अरे, दुबेजी क्या टोल रोड खत्म हो गया? '' दिल्ली-जयपुर हाइवे पर शाहजहांपुर के टोल प्लाजा पर 114 रु. की पर्ची कटाए बमुश्किल 20 मिनट हुए थे कि कोटपूतली के पास एक अधबने फ्लाईओवर ने हाइवे को संकरा होने को मजबूर कर दिया. इसीलिए मैं ड्राइवर साहब से यह सवाल पूछने से खुद को रोक नहीं पाया. उनका सीधा उत्तर था, ''नहीं साब, अभी तो जयपुर तक ऐसे ही चलेगा. दो टोल प्लाजा और मिलेंगे. '' कोटपूतली पहुंचने तक दूसरा अधबना फ्लाईओवर भी नमूदार हो गया. अब जरा चौकन्ने हुए. कोहरे को चीरने के लिए बड़ी-बड़ी आंखें कर रास्ते का जायजा लेना शुरू किया. पूरे रास्ते अधबने पुल हमारे हमसफर बने रहे.
जब भी कोई कस्बा आता, वहां डिवाइडर बिला नागा गायब दिखाई देते. जयपुर आने से 40 किमी पहले तक वे साइनबोर्ड कहीं नजर नहीं आए जो बताते कि हम कितना सफर पूरा कर चुके हैं या हम किस शहर से गुजर रहे हैं. सड़क पर रिफलेक्टर्स कहीं नहीं दिखे. इनका जिक्र इसलिए कर रहा हूं कि रात में लंबी सफेद रेखा की तरह चमक कर ये रिफलेक्टर ड्राइविंग को बहुत हद तक सुरक्षित बना देते हैं. और हां, इस छह घंटे की यात्रा में अगर आपको शंका निवारण करना हो तो मुक्त गगन की छांव के अलावा कोई विकल्प नहीं है, भले ही इससे सरे राह स्वच्छ भारत का नारा तार-तार होता हो तो हो जाए.
जयपुर पहुंचते-पहुंचते यही सवाल मन में आया कि जिस गाड़ी को खरीदते वक्त ही रोड टैक्स जमा किया जा चुका हो, जिसके राजस्थान में प्रवेश करने के लिए एक दिन का करीब 500 रु. टैक्स भी लिया गया हो, उस गाड़ी से इस अधबने हाइवे पर 230 रु. टोल टैक्स वसूलना कहां तक जायज है? दरअसल दिल्ली-जयपुर हाइवे को कई साल से चार लेन से छह लेन राजमार्ग में बदला जा रहा है. काम तय वक्त से काफी पीछे चल रहा है. लेकिन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआइ) के नियमों के मुताबिक छह लेन का काम शुरू होते ही ठेकेदार को पूरा टोल वसूलने का अधिकार है, भले ही इस काम में रोड पहले से ज्यादा खराब हो गई हो.
एनएचएआइ पूरी निष्ठा से ठेकेदार को फायदा पहुंचाने वाले इस नियम से बंधा है. लेकिन और भी बहुत से नियम हैं जो यात्रा करने वालों के हक में हैं, उन्हें एनएचएआइ बड़े मजे से दरकिनार कर देता है. एनएचएआइ में ठेकेदारों के पक्ष में चल रहे इस पूरे खेल को 23 दिसंबर को संसद में पेश भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में उजागर किया गया है. रिपोर्ट में दिल्ली-जयपुर (तकनीकी रूप से गुडग़ांव-जयपुर) हाइवे के संदर्भ में कई बातें हैं. रिपोर्ट में कहा गया कि अगर ठेकेदार कंपनी छह लेन का ठेका मिलने के बाद समय सीमा के भीतर काम नहीं निपटाती तो इस देरी के दौरान उसके द्वारा वसूला गया टोल टैक्स एक 'लंबित राशि' खाते में जमा करा लेना चाहिए. यह पैसा तब तक ठेकेदार को नहीं मिलना चाहिए, जब तक वह पहला माइल स्टोन पूरा नहीं कर लेता और अगला माइल स्टोन सही समय पर पूरा नहीं कर लेता. जितने समय तक यह रकम खाते में रहेगी उसका ब्याज एनएचएआइ को दिए जाने का नियम है. सीएजी के मुताबिक गुडग़ांव-जयपुर हाइवे इन पैमानों पर नाकाम रहा और उसकी टोल से कमाई 459.87 करोड़ रु. की रकम इस खाते में जब्त होनी चाहिए थी, हालांकि एनएचएआइ ने ठेकेदार कंपनी पिंकसिटी एक्सप्रेसवे प्रा.लि. के मामले में इस खामी सहित कई और कमियों पर कोई कार्रवाई नहीं की.
