (होली) पर रंग-गुलाल खेलकर खुशियां मनाई जाएगी. शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन के आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाता है. इसके अनुसार होलाष्टक लगने से होली तक कोई भी शुभ संस्कार संपन्न नहीं किए जाते.

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aajtak.in
  • रायपुर,
  • 10 मार्च 2014,
  • अपडेटेड 9:45 AM IST

फाल्गुन माह की पूर्णिमा (16 मार्च) को होलिका दहन किया जाएगा और इसके अगले दिन 17 मार्च को धुलेण्डी (होली) पर रंग-गुलाल खेलकर खुशियां मनाई जाएगी. शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन के आठ दिन पूर्व होलाष्टक लग जाता है. इसके अनुसार होलाष्टक लगने से होली तक कोई भी शुभ संस्कार संपन्न नहीं किए जाते.

शास्त्रीय परंपरा के अनुसार शनिवार 8 मार्च को होलाष्टक शुरू हो गया और अब 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर रोक लग गई है. ये शुभ कार्य धुलेण्डी के बाद ही शुरू होंगे. होलाष्टक के दौरान ही तारा अस्त होने के चलते विवाह संस्कार अब लगभग डेढ़ महीने बाद यानी 14 अप्रैल के बाद ही किए जा सकेंगे.

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यह भी मान्यता है कि होली के पहले के आठ दिनों अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक प्रहलाद को काफी यातनाएं दी गई थीं. यातनाओं से भरे उन आठ दिनों को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई. हिन्दू धर्म में किसी भी घर में होली के पहले के आठ दिनों में शुभ कार्य नहीं किए जाते.

पं.मनोज शुक्ला कहते हैं कि होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद व उनके पिता अत्याचारी हिरण्यकश्यप की कथा से है. स्कंद पुराण के अनुसार राक्षसी प्रवृत्ति के राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से ईर्ष्या व जलन की भावना रखता था. उसके राज्य में जो कोई भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता था उसे मौत की सजा सुनाई जाती थी. राजा के फरमान से डरकर उसके राज्य में कोई भी भगवान विष्णु की पूजा नहीं करता था.

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कथा प्रसंग के अनुसार राजा हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहलाद भगवान विष्णु का भक्त था. अपने पुत्र प्रहलाद की विष्णु भक्ति के बारे में जब राजा को पता चला तो उसने प्रहलाद को समझाया मगर प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति करनी नहीं छोड़ी. इससे क्रोधित होकर राजा ने अपने पुत्र को मृत्युदंड की सजा सुनाई.

राजा के आदेश पर सैनिकों ने भक्त प्रहलाद को अनेक यातनाएं दीं. उसे मरने के लिए जंगली जानवरों के बीच छोड़ा, नदी में डुबो दिया, ऊंचे पर्वत से भी फेंका गया. हर सजा पर प्रहलाद भगवान की कृपा से बच गया. अंत में राजा ने अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाकर प्रहलाद को जिंदा जला डालने का हुक्म दिया.

राजा की बहन होलिका को वरदान था कि वह अग्नि में भी भस्म नहीं होगी. प्रभु कृपा से प्रहलाद तो बच गया मगर होलिका जल गई. उस दिन से होलिका दहन की परंपरा शुरू हुई.

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