
''मेरे प्यारे देशवासियो, आज मैं आप सभी से एक विशेष अनुरोध करना चाहता हूं..."
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर को जब टेलीविजन पर घोषणा की कि ''भ्रष्टाचार और काले धन की कमर तोडऩे के लिए" ''आज आधी रात से" 500 रु. और 1000 रु. के नोट मान्य नहीं होंगे, तो पूरा देश अचंभित रह गया. चलन में मौजूद 86.6 फीसदी नकदी अचानक रद्दी में बदल गई. सिर्फ 3 फीसदी आयकरदाताओं के इस देश की समूची समानांतर अर्थव्यवस्था सिरे से हिल गई, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद यानी 156 लाख करोड़ रु. के जीडीपी का 20 फीसदी आंकी गई है (एंबिट कैपिटल रिसर्च, 2016).
बैंकों और एटीएम के बाहर लोगों की कतारें लगने से पहले ही खुफिया एजेंसियों ने अचानक हवाला लेनदेन में आई उछाल को सूंघ लिया था. गूगल पर ''काले धन को सफेद कैसे करें" ट्रेंड करने लगा था और इस नाम से सबसे ज्यादा खोज प्रधानमंत्री के गृह-राज्य गुजरात से की जा रही थी, जिसके बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और दिल्ली का नंबर था. इस बीच बैंकों के बाहर लोगों की लंबी कतारें लगनी शुरू हो गईं. लोग अपने पास रखी उच्च मूल्य की मुद्रा को बैंक में जमा कराने या उसे बदलने के लिए कतारों में जम गए. बैंकों में अचानक जो पैसों की बाढ़ आई, खासकर सरकारी बैंकों में, उसने एक उन्माद पैदा कर दिया कि अब बैंकों की सेहत सुधरेगी और कर्ज की दरें कम होंगी.
जल्द ही सारा उत्साह ठंडा पड़ गया. रिजर्व बैंक ने 27 नवंबर तक बैंकों में 8.44 लाख करोड़ रु. जमा होने की सूचना दी. उसके बाद अब राजस्व सचिव हसमुख अधिया ने कह दिया कि सरकार बंद किए गए नोटों के रूप में चलन में रही समूची धनराशि के बैंकिंग तंत्र में आने की उम्मीद कर रही थी. अभी बैंकों में पुराने नोटों को जमा करने की अवधि महीने भर तक बची हुई है. ऐसे में, बड़े पैमाने पर काले धन—पुराने आकलन के मुताबिक 4-5 लाख करोड़ रु.—के खत्म होने की संभावना मद्धिम पड़ चुकी थी. इसके अलावा एक और बड़ी आशंका यह जताई जा रही है कि हजारों करोड़ का काला धन बैंकिंग तंत्र में वैध तरीके से वापस आ चुका है, जिसने विमुद्रीकरण के समूचे उद्देश्य को ही नाकाम कर दिया है. ऐसा व्यवस्था को चूना लगाने वाले जुगाडिय़ों के खोजे मौलिक तरीकों के चलते हुआ है. प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनके इस कदम से काला धन रखने वालों की रातों की नींद उड़ जाएगी, लेकिन ऐसा लगता नहीं है कि वास्तव में हुआ होगा. हकीकत यह है कि आम आदमी ही कष्ट झेल रहा था जबकि काला धन रखने वाले चैन की नींद सोते रहे क्योंकि वे अपने अवैध पैसे को आराम से ठिकाने लगा चुके थे.
''किसी ज्वेलर के पास जाएं. जितना पैसा आप सफेद धन में बदलना चाहते हों उसे दे दें." विमुद्रीकरण के बाद गूगल के जिस लिंक को सबसे ज्यादा हिट मिले, उसमें यही लिखा है. एक आसान कुंजी की तरह इसमें कदम दर कदम बताया गया है कि बेशकीमती धातुओं की आपूर्ति शृंखला के जरिए काले धन को कैसे सफेद किया जा सकता है. लिंक कहता है, ''बह आपको 4 फीसदी काटकर वापस उतनी ही राशि का एक चेक दे देगा. वह आपको एक बिल देगा, जिसमें दिखाया गया होगा कि आपने उसे चांदी के बरतन बेचे हैं. इस चेक की राशि पर जब आप रिटर्न भरेंगे तो आपको कोई भी पूंजीगत लाभ टैक्स नहीं भरना पड़ेगा क्योंकि चांदी के बरतन निजी सामग्री होते हैं जिस पर यह कर नहीं लगता. इस तरह आपका धन सफेद हो चुका है."
