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वायु प्रदूषण: कैसे आई बीजिंग की सांस में सांस

स्मॉग से लड़ने और वायु प्रदषण के स्तर में कमी लाने के लिए चीन ने चार-सूत्रीय असरदार योजना बनाई है. कारों पर पाबंदी लगा दी, कोयला कारखाने बंद कर दिए और परमाणु बिजली को बढ़ावा देना शुरू किया-क्या भारत चीन के नक्शेकदम पर चलकर वायु प्रदूषण के खिलाफ हल्ला बोलेगा?

aajtak.in
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  • 10 मार्च 2015,
  • अपडेटेड 12:32 PM IST

वर्ष 2013 की सर्दियों में दो हफ्तों तक बीजिंगवासी सुबह जागते, तो पाते कि आसमान खतरनाक धुंध के गुबार से भरा हुआ है. उस पूरे पखवाड़े वे सूरज के दर्शन को तरस गए. न सूर्योदय, न सूर्यास्त. किशोरों और बच्चों ने जब हांफते और जलते गलों में बेचैनी की शिकायत की, तो मजबूर होकर स्कूल बंद करने पड़े.

बीजिंग के बेतरतीब पसरे सरकारी अस्पतालों में भीड़ टूट पड़ी. उसे 'हवाई कयामत' कहा गया. जब वह अपने चरम पर थी, तब बीजिंग के बाल चिकित्सालय में रोज 9,000 बच्चों का इलाज होता था. 13 जनवरी की रात प्रदूषण चोटी पर पहुंच गया. उस रात सबसे ज्यादा नुक्सानदायक माने जाने वाले 2.5 माइक्रोमीटर से भी सूक्ष्म प्रदूषक कण पीएम 2.5 का घनत्व हवा में रिकॉर्ड 755 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इसकी जितनी मात्रा को 'सुरक्षित' बताता है, यह उससे 30 गुना ज्यादा थी.
व्यवसायी पैन शियी के लिए 2013 के प्रदूषण की फांस दूसरा निर्णायक मोड़ थी. पहला मोड़ एक साल पहले 2011 की शरद ऋतु में आया था. तभी उन्होंने वह काम शुरू किया, जिसे अब वायु प्रदूषण के खिलाफ चीन के सबसे पहले जन जागरूकता अभियान के तौर पर याद किया जा सकता है.

पैन पर्यावरण अभियान चलाने वाले खांटी कार्यकर्ताओं की तरह नहीं हैं. यह गंजे और चश्माधारी व्यवसायी दिन में एक रियल एस्टेट कंपनी एसओएचओ चाइना के अरबपति सह-संस्थापक हैं. असल में बीजिंग में एसओएचओ की भड़कीली इमारतों को कुछ लोग तीव्र शहरीकरण की तमाम बुराइयों का प्रतीक मानने लगे थे. लेकिन चीन का ट्विटर मानी जाने वाली सोशल वेबसाइट साइनो वेईबो पर अपने सत्तर लाख फॉलोवर्स को भेजा गया उनका एक ट्वीट रातोरात एक उभरते हुए आंदोलन का नामुमकिन-सा चेहरा बन गया.
पैन ने वेईबो के यूजर्स से वोट करने को कहा कि प्रदूषण की समस्या को वे कितना गंभीर मानते हैं. यही नहीं, उन्होंने मांग की कि सरकार पीएम2.5 के आंकड़े रोज सार्वजनिक तौर पर जाहिर करे. उस वक्त तक बीजिंगवासियों को केवल अमेरिकी दूतावास के आंकड़े मिलते थे, जो ट्विटर पर पोस्ट किए जाते थे और इस वेबसाइट को सरकार ने बंद कर रखा था.
पैन ने कहा कि अगर उन्हें अच्छी तादाद में लोगों का समर्थन मिला, तो वे संसद के ऊपरी सदन का सदस्य होने के नाते मार्च में शुरू होने वाले सालाना सत्र में 'स्वच्छ हवा' के लिए एक कानून की पेशकश करेंगे. पैन ने लिखा, ''अगर लोगों को पता हो कि समस्या कितनी गंभीर है, तो वे जागृत होकर वायु प्रदूषण को रोक सकते हैं और अपनी बीमार बनाने वाली जीवनशैलियों और आदतों को बदल सकते हैं.'' लाखों यूजर्स ने फौरन जवाब दिया, हम पैन का समर्थन करेंगे.

