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जानें कैसे भारत को समुद्र में घेर रहा है चीन

बीजिंग ने बांग्लादेश और पाकिस्तान को पनडुब्बी टेक्नोलॉजी देकर और हिंद महासागर में जहाज तैनात करके नई दिल्ली के लिए नई नौसैनिक चुनौतियां पेश कर दी हैं.

संदीप उन्नीथन
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  • 08 दिसंबर 2014,
  • अपडेटेड 5:15 PM IST

भारत-पाकिस्तान की 1971 की जंग के चार दशक बाद भारत की खुफिया एंजेसियां एक बार फिर दक्षिणी बांग्लादेश के समुद्र तट पर कड़ी निगाहें रख रही हैं. दुश्मन को बंगाल की खाड़ी में शरण लेने से रोकने के लिए तब आइएनएस विक्रांत के लड़ाकू विमानों ने तटीय शहर कॉक्स बाजार पर हवाई हमला किया था. आज 43 साल बाद भारत के पूर्वी समुद्र तट  पर चीन के नाटकीय प्रवेश की तैयारी हो चुकी है.

रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग (रॉ) और नौसेना की खुफिया शाखा की रिपोर्टों के मुताबिक बांग्लादेश की नौसेना समुद्री अड्डों पर दो पूर्व-चीनी मिंग श्रेणी की पनडुब्बियां तैनात करेगी. ये  अड्डे विशाखापत्तनम और बालासोर से 1,000 किलोमीटर से भी कम दूरी पर स्थित हैं. विशाखापत्तनम जहां भारतीय नौसेना की परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियों के बेड़े का ठिकाना है, वहीं बालासोर में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) की मिसाइल टेस्ट रेंज है.

उधर, अरब सागर के भारतीय तट पर चल रही हलचलें भी इतनी ही नापाक हैं. खुफिया अफसर बताते हैं कि अगले एक दशक में चीन समुद्र से परमाणु मिसाइलें दागने की क्षमता से लैस पनडुब्बियां तैनात करने में पाकिस्तान की मदद करेगा. जानकारों का कहना है कि पनडुब्बियां चीन का नया पसंदीदा औजार हैं, जिससे वह न सिर्फ समुद्र में वर्चस्व कायम करने की भारतीय नौसेना की रणनीति को चुनौती देना चाहता है, बल्कि भारत की जवाबी परमाणु हमले की क्षमता को भी कमजोर करना चाहता है. इस सबके अलावा इस साल हिंद महासागर में चीनी पनडुब्बियों की खासी हलचल देखी गई है. बीजिंग ने दो परमाणु पनडुब्बियां और एक सामान्य पनडुब्बी हिंद महासागर में भेजी. उनमें से दो ने कोलंबो में बंदरगाह से मदद भी ली, जिससे नई दिल्ली के कान खड़े हो गए.

 खाड़ी में पांव टिकाने की जगह
भू-राजनैतिक विश्लेषक रॉबर्ट कप्लान ने नवंबर में स्ट्रैटफॉर  में एक निबंध में लिखा, ‘भू-राजनीति में दिलचस्पी रखने वाला कोई भी शख्स बंगाल की खाड़ी की अब और अधिक अनदेखी नहीं कर सकता. यह दुनिया का नया-पुराना केंद्र है, जहां भारतीय उपमहाद्वीप और पूर्व एशिया के दो विशाल आबादी  वाले देश मिलते हैं.’’ बंगाल की खाड़ी भारत की ‘‘लुक ईस्ट’’ नीति का लॉन्च पैड है. इस नीति पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए सिरे से ध्यान दिया है.

भारतीय नौसेना विशाखापत्तनम अड्डे पर अपने सैन्य बल का स्तर बढ़ा रही है. यही नहीं, उसने विशाखापत्तनम के दक्षिण में रामबिली में परमाणु हथियारों से लैस पनडुब्बियों के प्रस्तावित बेड़े के लिए एक खुफिया अड्डा बनाने का काम भी शुरू कर दिया है. पनडुब्बी से दागी जाने वाली 700 किमी मारक क्षमता की बी05 मिसाइलों से लैस अरिहंत श्रेणी की पनडुब्बियों को संभावित दुश्मन के तटों पर गश्त लगानी होगी. लेकिन 3,500 किमी मारक क्षमता की के-4 मिसाइलों (जिन्हें अभी डीआरडीओ में विकसित किया जा रहा है) से लैस अरिहंत और उसकी सहोदर पनडुब्बियों की जद में पाकिस्तान और चीन दोनों आ जाएंगे. ये पनडुब्बियां परमाणु मिसाइलों से लैस होंगी और इनसे भारत को वह मारक क्षमता हासिल हो जाएगी जिसे हमारी परमाणु नीति में ‘‘सुदृढ़ जवाबी हमले की क्षमता’’ कहा गया है. सीमा पार से आ रही खबरें बताती हैं कि बांग्लादेश ने कॉक्स बाजार के नजदीक कुतुब्दिया चैनल और पश्चिम बंगाल के नजदीक राबनाबाद चौनल स्थित ठिकानों पर जमीन अधिग्रहीत करके बाड़ाबंदी कर ली है. खुफिया अधिकारियों का कहना है कि कुतुब्दिया में पनडुब्बियों को छिपाने के लिए चारों तरफ से बंद पक्की ‘‘मेड़ें’’ बनाए जाने की संभावना है. चीनी पनडुब्बियों के लिए इस अड्डे के इस्तेमाल की संभावना से रणनीतिक हिसाब-किताब में नए समीकरण जुड़ गए हैं.

पनडुब्बियों के दिग्गज जानकार और दक्षिणी नौसेना कमान के पूर्व चीफ वाइस-एडमिरल (रिटायर्ड) के. एन. सुशील कहते हैं, ‘‘इसकी वजह से अव्वल तो बंदरगाह से रवाना होते ही हमारी पनडुब्बियों पर नजर रखना आसान हो जाता है. लेकिन हमारी भरोसेमंद जवाबी हमले की क्षमता को खतरा पैदा कर सकने की चीन की क्षमता कहीं ज्यादा गहरी रणनीतिक चिंता की बात है. इससे परमाणु ताकत के डर से पैदा होने वाला संतुलन पूरी तरह गड़बड़ा जाता है.’’

 पश्चिमी तटों की चिंता
भारतीय विश्लेषकों के लिए ज्यादा बड़ी दीर्घकालिक चिंता वह रणनीतिक पनडुब्बी परियोजना है, जिसे चीन ने 2010 में पाकिस्तान के साथ अंतिम रूप दिया था. खुफिया सूत्र बताते हैं कि तीन भागों वाला यह कार्यक्रम पाकिस्तानी नौसेना को ऐसी रणनीतिक ताकत में बदल देगा, जो समुद्र से परमाणु हमला करने की क्षमता से लैस होगी. चीन की मदद से पाकिस्तान दो किस्म की पनडुब्बियों का निर्माण करेगा-प्रोजक्ट एस-26 और प्रोजेक्ट एस-30. जहाजों का निर्माण सबमरीन रीबिल्ड कॉम्प्लेक्स (एसआरसी) कारखाने में किया जाएगा, जिसे कराची के पश्चिम में बसे ओरमरा में विकसित किया जा रहा है. खुफिया सूत्र मानते हैं कि एस-30 पनडुब्बियां चीन की क्विंग श्रेणी की पनडुब्बियों पर आधारित हैं. ये 3,000 टन की सामान्य पनडुब्बियां हैं जिनके कोनिंग टॉवर से 1,500 किमी मारक क्षमता की परमाणु हथियारों वाली तीन क्रूज मिसाइलों को दागा जा सकता है. दक्षिणी बलूचिस्तान में तुर्बत स्थित वेरी लो फ्रीक्वेंसी (वीएलएफ) केंद्र पानी में डूबी इन रणनीतिक पनडुब्बियों से संपर्क बनाए रखेगा. प्रोजेक्ट एस-26 और एस-30 पनडुब्बियां पाकिस्तान के पांच फ्रांस-निर्मित पनडुब्बी बेड़े में इजाफा करेंगी. इससे न सिर्फ भारतीय नौसेना के विमान वाहक युद्धपोतों को चुनौती देने की, बल्कि छिपाकर परमाणु हथियार ले जाने की पाकिस्तानी क्षमता भी बढ़ जाएगी. एक वरिष्ठ नौसैनिक अफसर कहते हैं, ‘‘पनडुब्बियां बेहद असरदार तरीके से सैन्य ताकत को कई गुना बढ़ा देती हैं क्योंकि वे बड़ी तादाद में नौ सैन्य बलों को एक जगह घेरकर रख देती हैं.’’

 रेशमी राह पर फौलादी दरिंदे
पिछले अक्तूबर में इंडोनेशिया की संसद में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक  ‘‘21वीं सदी के समुद्री सिल्क रूट’’ का जिक्र किया था. उनका विजन एक उत्तर एशियाई मार्ग को जोडऩे के लिए पूरे दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बंदरगाहों में निवेश की मांग करता है. इस साल पीपल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) ने शी के इरादों को पुख्ता कर दिया. फरवरी में चीन ने हिंद महासागर में शंग-क्लास की परमाणु हमले में सक्षम पनडुब्बी को ऐलानिया तैनात कर दिया. इसके बाद एक हान-क्लास पनडुब्बी ने कोलंबो में बंदरगाह से मदद मांगी. यह उसी दौरान हुआ जब राष्ट्रपति शी राजकीय यात्रा पर आए और नवंबर में सोंग-क्लास की एक पनडुब्बी भेजी गई. हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ी हुई गतिविधियों का पता इससे भी चलता है कि वह होमुर्ज जलडमरूमध्य के मुहाने पर स्थित ग्वादर के नए बंदरगाह में, श्रीलंका के हैं बनटोटा बंदरगाह में, चटगांव के कंटेनर सुविधा केंद्र में और म्यांमार के क्याऊकप्यू बंदरगाह में निवेश कर रहा है. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के ब्रह्म चेलानी कहते हैं, ‘‘इन घटनाओं से भारत के साथ चीन की भूर-राजनैतिक होड़ और तीखी हो गई है. हिंद महासागर में फिलहाल भारत को बहुत ज्यादा भू-राजनैतिक बढ़त हासिल है.’’ नौसेना के प्रमुख एडमिरल रॉबिन के. धोवन ने 3 दिसंबर को दिल्ली में पत्रकारों से कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय समुद्रों में उनकी (चीन की) तैनाती से जुड़े पहलू उनके समुद्री हितों की हिफाजत का ही हिस्सा हैं.’’

चीन के नए सैन्य तेवरों से उसकी ‘‘मलक्का परेशानियां’’ ही झलकती हैं. चीन की ज्यादातर ऊर्जा सप्लाई मलक्का जलडमरूमध्य के संकरे रास्ते से ही आती हैं. इसमें जरा भी रुकावट आने से उसकी आर्थिक वृद्धि खतरे में पड़ सकती है. एक खुफिया अधिकारी कहते हैं, ‘‘हिंद महासागर में चीन के आर्थिक हितों ने खुलेआम एक फौजी शक्ल अख्तियार कर ली है.’’
नौसेना के खुफिया अधिकारियों ने पहले ही बता दिया था कि चीन हिंद महासागर में तैनातियों के लिए बहाने के तौर पर समुद्री लुटेरों के खिलाफ गश्त का इस्तेमाल करेगा. वे सही साबित हुए. वे इसे चीनी शतरंज के एक खेल ‘‘वेइकी’’ की तरह मानते हैं, जिसमें घेराबंदी करके मात दी जाती है. अलबत्ता इसके नतीजे के बारे में उनकी भविष्यवाणी निराश करने वाली है. एडमिरल ने इंडिया टुडे से कहा, ‘‘हिंद महासागर में पूरे पैमाने पर चीनी तैनाती लाजिमी है. आप इसे सिर्फ देख और इसके हिसाब से खुद को तैयार कर सकते हैं.’’ इस तैयारी के तहत अमेरिका में बने पी8-1 पोसेदॉन सरीखे लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमान हासिल करना, पनडुब्बी-विरोधी युद्ध प्रणालियों में निवेश और सैन्यबलों की अहम कमियों को पूरा करने के लिए नई पनडुब्बियों और हेलिकॉप्टरों को लाना शामिल है.