काले धन को सफेद करने के इस मंत्र से छुपे हुए लेनदेन के मामलों में अचानक उछाल आ गया. सरकार को अंदाजा लगा कि काला धन वापस व्यवस्था के भीतर आ रहा है, तो उसने इसके दोषियों के लिए गंभीर नतीजों की चेतावनी जारी कर दी और साथ ही आयकर के नियमों में बदलाव का ऐलान कर दिया, ताकि लोग आधा दंड चुकाकर वैध तरीके से अपनी बेहिसाब आय को घोषित कर सकें. यह कदम उठाने में हालांकि काफी देर हो चुकी थी. नोटबंदी की घोषणा होते ही पैसे का हेरफेर करने वाले नेटवर्क सक्रिय हो गए थे. उन्हें नई मांग और नए बाजार की भनक लग चुकी थी. भारत में जुगाड़ की यह प्रवृत्ति दोबारा जी उठी है और धड़ल्ले से दौड़ रही है. इसके सहारे काले धन को विभिन्न तरीकों से सफेद बनाया जा रहा है. इसकी विस्तार से चर्चा जरूरी है. नीचे कुछ नए अवैध तरीकों को गिनाया जा रहा है. कुछ बड़े और छोटे हैं तो कुछ आसान और कई बेहद जटिल.
विश्व बैंक अवैध और बेहिसाब मुनाफे को छुपाने के लिए तैयार किए गए तमाम किस्म के तरीकों का नाम ''मनी लॉन्डरिंग" देता है (रेफरेंस गाइड टु ऐंटी-मनी लॉन्डरिंग ऐंड कॉम्बैटिंग द फाइनेंसिंग ऑफ टेररिज्म, 2006). इसके तहत दान, धर्मार्थ कार्य, हथियारों की अवैध बिक्री, मादक पदार्थों की तस्करी, वेश्यावृत्ति, धोखाधड़ी, इनसाइडर ट्रेडिंग, चोरी या कर चुकाने से बचने के तरीके शामिल हैं. भारतीय बैंकिंग और फाइनेंस के इतिहास के जानकार तथा भारतीय स्टेट बैंक के ''आधिकारिक इतिहासकार" की भूमिका निभा चुके अर्थशास्त्री अमिय बागची कहते हैं, ''काला धन विभिन्न किस्म की अदला-बदली और सौदों से होकर गुजरता है जब तक कि उसका अवैध स्रोत धुंधला न पड़ जाए और वह ''स्वच्छ" छवि को न अपना ले."
भारत में ऐसी गतिविधियों का जायजा 2002 का प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्डरिंग ऐक्ट लेता है. हालिया अतीत में इस कानून में कई संशोधन किए जा चुके हैं, जो पैसे के हेरफेर और आतंक के वित्तपोषण से लडऩे संबंधी नीतियों को विकसित और प्रसारित करने वाली पेरिस स्थित एक अंतरसरकारी संस्था फाइनेंशियल टास्क फोर्स के मानकों के अनुरूप है. इसके बावजूद काला धन जमा करने वालों ने नियमों को धता बताकर अधिकारियों को चूना लगाने का काम जारी रखा है. उनके लिए नोटबंदी कुल मिलाकर जुगाड़ के नए तरीके काम में लाने का एक और अवसर साबित हुई है. ईवाइ (पहले अर्न्स्ट ऐंड यंग) में फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऐंड डिसप्यूट सर्विसेज के कार्यकारी निदेशक विक्रम बब्बर कहते हैं, ''पैसों के हेरफेर का प्रत्यक्ष रूप से लेना-देना आतंक के वित्तपोषण समेत हथियारों की अवैध बिक्री जैसे गोरखधंधों से है."
कस्टम और उत्पाद के पूर्व आयुक्त सोमेश अरोड़ा बताते हैं कि पैसों के हेरफेर का सर्वाधिक लोकप्रिय और स्थापित चैनल है ''स्मर्फिंग" (जमा को छोटी-छोटी राशियों में बांट देना ताकि बैंकिंग तंत्र की निगाह से बचा जा सके); निर्यात/आयात की अंडर या ओवर-इनवॉयसिंग; नकद पैदा करने वाले कारोबारों में कसीनो, इवेंट मैनेजमेंट, बार और नाइट क्लब इत्यादि कंपनियों का इस्तेमाल; हीरा, सोना जैसी बहुमूल्य धातुओं में सर्कुलर ट्रेडिंग (समान माल का आयात और निर्यात); काल्पनिक व्यक्तियों द्वारा जमा राशि और डिफॉल्ट को दर्शाने वाली चिटफंड कंपनियां और मूल वस्तुओं को संरक्षित किए हुए कला/शिल्प/प्राचीन वस्तुओं की फर्जी बिक्री.
बागची कहते हैं कि मनी लॉन्डरिंग की प्रक्रिया में आम तौर से तीन चरण शामिल होते हैं. पहला, अवैध मुनाफे को वित्तीय तंत्र के भीतर लाया जाता है, जिसके लिए बड़ी धनराशि को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर अलग-अलग माध्यमों से जैसे नकदी, चेक और मनी ऑर्डर से बैंक खातों में डाला जाता है. वे बताते हैं, ''इस चरण को प्लेसमेंट कहते हैं." इसके बाद ''लेयरिंग" की जाती है यानी फंड को खरीद, निवेश, वायर या हवाला के माध्यम से बिखरे हुए खातों में प्रवाहित किया जाता है. अपने अवैध स्रोत से दूर होकर यह फंड अब वैध अर्थतंत्र का हिस्सा बन जाता हैकृ इस चरण को ''इंटिग्रेशन" कहा जाता है—जिसके लिए रियल एस्टेट, कारोबारी उद्यमों या उच्च मूल्य के बहुमूल्य धातुओं, रत्नों, आभूषण, कारों और प्राचीन वस्तुओं का सहारा लिया जाता है.
प्रधानमंत्री 14 नवंबर को जब अपने चुनाव क्षेत्र वाराणसी गए थे तो वहां सब कुछ और दिनों की तरह सामान्य चल रहा था. मंदिर के घंटे बज रहे थे, जवान पंडे ''हर हर महादेव" का उद्घोष कर रहे थे, श्का हो गुरु्य की ललकार सुनाई पड़ रही थी, मल्लाह हमेशा की तरह पूछ रहे थे, ''नाव पे जाएंगे," भिखारी मुफ्त खाने के लिए कतारों में बैठे हुए थे, जबकि मंदिर आए वीआइपी लोगों की चमकती लाल-नीली बत्तियों वाली कारें हमेशा की तरह नो-पार्किंग जोन में खड़ी थीं. इस प्राचीन शहर के पांच हजार साल के इतिहास में प्रधानमंत्री का काले धन पर हमला समय की चाल में एक छोटी-सी बीप बनकर गुम हो गया था.
मोदी के चुनाव क्षेत्र में एक नई चीज आकार ले रही थी. नदी किनारे बैठा एक युवक बताता है, ''मैं मां अन्नपूर्णा को 101 रुपया चढ़ाना चाहता था, लेकिन पंडितजी मुझे कोने में ले गए और पुराने नोटों में 501 रुपया देने को कहा." कुछ और लोगों ने ''गुप्तदान" की बात बताई—इसके तहत मंदिरों की हुंडियों में अपार्टमेंट से लेकर चांदी की चादरें, सोने के आभूषण और पुराने नोट सब कुछ चढ़ाए जा रहे थे. कुछ दूरी पर भभूत पोते एक भगवा वस्त्रधारी प्रधानमंत्री को आशीर्वाद दे रहा था, ''अब बहुत बड़े-बड़े लोग बनारस आ रहे हैं." ''पवित्र" बनने का इससे बढिय़ा वक्त और क्या हो सकता था!
ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार ने ऐलान किया था कि मंदिरों की हुंडी में आई नकदी पर उनसे कोई सवाल नहीं पूछा जाएगा. अधिया कहते हैं, ''पैसा अगर दानपात्र से है, तो वह करमुक्त होगा." ऐसे अज्ञात जमा पर कोई सीमा न होने के कारण अचानक मंदिरों में दान आसमान छू रहा है. तिरुपति मंदिर में हुंडी में जमा धन 8 नवंबर के बाद पिछले 10 दिनों में 30.36 करोड़ रु. का कांटा छू गया, जो पिछले साल की इसी अवधि से 8 करोड़ रु. ज्यादा रहा. मुंबई के सिद्धिविनायक मंदिर में गुप्त दान के रूप में पिछले साल के मुकाबले इस अवधि में दोगुना दान आया है. केरल के सबरीमाला मंदिर में दान की मात्रा 13 करोड़ रु. को पार कर गई, जो सामान्य से 2 करोड़ रु. ज्यादा थी. यहां तक कि वेल्लोर के कम चर्चित मंदिर जालकंडेश्वरर में 500 रु. और 1,000 रु. के नोटों में 44 लाख रु. तक का दान जमा हो गया, जबकि वहां सामान्य तौर पर 1,000 रु. का दान आता है.
