
यह छठे दशक की बात है. मुंबई में ग्रांट रोड पर नॉवेल्टी और अप्सरा सिनेमा हॉल थे. तकरीबन रोज ही यहां एक किशोर उम्र का लड़का घूमता दिखता. कोई फिल्म उसके देखने से छूट नहीं सकती थी. अगर एक ही फिल्म कई हफ्ते चलती रहे तो वही कई-कई बार देखी जाती. हालांकि खुद उसने भी कभी नहीं सोचा था कि एक दिन दुनिया उसे बमन ईरानी के नाम से जानेगी.
मुंबई के मीठीबाई कॉलेज से ग्रेजुएशन के बाद बमन ने ताज होटल में बतौर वेटर और रूम सर्विस स्टाफ काम शुरू किया. मां कन्फेक्शनरी की दुकान चलाती थीं. मध्यवर्गीय पारसी परिवार था. मां के बहुत ऊंचे अरमान नहीं थे कि बेटा डॉक्टर-इंजीनियर बन जाए. बमन हंसकर कहते हैं, “मैं पढऩे में अच्छा नहीं था. लेकिन मेरे सपने बहुत बड़े थे.”
वे खुश थे. खाली समय में किताबें पढ़ते, दक्षिण मुंबई की सड़कों पर घूमते और समंदर के किनारे बैठा करते. लेकिन भीतर कुछ तो बेचैनी थी. आखिरकार एक दिन उन्होंने वह काम छोड़ दिया और कैमरा थाम लिया. 1985 की बात है. वे कहते हैं, “बचत के 2,700 रु. से पहला कैमरा खरीदा- पिंटेक्स के. 1000. उस जमाने में फोटोग्राफी करना बहुत खर्चीला हुआ करता था.”
1991 में उन्हें वल्र्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप शूट करने का ऑफिशियल एसाइनमेंट मिला और ठीकठाक पैसे भी. वह एक टर्निंग पॉइंट था. उन्होंने मिस इंडिया से लेकर मिस वल्र्ड तक का फोटो शूट किया. लेकिन फुर्सत के समय शहर की प्लास्टर झड़ी उदास इमारतें, स्टेशनों से निकलते थके-हारे चेहरे और समंदर पर डूब रहा सूरज बमन के कैमरे में कैद होता. जिंदगी के बाकी काम भी इस दौरान निबट ही चुके थे. जेनोबिया नाम की पारसी लड़की से उनकी शादी हो चुकी थी, दो बच्चे थे. लेकिन उनके भीतर के अभिनेता की तलाश अब भी अधूरी थी.
बमन ने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर लेटस टॉक नाम की एक फिल्म बनाई थी, जो कभी रिलीज नहीं हुई. लेकिन उस फिल्म में उन्हें देखने के बाद विधु विनोद चोपड़ा ने बमन को एक दिन अपने घर बुलाया और जाते हुए 2 लाख रु. का एडवांस चेक पकड़ा दिया. उसके बाद मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म से बमन के फिल्मी करियर की शुरुआत हुई. 44 साल की उम्र में फिल्मी दुनिया में कदम रखा और पिछले 11 साल में वे तकरीबन 68 फिल्में कर चुके हैं. बीइंग सायरस जैसी गंभीर फिल्म से लेकर वेलडन अब्बा और हनीमून ट्रैवल्स प्रा. लि. जैसी फिल्मों तक बमन की एक्टिंग की लंबी रेंज है. बमन को अपने काम से प्यार है.
अब न वह अप्सरा थिएटर रहा और न ही मां की दुकान. लेकिन बमन के भीतर अप्सरा के चक्कर लगाने वाला वह लड़का अब भी रहता है, जो कभी-कभी इस बात से उदास हो जाता है कि अब वह पहले की तरह मुंबई की सड़कों पर नहीं घूम सकता. मरीन ड्राइव पर बैठ नहीं सकता और मुहम्मद अली रोड फिरनी खाने नहीं जा सकता.
संघर्ष
बतौर वेटर करियर की शुरुआत की. फिर फोटोग्राफी में नाम और पैसा कमाने के लिए भी काफी चक्कर काटने पड़े.
टर्निंग पॉइंट
1991 में वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप शूट करने का मौका मिला.
विधु विनोद चोपड़ा से पहली मुलाकात. उन्होंने मिलते ही दो लाख का चेक पकड़ाकर कहा, तुम मेरी फिल्म में काम करोगे.
उपलब्धियां
फिल्म थ्री ईडियट्स के लिए फिल्मफेयर, स्टार स्क्रीन और आइफा अवॉर्ड से सम्मानित.
मेरा मंत्र
“शुरुआत की कभी कोई उम्र नहीं होती.”