टोल वसूला, काम नदारद
अगर गुलाबी शहर जाने में ये दुशवारियां हैं तो दिल्ली से ताज की नगरी आगरा जाने में भी हजारों झेल हैं. यहां भी फोर लेन हाइवे को सिक्स लेन हाइवे किया जा रहा है. टोल चुकाने के बाद गड्ढों और 'कार्य प्रगति पर है' के बोर्ड रास्तेभर गलबहिंया करते रहते हैं. इस रोड को सिक्स लेन करने का ठेका रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर की सहयोगी कंपनी डीए टोल रोड प्राइवेट लिमिटेड को 26 मई, 2010 को ही दे दिया गया था. 16 अक्तूबर 2012 से यहां सिक्स लेन के हिसाब से टोल वसूली शुरू भी हो गई, लेकिन सीएजी के मुताबिक 27 जून 2013 तक इस परियोजना में कोई प्रगति नहीं हुई. हां, कंपनी पैसा कमाती रही. अगस्त 2013 तक कंपनी ने 120 करोड़ रु. टोल वसूला और इस पैसे को सिक्स लेन रोड बनाने की बजाए दूसरे कामों में लगा दिया. यही नहीं जब लोग चौड़े रोड की आस में बेमन से टोल चुकाते निकल रहे थे, उस समय कंपनी ने टोल से मिले 78 करोड़ रु. रिलायंस लिक्विड फंड्स में निवेश कर दिए. यानी टोल के नाम पर आम आदमी बेहतर रास्ते का ख्वाब ही देखता रहा गया और ठेकेदार ने पैसे से पैसा बनाना शुरू कर दिया.
अब जरा दिल्ली से पूर्व दिशा में बढ़ें. दिल्ली से लखनऊ के रास्ते पर पहला टोल गाजियाबाद में डासना में पड़ता है. यहां गाजियाबाद और नोएडा से आने वाला ट्रैफिक और दूसरी तरफ हापुड़ से आने वाला ट्रैफिक एकदम से आमने-सामने आ जाता है. जरा सी सावधानी घटी औैर दुर्घटना मुहं बाए खड़ी है. टोल के बैरिकेड भी टूटे-फूटे हैं और कोई कर्मचारी तय ड्रेस में नहीं मिलेगा. यहां आपको 15 रु. की पर्ची कटाकर टोल का शुभारंभ करना है. गाजियाबाद से रामपुर के सफर तक आपको पांच टोल चुकाने हैं और छठा टोल बूथ बनकर तैयार है, जो अगली यात्राओं में आपकी जेब काटेगा. 180 किमी के रास्ते में छह टोल की मौजूदगी यात्रा के समय में आधे से एक घंटे की वृद्धि तो बड़े आराम से कर देती है. और किसी भी टोल पर आपको गाड़ीवालों और टोल कर्मचारियों के बीच बहस होती बड़े आराम से मिल जाएगी. लेकिन ये कमियां एनएचएआइ के जांचकर्ताओं की नजर में नहीं आतीं. 20 अक्तूबर 2014 को ब्रिजघाट टोल की नियमित जांच रिपोर्ट में कर्मचारियों का व्यवहार सामान्य पाया गया और उन्हें उचित ड्रेस पहने भी बताया गया. हालांकि यहां से गुजरने वाले वाहन चालकों को ये दोनों बातें हमेशा खटकती हैं. इस हाइवे पर भी सड़क कई व्यस्त कस्बों के भीतर से गुजर रही है. गढ़मुक्तेश्वर के पास एक बड़ा ब्रिज कई साल से अधूरा पड़ा है, फिर भी टोल में कोई रियायत नहीं है.
जो हाल टोल वसूलने वाले इन हाइवे का है, वही ज्यादातर हाइवे का है. लेकिन धंधा मुनाफे का है, तभी तो देश में टोल रोड की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है. 2011-12 में टोल से जहां 7,000 करोड़ रु. की कमार्ई होती थी, वहीं 2013-14 में 11,000 करोड़ रु. से ज्यादा की कमाई हुई. राजस्थान और आंध्र प्रदेश देश के ऐसे दो राज्य हैं जहां सबसे ज्यादा ऐसे टोल रोड हैं जो अपना पैसा कब का वसूल चुके हैं, फिर भी चले जा रहे हैं. (देखें: पैसा छाप रहे टोल) इसके अलावा सीएजी की रिपोर्ट ने आठ टोल परियोजनाएं ऐसी भी पाई हैं जिन्हें टोल वसूली के लिए जरूरत से ज्यादा साल दिए गए हैं. इससे ये कंपनियां 28,000 करोड़ रु. की अतिरिक्त आमदनी करेंगी. तो क्या टोल का यह खेल राहगीरों को लूटने वाला नहीं होता जा रहा है?