सोने पर दांव
हैदराबाद के एक प्रतिष्ठित जौहरी ने सोचा था कि अपने स्टोर का शटर गिरा कर वह चुपचाप अपना काम कर ले जाएगा, लेकिन इस घटना ने 100 करोड़ रु. की नकदी को सोने में बदलने की एक सरल विधि को सार्वजनिक कर डाला है. उन्होंने इसके लिए यह दिखाने की कोशिश की थी कि उन्हें करीब 5,000 ग्राहकों से पुराने नोटों में दो-दो लाख रु. की अग्रिम राशि प्राप्त हुई है यानी हर ग्राहक उनसे पांच लाख रु. का सोना खरीद रहा था. नजर में आने से बचने के लिए वे 10 नवंबर से 17 नवंबर के बीच बिखरे हुए तरीकों से पैसे जमा करवाते रहे. आयकर अधिकारियों को अगर सुराग न मिलता तो वे ऐसा करके बच निकलते. अधिकारियों ने पूछा तो उसने बताया कि ये सारे लेनदेन एक ही दिन में चार से पांच घंटे के बीच अंजाम दिए गए. उसके बयान के अलावा वह सीसीटीवी फुटेज भी प्रमाण था कि उसने 8 नवंबर को रात 8 बजे के बाद अपनी दुकान का शटर गिराकर लेनदेन किया था.
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड के अधिकारियों का कहना है कि गहनों और सर्राफे के रास्ते पैसों का बड़े पैमाने पर हेरफेर हो रहा है. जौहरियों ने अपनी बिक्री 8 नवंबर के बाद की दिखाई है, हालांकि आयकर विभाग की एक जांच के मुताबिक, अधिकतर बिक्री मोदी के घोषणा करने के तीन घंटों के भीतर की गई थी. आभूषणों के कारोबार में पांच दशक से काम कर रहे दिल्ली के एक जौहरी बताते हैं, ''हम लोग दो लाख रु. से ऊपर का सौदा अपनी बही में वैसे भी नहीं दिखाते हैं." दरअसल, सरकार ने 2 लाख रु. से ज्यादा के आभूषण की खरीद पर पैन कार्ड संख्या को बताना अनिवार्य कर दिया है. ''लोगों ने इसका तोड़ निकाल लिया और बिल को छोटी-छोटी राशि में बांट दिया और ऐसे नामों पर चढ़ा दिया जिन्हें खरीदने का दावा खरीदार तो करेगा, लेकिन इसकी सचाई पता लगाने का कोई तरीका मौजूद नहीं है." सीबीडीटी ने 75 से ज्यादा छापे देश भर में मारे हैं और सीसीटीवी की फुटेज से इसके ठोस प्रमाण मिले हैं. इसकी जांच से कई तरह के मामले खुलने की संभावना है.
प्रधानमंत्री की घोषणा के ठीक बाद राजस्थान में कई लोग नकदी से भरे बोरे लेकर जौहरियों के पास दौड़ पड़े. टोंक रोड, एमआइ रोड और जयपुर के जौहरी बाजार के प्रतिष्ठित जौहरियों ने उन्हें नकदी छोड़ देने को कहा और उसके बदले कोई रसीद नहीं दी. उनसे तीन दिन बाद आकर सोना ले जाने को कहा गया. एक दुकान के मैनेजर ने अधिकतर लोगों से एक ही बात कही, ''रसीद नहीं मिलेगी. आपका चेहरा काफी है." कई लोगों ने इस बात पर भरोसा कर लिया और बाद में आभूषण लेने वापस आए, जब जौहरियों ने अपनी बही में हिसाब दुरुस्त कर लिया था. इस हड़बड़ी में नकली सोने की ईंटें असली बताकर बेच दी गईं. बाजार में नकली सोने की बाढ़ आ गई. इसे बेचने वालों में अधिकतर ऐसे दलाल थे, जो भरतपुर और उसके आसपास नकली सोने का धंधा करते हैं. कुछ ईंटों पर तो सोने की असली परत चढ़ी हुई थी, जिसके चलते प्राथमिक जांच के रूप में उसे रगडऩे पर शुद्धता की पुष्टि होती थी. राजस्थान के एक आला पुलिस अधिकारी कहते हैं, ''ऐसी ईंटें इस वादे के साथ बेची गईं कि जो कोई इन्हें खरीद रहा है, वह इसे जमा करके रखेगा और कुछ वर्षों बाद या तो इसे काट देगा या बेच देगा." इसीलिए कुछ को ही एहसास हुआ कि वे नकली सोना खरीद रहे थे. ऐसे कई मामलों का खुलासा हो चुका है.
दूसरे किस्म का सोना प्राचीन सोने जैसा दिखता था, जैसा कि किसी पुराने खजाने में होता है और उस पर किसी शाही खानदान की मुहर लगी हुई थी. ऐसी ईंटों में छेद कर के असली सोना भर दिया गया था. इसी शुद्ध सोने का इस्तेमाल परीक्षण के लिए हुआ. अगर किसी ग्राहक को आशंका हुई तो बेचने वाले ने असली सोने का कुछ हिस्सा काटकर उसे दिखा दिया और फिर बाद में आसानी से नकली ईंट थमा दी. सोने की मात्रा के इस्तेमाल के हिसाब से ऐसी नकली सोने की ईंटें दलालों के लिए 15,000 रु. प्रति ईंट की दर पर उपलब्ध हैं, जबकि सीधे-सादे खरीदारों को वे कुछ लाख रु. में बेची जाती हैं. पुलिस ने ऐसी 19 नकली सोने की ईंटें जब्त की हैं, जिनका वजन 500 से 800 ग्राम के बीच है और 1 दिसंबर को आठ दलालों को गिरफ्तार किया, जो भरतपुर में खरीदारों को ताड़ रहे थे.
विमुद्रीकरण की घोषणा के बाद जब तक पुराने नोटों को बदलने की छूट रही, काले धन के हेरफेर के लिए गरीबों—जैसे कारखाने के मजदूरों, खेतिहर मजदूरों आदि—का पैसे ढोने के लिए प्यादे की तरह खूब इस्तेमाल किया गया. पिछले 3 दिसंबर को आयकर अधिकारियों ने लुधियाना के एक ऑटोपार्ट्स निर्माता बजाज ऐंड संस के कारखाने और आवास से 1.2 करोड़ रु. बरामद किए, जिसमें 72 लाख रु. की राशि 2,000 रु. के नए नोटों में थी. कारोबार के मालिक एस. बजाज ने कथित तौर पर अधिकारियों को बताया कि उसने अपने कामगारों को पूरे शहर के बैंक काउंटरों पर भेजकर नोट बदलवाने का काम किया था. लुधियाना की विभिन्न इकाइयों में बजाज ऐंड संस के करीब 2,000 कर्मचारी कार्यरत हैं. कर अधिकारियों को इस बात पर विश्वास नहीं हो रहा. वे स्थानीय बैंकरों के साथ किसी संभावित मिलीभगत की पड़ताल कर रहे हैं.
लुधियाना जैसे औद्योगिक स्थल काले धन की सफाई का बड़ा अड्डा बन चुके हैं. पुराने नोटों को बदलने के लिए कर्मचारियों को बैंक भेजने के अलावा बेहिसाब नकदी के ढेर पर बैठे कारखाना मालिकों ने इस पैसे का इस्तेमाल कर्मचारियों के वेतन भुगतान में किया है. लुधियाना के एक स्थापित चार्टर्ड अकाउंटेंट बताते हैं, ''हजारों कारखाना मजदूरों को बंद हो चुके 500 रु. और 1,000 रु. के नोटों में नवंबर और दिसंबर की अग्रिम तनख्वाहें दे दी गई हैं. इनमें वे भी शामिल हैं जिन्हें वेतन चेक से मिलता था या उनके खातों में सीधे आता था." इस मामले को जानने वाले बताते हैं कि निजी बैंकों की मिलीभगत से पैसों के हेरफेर का एक और तरीका बड़े पैमाने पर जारी है. कई कारोबारियों ने निजी बातचीत में स्वीकार किया कि कुछ बैंकों के प्रबंधक उनके पास ''कमिशन के बदले बंद हुए नोटों को बदलने के प्रस्ताव" लेकर आए, जिनका कमिशन 10 से 30 फीसदी के बीच था. यह काम बैंकों के पास पहले से मौजूद ढेरों पैन कार्ड संख्या और आधार संख्या के सहारे किया गया.
जानकारों का कहना है कि देश भर में ऐसे ढेरों मामले सामने आ सकते हैं, जहां अधूरे केवाइसी (नो योर कस्टमर) कागजात के आधार पर बैंकों में खाते खोले गए. नोटबंदी के बाद बैंकों के ऊपर काफी दबाव रहा है. उन्हें बड़े पैमाने पर बंद हो चुकी मुद्रा को जमा करना था और बदलना भी था. ईवाइ के बब्बर कहते हैं, ''इस तनाव के चलते फिसलन हुई होगी और हो सकता है कि फर्जी दस्तावेज चुपके से सरका दिए गए हों." बैंक जब तक 8 नवंबर के बाद खोले गए खातों की जांच करके किसी संदिग्ध खाते की रिपोर्ट नहीं करते, तब तक ऐसे खातों में जमा धन को वैध माना जाएगा.
