Advertisement

गोली-बारूद के बीच सीरिया में भूख से बिलख रहे हैं हजारों लोग

सरहदों को जीतने और अपनी हुकूमत कायम करने के चक्कर में चंद लोगों ने सीरिया के करीब चार लाख लोगों के मुंह से जिंदगी का निवाला छीन लिया है.

सीरिया में पेट भरने के लिए जद्दोजहद जारी सीरिया में पेट भरने के लिए जद्दोजहद जारी
अमित कुमार दुबे/शम्स ताहिर खान
  • नई दिल्ली,
  • 29 अप्रैल 2016,
  • अपडेटेड 11:48 AM IST

सरहदों को जीतने और अपनी हुकूमत कायम करने के चक्कर में चंद लोगों ने सीरिया के करीब चार लाख लोगों के मुंह से जिंदगी का निवाला छीन लिया है. आईएसआईएस, विद्रोही सेना और सीरियाई राष्ट्रपति की फौज के बीच जारी जंग की वजह से सीरिया के कई शहरों में लोग खुद भूख का निवाला बनते जा रहे हैं. भूखे मरने से बचने के लिए यहां जिंदगी जद्दोजहद कर रही है.

Advertisement

जंग और जेहाद के बीच जिंदगी
दरअसल सरहदों को जीतने वालों को जरा सोचना चाहिए कि सरहदों के अंदर अगर इंसान ही नहीं बचेंगे, तो इन सरहदों को जीत कर या जमीन के टुकड़ों पर कब्जा कर कौन किस पर कैसी हुकूमत कर पाएगा? किसके लिए वो जेहाद के नारे बुलंद करेगा? कौन उसकी हुकूमत के तख्त-ओ-ताज का वारिस होगा? जंग और जेहाद की आग में झुलस रहे सीरिया के बाशिंदों की बगदादी के आईएसआईएस और इराक और सीरिया के हुक्मरानों से बस यही सवाल हैं.

बेगुनाहों की सरेआम हत्या जारी
एक तरफ आईएसआईएस के जल्लादों की टोली, दूसरी तरफ राष्ट्रपति बशर अल असद की फौज और तीसरी तरफ वजूद की लड़ाई लड़ रहे फ्री सीरिया आर्मी के जवान और इन सबके बीच में सीरिया के मासूम और बेगुनाह लोग फंसे हैं. जमीन से लेकर आसमान तक से होती बमों की बारिश ने एक पूरी की पूरी नस्ल को ही जैसे जीते-जी मुर्दा कर दिया. जिस्म से लेकर इमारत तक छलनी पड़े हैं. शहर में जगह-जगह नए-नए कब्रिस्तान निकल आए हैं.

Advertisement

रोटी के लिए तरस रहे हैं लोग
दरअसल जंग सिर्फ गोली-बारूद का नाम नहीं है. भूख और रोटी के बीच भी जंग होती है. उसी एक अदद रोटी के लिए सैकड़ों सीरियाई शहरी तरस रहे हैं. आज से 5 साल पहले 2010 में 20 लाख टन से भी ज्यादा अनाज इन्हीं सीरियाई नागरिकों ने दूसरे देशों को निर्यात किया था. लेकिन जंग ने इस मुल्क की अब ऐसी हालत कर दी कि रोटी क्या लोग घास तक खा रहे हैं. बचपन में बच्चे मिट्टी से खेलते हैं. यहां तक कि मिट्टी खा भी लेते हैं. लेकिन वो शरारत कहलाती थी पर यहां भूख मिटाने के लिए मिट्टी खाने को मजबूर हैं. जिसे जहां से रोटी के एक टुकड़े की उम्मीद नजर आती वो वहीं तलाशने लगता है. फिर चाहे रोटी का वो टुकड़ा कूड़े के ढेर से ही क्यों ना मिल जाए.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement