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नहीं आता घर का काम और होने वाली है शादी तो...

शादी के एक हफ्ते बाद मैंने ऑफिस ज्वॉइन कर लिया. मुझे याद है उस दिन ऑफिस जाने से पहले मुझे कितनी तैयारी करनी पड़ी थी. एक अच्छी ड्रेस चुनी थी मैंने. फिर उससे मैचिंग सैंडिल और बैग..मैं जानती थी कि लोग मुझे बधाई देने आएंगे और वो मुझे नोटिस भी करेंगे.

खाना बनाने नहीं आता तो क्या हुआ खाना बनाने नहीं आता तो क्या हुआ
भूमिका राय
  • नई दिल्ली,
  • 11 मई 2016,
  • अपडेटेड 1:08 PM IST

मुझे बहुत अच्छी तरह याद है जब हमारी शादी की डेट फाइनल हुई थी तो उस वक्त मेरे दिमाग में सिर्फ और सिर्फ एक ही बात चल रही थी. कपड़े, गहने से ज्यादा चिंता मुझे इस बात की थी कि क्या मुझे ऑफिस से उतनी छुट्टी मिल जाएगी जितनी मुझे चाहिए...दिसंबर के महीने में वैसे भी बहुत सारे इवेंट होते हैं, ऐसे में एक महीने की छुट्टी मांगना और फिर मिल जाना दोनों ही मेरे लिए टास्क थे. आमतौर पर लड़कियों को इस दौरान किचन को लेकर तरह-तरह की टेंशन होती है कि वो दूसरे घर में क्या पकाएंगी, कैसे पकाएंगी...जबकि मुझे सिर्फ छुट्ट‍ियों की टेंशन थी. न तो मुझे गोल रोटियों की टेंशन थी न ही चिकन करी की...उस समय मेरे दिमाग में सिर्फ छुट्टियां चल रही थीं.

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शादी के एक हफ्ते बाद मैंने ऑफिस ज्वॉइन कर लिया. मुझे याद है उस दिन ऑफिस जाने से पहले मुझे कितनी तैयारी करनी पड़ी थी. एक अच्छी ड्रेस चुनी थी मैंने. फिर उससे मैचिंग सैंडिल और बैग..मैं जानती थी कि लोग मुझे बधाई देने आएंगे और वो मुझे नोटिस भी करेंगे. मैंने उस दिन भी किचन में सिर्फ दो कप चाय ही बनायी थी और फटाफट से काम के लिए निकल गई थी.

मेरी शादी को अब चार साल हो चुके हैं और मुझे ये कहने में कोई शर्मिंदगी नहीं होती है कि मैं एक domestically challenged महिला हूं. हां, इन कुछ सालों में मैंने कुछ ऐसी डिशेज जरूर सीख ली हैं जो पांच मिनट में बन जाती हैं. मेरी दाल आज भी पानी-पानी हो जाती है और रोटी बनाने का टेंशन मैंने मेरी मेड के सिर छोड़ दिया है. मेरा घर जगमगाता तो नहीं है लेकिन गंदा भी नहीं रहता...पर सबसे जरूरी मैं खुश हूं. वाकई खुश हूं.

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लेकिन मुझे उन लोगों की सोच पर हंसी आती है जो एक लड़की को उसके दो कामों से ही जज करते हैं. पहला तो वो कितनी जल्दी मां बन जा रही है और दूसरा कि वो कितनी गोल रोटियां बनाती है. मैं इन दोनों ही पहलुओं पर फेल हूं. पर इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि मैं खुद को एक फेल वाइफ मानती हूं...गलती से भी नहीं.

मैं घर में आने वाले लगभग हर बिल को अपने हसबैंड के साथ शेयर करती हूं. मैं उसके साथ समझदारी और मीनिंगफुल बातें करती हूं. मैं इंटरनेट से जुड़ी लगभग हर चीज को उसे बताने में देखने में उसकी मदद करती हूं, जिससे उसका टाइम बचता है. क्या इतना कुछ करने के बावजूद मैं बुरी बीवी ही कहलाउंगी?

जब मेरी शादी हुई तो मेरी मां को बहुत टेंशन थी. वो परेशान रहती थी कि मुझे तो घर का कोई काम आता नहीं फिर मैं गुजर कैसे करूंगी. पर शादी के बाद भी मुझे खाना बनाना नहीं आया. फिर जब मैंने जॉब से एक साल का ब्रेक लिया तो सबने मुझे कुकिंग सीखने की सलाह दी. लेकिन मैंने किताबें पढ़ी...खूब किताबें पढ़ी और बहुत सी जानकारी हासिल की. कुछ समय बाद मेरे पति बीमार हुए और लोगों ने एकबार फिर मुझ पर दबाव बनाना शुरू कर दिया. मैंने कुछ हद तक उनकी बात मानी लेकिन उस दौरान मैं घंटों अपने हसबैंड के साथ बैठती थी. उनसे पॉजिटिव थॉट्स शेयर करती थी. मुझे लगा कि इससे उन्हें काफी फायदा हुआ.

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मुझे ये समझ नहीं आता कि आखिर हम औरतों के घरेलू काम सीखने पर इतना जोर क्यों देते हैं. मैं अपने घर के लिए रोटी पकाकर न सही रोटी कमाकर भी एक अच्छी पत्नी बन सकती हूं. मैं अब भी कुकिंग सीखने में इंटरेस्टेड नहीं हूं. मैं उसके लिए मेड रख सकती हूं और मेरे पास है. मेरे पास एक ही जिंदगी है और मैं इसे बिल्कुल अपने तरीके से जीना चाहती हूं. न कि किचन में खड़े होकर आलू मटर की सब्जी बनाते हुए, पसीने से तर-बदर... मैं एक domestically challenged बीवी हूं और मैं इसे बदलने के मूड में भी नहीं हूं. मैं चाहती हूं कि जब मैं मरने वाली हूं तो मैं जिंदगी में गुजरे इन हसीन लम्हों को याद करूं न कि ये कि मैंने किसके लिए क्या पकाया. रही बात मेरे पति की तो बिल्कुल उनके साथ के बिना मैं मेरी जिंदगी कभी नहीं जी पाती...

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