रोजमर्रा का कारोबार
भोपाल में निर्माण कार्य से जुड़ी कई कंपनियां हैं. उनका काम इसकी मांग करता है, इसलिए वे बड़ी धनराशि अपने हाथ में नकदी के रूप में रखते हैं. लेबर, वेंडर आदि को इसी नकदी से भुगतान किया जाता है और यह राशि तब और बढ़ जाती है, जब लोग नकदी में कंपनी को भुगतान करते हैं. मसलन, एक ऑटोमोबाइल डीलर को वाहन की बिक्री के बदले या तो पूरा या आंशिक भुगतान नकदी में किया जाता है. 8 नवंबर के बाद ऐसी खबरें हैं कि जिन कंपनियों के पास अपने खातों में भारी नकदी ''कैश इन हैंड" के रूप में दिखाने की सुविधा थी, उन्होंने पुराने नोटों में लोगों से पैसे लिए और अपनी बही में उसे ''कैश इन हैंड" के रूप में दर्शाया. पिछली तिमाही 30 सितंबर को समाप्त हुई थी. लिहाजा, ऐसी कंपनियों के पास अपने खातों को ''दुरुस्त" करने का मौका 31 दिसंबर तक है ताकि वे इस तरह इकट्ठा नकदी को समायोजित कर सकें. कंपनियों को इस बात का अंदाजा है कि उनके ऊपर कर विभाग की निगाह है, इसीलिए वे अपने खातों में ''कैश इन हैंड" के मद में भारी उछाल नहीं दिखाएंगी. वे इसे ऐसे स्तर पर रखेंगी, जिसे संभाला जा सके. यह सब कुछ मुक्रत में नहीं हो रहा बल्कि इस धन को सफेद करने के एवज में 20-40 फीसदी कमिशन लिया जा रहा है.
इंजीनियरिंग, मेडिकल और एमबीए की डिग्री देने वाले पेशेवर कॉलेज भी काले धन को सोखने का अड्डा बनकर उभरे हैं. बताया जा रहा है कि कॉलेजों ने पिछली तारीख की प्रविष्टि में छात्रों से नकद फीस लेना दर्शाया है. दिलचस्प बात यह है कि छात्रों को इसकी जानकारी नहीं है कि उनके नाम की फीस जमा करा दी गई है. इसी नकद को छात्रों की फीस के नाम पर दिखाकर बैंकों में जमा कराया जा रहा है. छात्रों के नाम से जो पैसा जमा कराया गया है, वह कॉलेज के मालिक का काला धन भी हो सकता है और दूसरों का भी, जिसे फीस बताकर सफेद किया जा रहा है. कई कॉलेजों के मालिक/संचालक खुद नेता हैं, तो यह तय है कि उन्होंने अपने काले धन को सफेद करने के लिए यही तरीका अपनाया होगा. पेशेवर कॉलेज फीस के रूप में छात्रों से भारी राशि लेते हैं, जिसके चलते पुराने नोटों में काले धन को सफेद धन में बदलना उनके लिए और आसान हो जाता है.
जिन कारोबारों में पुरानी मुद्रा की इजाजत है, उनका इस्तेमाल भी पुराने नोटों को बदलने में हो रहा है—जैसे पेट्रोल पंप, मेडिकल स्टोर और एलपीजी की एजेंसियां. मान लें कि एक पेट्रोल पंप की दैनिक बिक्री पांच लाख रु. की है. यह मानते हुए कि 60 फीसदी बिक्री पुराने नोटों में की गई है, बाकी हिस्सा 100 रु., 50 रु., 20 रु. और 10 रु. के नोटों में मौजूद होगा. साथ ही उसमें 2,000 रु. और 500 रु. के नए नोट भी होंगे. इन पेट्रोल पंपों के पास विकल्प है कि वे पुराने नोटों को चालू और नए नोटों से बदल दें. जाहिर है, यह काम भी मुफ्त में तो नहीं ही किया गया होगा.
उपभोक्ता है बादशाह
कोलकाता में लोग अपना काला धन सफेद करने के लिए अलीपुर और बालीगंज जैसे संभ्रांत इलाकों में अपने फ्लैटों के किराये के रूप में भारी संख्या में एडवांस दे रहे हैं. उन्होंने फ्लैटों का मासिक किराया 50,000 रु. तक चुकाए हैं, जबकि उन फ्लैटों का सामान्य मासिक किराया 10,000 रु. ही होता है. एक चार्टर्ड एकाउंटेंट, जो बहुत से लोगों को सलाह दे चुका था, ने कहा, ''लोगों ने तीन साल का किराया एडवांस में दे दिया है और इस तरह उन्होंने 18-20 लाख रु. का काला धन सफेद कर लिया." दलालों के जरिए पुरानी कारों की बिक्री बहुत बढ़ गई है. कुछ लोगों ने पांच से छह पुरानी कारें बुक कर ली हैं और एक कार के लिए वे 2 लाख रु. का एडवांस दे चुके हैं. दलाल पिछली तारीख वाले बिलों की व्यवस्था कर रहे हैं और कमिशन के तौर पर हर सौदे में 10 फीसदी की रकम मांग रहे हैं.