ग्रीनपीस चाइना के लिए काम कर रहे स्वच्छ हवा के ऊर्जावान कैंपेनर फैंग युआन ने इंडिया टुडे से कहा, ''उनके वेईबो पर जिक्र करने से पहले लोगों को पीएम2.5 के बारे में ज्यादा पता तक नहीं था.'' एक साल बाद प्रदूषण का जनवरी दंश दूसरा निर्णायक मोड़ था. अब तक लोग सूक्ष्म कणों के प्रदूषण के खतरे से काफी वाकिफ हो चुके थे और जागरूकता लगातार बढ़ रही थी. ऐसे में जब उन्होंने अपने शहर को लगातार दो हफ्तों तक धुंध के गुबार से ढके देखा, तो उनकी बर्दाश्त से बाहर हो गया. इसने पैन को दूसरा ट्वीट करने के लिए प्रेरित किया. अब तक पिछले एक साल में वेईबो पर उनके फॉलोवर्स की संख्या दोगुनी से ज्यादा बढ़कर 1.7 करोड़ हो चुकी थी. दूसरे ट्वीट में उन्होंने लिखा, ''वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए हरेक नागरिक की भागीदारी की जरूरत है.'' रियल एस्टेट के दिग्गज पैन ने कहा कि वे संसद के सालाना सत्र में एक बार फिर यह मुद्दा उठाएंगे.

पैन का एक्टिविज्म चीनी नौजवानों को भा गया. कम्युनिकेशन यूनिवर्सिटी ऑफ चाइना की 23 वर्षीया छात्रा शिया जिंगजिंग कहती हैं, ''मुझे धुंध से एलर्जी है. जब भी घर से बाहर निकलती हूं मुझे मास्क पहनता पड़ता है. मैं इससे आजिज आ गई हूं.'' शिया खराब हवा की वजह से स्नातक की पढ़ाई के बाद बीजिंग छोड़कर हांगकांग जाने की योजना बना रही हैं. वे कहती हैं, ''मुझे नहीं लगता, मैं वापस आऊंगी.''

लगातार बदतर होती हवा की वजह से 2012 और 2013 में चीन में वायु प्रदूषण का मुद्दा पहली बार व्यापक ध्यानाकर्षण का विषय बना. 2013 में पहली बार पीएम2.5 रोजमर्रा की शब्दावली में शुमार हो गया. ग्रीनपीस के फैंग कहते हैं, ''इसमें भारत के लिए एक सबक है. हम अपना एक अनुभव तो यह बांट सकते हैं कि मीडिया खासकर न्यू मीडिया ने इतनी अहम भूमिका अदा की. हमारे यहां एनजीओ, यूनिर्विसटी प्रोफेसर, एजेंसियों, सबने मिलकर जन जागरूकता फैलाई. जानकारियों के सार्वजनिक खुलासे की मांग लगातार बढ़ रही है, जिससे सरकार के ऊपर इस मुद्दे पर ध्यान देने के लिए दबाव पड़ रहा है.''

चीन में सबसे बड़ी जागृति यह आई है कि वायु प्रदूषण के सवाल को अगली पीढ़ी पर नहीं छोड़ा जा सकता. इसका असर दिखने भी लगा है. फरवरी में चीन की सबसे प्रतिष्ठित संस्था पीकिंग यूनिवर्सिटी ने ग्रीनपीस के साथ मिलकर एक अध्ययन प्रकाशित किया, जिसमें पहली बार देश के 31 प्रांतीय राजधानियों में सूक्ष्म कणों के प्रदूषण को और सेहत पर उसके तत्काल असर को मापा गया.

इसके नतीजे चौंकाने वाले थे और उन पर तीव्र बहस छिड़ गई. अध्ययन में पाया गया कि इन शहरों में 1,00,000 में से 90 लोग ''सूक्ष्म धूल के प्रदूषण के उच्च स्तर से ग्रस्त हवा में लंबे समय तक सांस लेने के कारण समय से पहले मर सकते हैं.'' इसका मतलब था कि चीन के 31 सबसे ज्यादा विकसित शहरों में ढाई लाख लोगों का यह हश्र हो सकता है. अध्ययन ने यह भी बताया कि अगर सरकार वायु प्रदूषण को पहले से तय राष्ट्रीय मानक तक ले आती है, तो '1,00,000 में से 41 समय-पूर्व मौतों से बचा जा सकता है.'

बीजिंग में लगता है, बात सुनी जा रही है. वायु प्रदूषण के खिलाफ चीन की लड़ाई कई मायनों में ऐतिहासिक घटना है. यह बिरला उदाहरण है, जब प्रचंड जन भावना ने एक-दलीय शासन वाले चीन में सरकारी नीति के रवैए को बदल दिया. पहले धुंध को लेकर जनता की चीख-पुकार ने बीजिंग की सरकार को मजबूर कर दिया कि वह रोज पूरे शहर में अलग-अलग स्थलों से एकत्र किए गए प्रदूषण के आंकड़े लोगों को बताए. इससे भी अहम यह कि सरकार को वायु प्रदूषण से निबटने के लिए गंभीर दीर्घकालिक कदम उठाने के लिए बाध्य कर दिया गया.
सरकार ने दो स्तरीय तरीका अपनाया. छोटे स्तर पर शहर-दर-शहर बीजिंग के नक्शेकदम पर चलते हुए कारों पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं. ये पाबंदियां दो किस्म की है: पहली, बीजिंग की तरह लाइसेंस नंबर प्लेट के आधार पर कार के इस्तेमाल के दिनों को सीमित किया गया है (हफ्ते में एक दिन कार मालिकों को अपने वाहन घर में खड़े रखने पड़ते हैं); और दूसरे, नए वाहनों के पंजीकरण पर लगाम कसी गई है और हर महीने एक सीमित संख्या में लॉटरी से चुनकर गाडि़यों को पंजीकृत किया जाता है.