 नपा-तुला जवाब
दक्षिण एशिया में चीन ने पनडुब्बियों पर जोर तब दिया है, जब नरेंद्र मोदी ने भारत की सरहदों की हिफाजत को नए सिरे से महत्व दिया है. रॉ के पूर्व अधिकारी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य जयदेव रानाडे कहते हैं, ‘‘भारत का जवाब बहुत सधा हुआ होना चाहिए, इसमें जोर-जबरदस्ती और मान-मनुहार, दोनों का मेल हो.’’ मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने घेराबंदी की अटकलों को हंसी में उड़ा दिया था. वहीं नई सरकार आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ती चीनी मौजूदगी को लेकर साफ तौर पर चिंतित है. राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने 1 दिसंबर को दक्षिणी श्रीलंका के ‘‘गाले डायलॉग’’ में भारत की चिंताओं को जाहिर किया. उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 1971 के एक प्रस्ताव का हवाला दिया. यह प्रस्ताव श्रीलंका ने रखा था और इसमें मांग की गई थी कि ‘‘बड़ी ताकतें हिंद महासागर में अपनी सैन्य मौजूदगी को और बढ़ाने और विस्तार देने पर लगाम लगाएं.’’

चीनी मौजूदगी का मुकाबला करने के लिए भारत सैन्य हथियार-सामग्री की पेशकश नहीं कर सकता. यह उसकी प्रतिरक्षा कूटनीति की बड़ी भारी कमी है. बांग्लादेश और श्रीलंका की आधी से ज्यादा सैन्य हथियार-सामग्री चीनी मूल की है. 2008 में भारत को आइएनएस वेला म्यांमार नौसेना को सौंपने की योजना रद्द करनी पड़ी थी, क्योंकि तभी पता चला कि रूस-निर्मित यह पुरानी पनडुब्बी अपना सेवाकाल पूरा कर चुकी थी.

जब सैन्य सामग्री सौंपने की योजनाएं परवान चढ़ीं भी, तो वे इतनी मामूली थीं कि उनसे कोई फर्क पडऩे वाला नहीं था. मिसाल के लिए, एक अकेला हेलिकॉप्टर जैसा मोदी ने नवंबर में नेपाल को भेंट किया और पूर्व-भारतीय नौसैनिक गश्ती जहाज जो हाल ही में सेशेल्स को भेंट किया गया. अक्सर भारत से ऐसी चीजों की मांग की जाती है, जो खुद भारत के पास नहीं हैं. बांग्लादेशी अधिकारियों ने पिछले साल भारत से, न कि चीन से, पनडुब्बियों की मांग करके भारतीय विदेश मंत्रालय के अफसरों के पसीने छुड़ा दिए थे. खुद भारतीय नौसेना के पास महज 13 पुरानी पड़ती परमाणु शक्तिरहित पनडुब्बियां हैं. विदेश मंत्रालय के अफसरों ने सलाह दी कि बांग्लादेश इसकी बजाए रूसी पनडुब्बियां खरीद ले. उनकी कोशिशों के नतीजे मिलने बाकी हैं. लेकिन यही वह फासला है जिसे चीन खुशी-खुशी भर देता है.

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