कोलकाता नगर निगम (केएमसी) ने नोटबंदी के बाद से महज 21 दिनों में 73 करोड़ रु. की कमाई कर ली है. केएमसी ने समय पर कर न चुकाने वालों को 500 रु. और 1,000 रु. के पुराने नोटों में बकाया और अग्रिम संपत्ति कर चुकाने का अवसर दे दिया है. यह बहुत सफल रहा, हालांकि केएमसी ने प्रतिबंधित नोटों को स्वीकार करने में आरबीआइ के दिशा-निर्देशों और अपने नियमों की अनदेखी की है. केएमसी के नियमों के अनुसार, 25,000 रु. से ऊपर की कोई भी रकम डिमांड ड्राफ्ट के जरिए देनी होती है. लेकिन इस तरह के नियमों की अनदेखी की गई और केएमसी ने संपत्तियों के मालिकों से उनके पैन नंबर भी देने को नहीं कहा. इसके चलते इतनी बड़ी मात्रा में टैक्स जमा होने लगा कि नगर निगम को नोटों का हिसाब रखने के लिए नोट गिनने वाली मशीनें खरीदनी पड़ीं. केएमसी के एक अधिकारी ने कहा, ''विमुद्रीकरण टैक्स-माफ करने वाली उस योजना से भी कहीं ज्यादा प्रभावी साबित हुआ, जिसमें बकाया टैक्स पर ब्याज न देने की राहत दी गई थी." पिछले साल इस समय के दौरान जमा हुए टैक्स के मुकाबले 20 करोड़ रु. के ज्यादा टैक्स ने पीएमओ, आइटी विभाग और सीएजी का ध्यान अपनी ओर खींचा है.
सवालों के घेरे में बैंक
राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ ही सहकारी बैंक काले धन को सफेद बनाने का जरिया बन गए हैं. महाराष्ट्र में लातूर जिले के उदगीर में बैंक ऑफ महाराष्ट्र के चार कर्मचारियों को 15-20 लाख रु. के पुराने नोटों को बदलने के आरोप में 22 नवंबर को निलंबित कर दिया गया. आरोप है कि इन कर्मचारियों ने 30 प्रतिशत का कमिशन लेकर लेनदेन को दर्ज किए बिना एक व्यापारी को नए नोट मुहैया करा दिए थे. उन्होंने व्यापारी को फायदा पहुंचाते हुए प्रविष्टियों को दूसरे ग्राहकों के खातों में दिखा दिया. यह मामला तब सामने आया, जब बैंक के एक अन्य कर्मचारी ने एक ग्राहक को सावधान कर दिया, जिसके खाते में लेनदेन दिखाया गया था. ग्राहक ने यह मामला मैनेजर के सामने रखा और फिर मैनेजर ने पुलिस को सूचना दे दी.
अपारदर्शी और राजनैतिक नियंत्रण वाले सहकारी बैंक तो जमा करने के मामले में एक कदम आगे ही निकल गए, कुछ ने तो केवाइसी की पुष्टि भी जरूरी नहीं समझी. शून्य बैलेंस वाले खातों में 49,000 रु. तक की राशियां जमा हो रही हैं. इतनी रकम जमा करने के लिए पूरे पश्चिम बंगाल में सहकारी बैंकों में पैन नंबर देना जरूरी नहीं होता है, खासकर पूर्वी मिदनापुर, मालदा, मुर्शिदाबाद और दक्षिण व उत्तर दीनाजपुर जिलों में. 8 नवंबर के बाद से भारी संख्या में पैसे जमा हुए हैं. उत्तरी दीनाजपुर के रायगंज में एक दूरदराज के बैंक में नोटबंदी के बाद 10 दिनों के भीतर 42 करोड़ रु. की रकम जमा हुई. महाराष्ट्र के नासिक जिला सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक में बिना किसी रिकॉर्ड के 47 करोड़ रु. जमा होने से वह संदेह के घेरे में आ गया है. पुलिस को संदेह है कि बैंक के कर्मचारियों ने आरक्षित कोष का इस्तेमाल करके काले धन को सफेद किया है. सरलगांव में थाणे जिला सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक की एक शाखा में नोटबंदी के बाद से लेकर आरबीआइ की ओर से जिला सहकारी बैंकों में पुराने नोट लेने पर रोक लगाए जाने तक चार दिनों के भीतर 4 करोड़ रु. जमा हो चुके थे. टैक्स अधिकारियों के मुताबिक, सहकारी बैंकों पर नजर रखने और उसकी जांच करने के रास्ते में समस्या की जड़ यह है कि राजनैतिक दलों के साथ इस सेक्टर की मिलीभगत होती है. एक आयकर अधिकारी अपना नाम गुप्त रखे जाने की शर्त पर कहते हैं, ''हर लेनदेन पर नजर रखना संभव नहीं है. हम जांच के काम में प्रवर्तन निदेशालय की भी मदद ले रहे हैं, क्योंकि अपराधियों को आपराधिक कार्रवाई का सामना करना होगा."