शंघाई और गुआनझोऊ ने भी कारों के मासिक पंजीकरण की सीमा बांध दी है, यहां लाइसेंस नीलामी से दिए जाते हैं. इन उपायों का बेशक असर पड़ा है, जैसा कि बीजिंग की मेजबानी में नवंबर में हुए एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग संगठन (एपेक) के शिखर सम्मेलन से पता चला था. उस वक्त बीजिंग ने करीब दो हफ्तों तक विषम नंबर प्लेट वाली कारों के बाहर निकलने पर और भी कड़ा प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिससे सड़कों पर कारों की गिनती आधी रह गई. नतीजा: पूरे पखवाड़े नीला आसमान दिखाई दिया.

लेकिन कारों से ज्यादा बड़ी समस्या कोयले से चलने वाले कारखाने हैं, जो चीन के शहरों को ऊर्जा देते हैं. चीन ने बीजिंग के आसपास के तीन प्रांतों में पुराने कारखानों को-जिनकी ऊर्जा क्षमता भी कम रह गई है-बंद करने की पहल कर दी है. दीर्घकालिक योजना कोयले पर निर्भरता कम करने की है.

नवंबर 2014 में घोषित सरकार की नई राष्ट्रीय ऊर्जा योजना कहती है कि देश की ऊर्जा जरूरतों में कोयले के योगदान को मौजूदा 70 फीसदी से घटाकर 62 फीसदी पर लाने का लक्ष्य है. इस लक्ष्य की कुंजी परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने में है. योजना में पनबिजली और परमाणु ऊर्जा के विस्तार के महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए हैं, ताकि ऊर्जा के मामले मंर मौजूदा कोयले के वर्चस्व को कम किया जा सके. चीन इस वक्त 28 परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगा रहा है, जो किसी भी दूसरे देश से ज्यादा हैं.

कुछ उपाय कामयाब भी होने लगे हैं. ग्रीनपीस के फैंग युआन बताते हैं कि बीजिंग के सालाना पीएम2.5 औसत में कई सालों बाद 2014 में पहली बार 4 फीसदी की गिरावट आई. फैंग सरीखे कई बीजिंगवासी कहते हैं कि इन सर्दियों में पिछले चार वर्षों में अब तक का सबसे कम प्रदूषण स्तर देखा गया, बावजूद इसके कि अभी भी अक्सर कई दिन ऐसे रहे, जब पीएम2.5 200 से ऊपर चला गया. फैंग का कहना है  कि अभी भी बहुत लंबी दूरी तय करनी है और कई सारे कदम उठाने की जरूरत है. वे कहते हैं कि वायु प्रदूषण जन स्वास्थ्य के लिए खतरा बन गया है. फिर से स्वच्छ हवा में सांस लेने के लिए हम दशकों तक इंतजार नहीं कर सकते. शायद ही कोई उनसे असहमत होगा.

स्वच्छ हवा का अभियान
वायु प्रदूषण के खिलाफ चीन की लड़ाई कई मायनों में ऐतिहासिक घटना है. यह दुर्लभ मिसाल है जब प्रचंड जन भावना ने एक दलीय शासन वाले चीन में सरकारी नीति के रवैए को बदल दिया. स्मॉग से लड़ने और वायु प्रदषण के स्तर में कमी लाने के लिए चीन ने चार-सूत्रीय असरदार योजना बनाई है

कारों पर पाबंदी
बीजिंग और शंघाई ने हर महीने नई कारों के रजिस्ट्रेशन की संख्या पर सीमा बांध दी है. बीजिंग लॉटरी से और शंघाई बोली लगाकर नई कारें चुनता है.

कोयले के कारखाने बंद
उत्सर्जन के नए मानकों को पूरा नहीं करने वाले कारखानों को बीजिंग के आसपास बंद कर दिया गया है, कुछ भीतरी इलाकों में चले गए.

परमाणु ऊर्जा पर जोर
कोयले पर निर्भरता खत्म करने के लिए परमाणु ऊर्जा को बढ़ावा देने की महत्वाकांक्षी योजना, 28 संयंत्र निर्माणाधीन, दुनिया में सबसे ज्यादा.

ग्रीन पदोन्नतियां
स्थानीय अधिकारियों को अब सिर्फ उच्च जीडीपी लक्ष्यों के आधार पर प्रमोशन नहीं मिलता. हरित लक्ष्य पूरे न होना यानी पदोन्नति गंवाना.


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