गडकरी के सामने बड़ी चुनौती
देश के भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है, ''पूरी टोल नीति की समीक्षा की जा रही है, सरकार जल्द ही कई सकारात्मक बदलावों के साथ सामने आएगी. '' ट्रांसपोर्ट विभाग की ई बुक लॉन्च के कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ''अपनी लागत निकाल चुके 75 में से 55 छोटे टोल को खत्म कर दिया गया है और हाइवे के किनारे की जनसुविधाओं को लेकर सरकार तेजी से काम कर रही है. '' सीएजी की रिपोर्ट और लोगों से टोल रोड पर हो रही मनमानी के सवाल पर मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, ''ठेका मिलते ही सिक्स लेन का टोल वसूलने का नियम बहुत ज्यादा विवादित है. इसकी समीक्षा की जा रही है.
लेकिन इसे तत्काल समाप्त नहीं किया जा सकता क्योंकि इस पर एनएचएआइ और ठेकेदार, दोनों की सहमति है. मौजूदा परियोजनाओं में इसे समाप्त करने से अदालत में मामला कमजोर पड़ जाएगा. '' अधिकारी ने बताया कि मंत्रालय संसद के अगले सत्र में नया सड़क परिवहन और सुरक्षा विधेयक लेकर आएगा. इसमें हाइवे और टोल को लेकर कई बुनियादी बदलाव किए जाएंगे. खुले में शंका निवारण की समस्या से निपटले के लिए 2,000 स्थानों पर जन सुविधाएं बनाई जाएंगी. 60 स्थानों का चयन मंत्रालय ने कर लिया है और मार्च-अप्रैल तक यहां जन सुविधाओं के लिए टेंडर जारी कर दिए जाएंगे. अधिकारी स्पष्ट करते हैं कि जन सुविधाओं का अर्थ सिर्फ शौचालय नहीं है. इसमें सड़क किनारे रेस्त्रां, पेट्रोल पंप, वाहन का सर्विस स्टेशन और ट्रकर्स क्लब जैसी सुविधाएं शामिल होंगी.
(दिल्ली-जयपुर पर अधूरा पड़ा फ्लाई ओवर)
सख्त हुई अदालतें
सरकार के ये वादे बड़े उत्साहजनक हैं, लेकिन हैं तो वादे ही. जिस तरह शीतकालीन सत्र में सरकार के महत्वाकांक्षी बिल धरे रह गए, उसमें बजट सत्र में भूतल परिवहन मंत्रालय का यह बिल पास हो ही जाएगा, इसकी क्या गारंटी है? इसलिए सरकार को धीरे-धीरे सही दिशा में काम बढ़ाने शुरू करेंगे. इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसपोर्ट रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग (आइएफटीआरटी) के सीनियर फेलो एस.पी. सिंह सवाल करते हैं, ''नियम बनाने से ज्यादा बड़ी चुनौती ठेका कंपनी, एनएचएआइ और नेताओं के नेक्सस को तोडऩे की है. टोल से की जा रही अतिरिक्त कमाई में बहुत से भ्रष्ट लोगों की हिस्सेदारी है. इसे खत्म करना होगा.''
वैसे भी अगर सरकार खुद तेज नहीं होगी तो अदालतें उसे तेज कर देंगी. जयपुर-दिल्ली हाइवे के मामले में इस साल 10 सितंबर को राजस्थान हाइकोर्ट की जस्टिस एम.एन. भंडारी की पीठ ने टोल टैक्स बढ़ाने के फैसले को खारिज कर दिया. अदालत ने पूछा कि जब रोड की हालत ही खस्ता है तो टोल किस बात का बढ़ाया जा रहा है. इसी तरह चेन्नै-बंगलुरू हाइवे के चेन्नै से वेल्लूर तक के टुकड़े पर वसूले जा रहे टोल को मद्रास हाइकोर्ट में चुनौती मिली. यहां भी यही आरोप था कि ब्रिज और अन्य बुनियादी ढांचा अभी बन ही रहा है और एनएचएआइ ने टोल वसूलना शुरू कर दिया है. हाइकोर्ट ने इंडियन रोड कांग्रेस से सड़क का निरीक्षण करने के बाद अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा है.
इन हालात में परिवहन मंत्री को न सिर्फ एक बेहतर टोल नीति पेश करनी होगी, बल्कि यह भी तय करना होगा कि भारतीय सड़कों पर हर साल पांच लाख दुर्घटनाओं में होने वाली एक लाख मौतों को किस तरह रोक जाए.