चुनावी खेल
महाराष्ट्र के धुले और नंदूरबार जिलों में 26 नवंबर को पांच नगर परिषदों के चुनाव की पूर्वसंध्या पर राजनैतिक कार्यकर्ता अपने वोटरों को ''रिझाने" में व्यस्त थे. नंदूरबार जिले में शाहदा के एक निवासी के मुताबिक, हर पार्टी एक वोट के बदले पुराने नोटों में 2,000 रु. से 2,500 रु. देने की पेशकश कर रही थी. एक आदमी, जिसके परिवार को 22,000 रु. मिले, ने बताया, ''उम्मीदवारों ने इस तरह से अपना काला धन लोगों में बांट दिया. इसके बदले मतदाताओं को भी कुछ रकम मिल गई. यह बात सही है कि हम उस पैसे का इस्तेमाल रोजमर्रा के लेनदेन के लिए नहीं कर सके, लेकिन उसे बैंकों में जमा कर दिया, जिसके लिए कानूनी रूप से इजाजत थी." महीने में 20,000 रु. की आय वाले उस आदमी के परिवार के लिए यह एक बड़ी रकम थी.
राज्य के 147 नगर परिषदों के चुनाव काला धन को सफेद बनाने के लिए एक बड़ा माध्यम बन गए थे. एक भीतरी सूत्र के मुताबिक, उम्मीदवारों ने वोटरों को प्रभावित करने के लिए पुराने नोटों का जमकर इस्तेमाल किया. पहलवानी का प्रशिक्षण देने वाले उमेश चौधरी कहते हैं, ''इस तरह वे अपने काले धन से छुटकारा पा गए और उनके जरिए वोट पाने की भी कोशिश की. दूसरी तरफ वोटरों को भी बैंकों में जमा करने के लिए कुछ पैसा मिल गया." कुछ मामलों में उम्मीदवारों ने पुराने नोटों के जरिए वोटरों के संपत्ति और पानी के टैक्स भी चुका दिए. कोई ताज्जुब नहीं कि पूरे महाराष्ट्र में एक हफ्ते के भीतर 1,200 करोड़ रु. का बकाया टैक्स जमा हो गया.
नोटबंदी के बाद से कितनी बड़ी मात्रा में काले धन को सफेद किया गया है, इस बारे में विशेषज्ञ कोई भी स्पष्ट आंकड़ा नहीं दे पा रहे हैं, लेकिन उनका कहना है कि यह सब हमारी व्यवस्था की खामियों को दर्शाता है. वे करों और शुल्कों को ज्यादा आसान बनाने की सलाह देते हैं (उदाहरण के लिए अचल संपत्ति के सौदों में स्टैंप ड्यूटी कम करने से इस सेक्टर में काला धन कम करने में मदद मिल सकती है). विशेषज्ञों का मानना है कि टैक्स की रूपरेखा बेहतर होने से ज्यादा लोग कर चुकाना पसंद करेंगे. इसके अलावा सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार पर रोक लगाना, जमीन के सौदों पर ज्यादा पारदर्शिता और ग्रामीण इलाकों में बैंकों की पहुंच बढ़ाना जैसे कुछ ऐसे उपाय हैं, जो काला धन पर रोक लगाने में मददगार साबित हो सकते हैं. ईवाइ इंडिया में वरिष्ठ टैक्स सलाहकार सत्या पोद्दार बताते हैं कि सिंगापुर, साइप्रस और मॉरिशस जैसे देशों में लोग कर योग्य आय को टैक्स-फ्रेंड्ली कानूनों के जरिए पूंजी लाभ में परिवर्तित करते हैं, ताकि भारी टैक्सों से बचा जा सके. जब तक टैक्स बोझ को हल्का नहीं किया जाता है और निगरानी की व्यवस्था सही नहीं की जाती है, तब तक काले धन का बनना जारी रहेगा और उसे सफेद करने का धंधा भी. इस तरह नोटबंदी के जरिए काला धन खत्म करने की मोदी की कोशिश की उपयोगिता पर सवालिया निशान लग जाएगा.
(-साथ में एम.जी. अरुण, असित जॉली, किरण डी. तारे, राहुल नरोन्हा, श्वेता पुंज, रोहित परिहार और अमिताभ श्रीवास्तव)