
वैश्विक स्तर पर डोनाल्ड ट्रम्प का उदय सम्पूर्ण विश्व-व्यवस्था पर एक दूरगामी परिवर्तन स्थापित करेगा. संयुक्त राज्य अमेरिका के आंतरिक राजनीतिक परिदृश्य पर इसका प्रभाव तो पड़ेगा ही उसकी विदेश नीति पर भी देखने को मिलेगा. ओबामा कार्यकाल के दौरान किए गए वैदेशिक प्रयासों पर आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिलेगा. भारत हमेशा से अमेरिका का एक सहयोगी राष्ट्र रहा है. ऐतिहासिक रूप से दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ विश्व पटल पर तमाम वैश्विक समस्याओ के खिलाफ आवाज उठाया है. इसके कई कारण रहे हैं जैसे, दोनों देश लोकतांत्रिक हैं, दोनों ही चीन को लेकर चिंतित हैं, दोनों ही आतंकवाद से प्रभावित रहे हैं, दोनों ही उभरते वैश्विक परिदृश्य में अपने दबदबे को बचाए रखने या बढ़ाने में रुचि रखते हैं और दोनों ही वैश्विक स्तर पर अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखने के लिए तत्पर हैं.
डोनाल्ड ट्रम्प का अमेरिका का राष्ट्रपति बनना क्या भारत के लिए उपयोगी साबित होगा या इससे भारत को नुकसान होगा? यहां समझने की बात ये है कि अमेरिका एक यथार्थवादी देश हैं जो हमेशा अपने राष्ट्रीय हितों की पूर्ति के लिए तत्पर रहता हैं. वैश्विक राजनीति में भारत हमेशा से ही अमेरिका के लिए बहुत अहम राष्ट्र रहा है. चाहे कोई भी राष्ट्रपति हो वो हमेशा ही व्यवहारिक दृष्टिकोण से भारत को अपने साथ रखने के पक्ष मे रहा है. निःसन्देह ही डोनाल्ड ट्रम्प के आगमन से भारत को कुछ विशेष लाभ प्राप्त होगा. भारत और अमेरिका के बीच चले आ रहे संबंध सुधार आगे भी जारी रहेंगे. ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान कुछ ऐसे बिन्दु हैं जिसपर भारत ज्यादा ही उम्मीदों के साथ अमेरिका से अपने संबंधों को आगे बढ़ाएगा.
ट्रम्प ने अपने चुनावी भाषणों के दौरान कहा था की यदि वो राष्ट्रपति बनते है तो वो आतंकवाद पर लगाम लगाने का पूर्ण प्रयास करेंगे. भारत भी आतंकवाद से बहुत प्रभावित रहा है. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस मुद्दे पर भारत, ट्रम्प को, पाकिस्तान के खिलाफ करने में सफल रहेगा. राष्ट्रपति के रूप में ट्रम्प भी भारत को अपने साथ रखने का पूर्ण प्रयास करेंगे क्योंकि वैश्विक स्तर पर अमेरिका को भी भारत जैसे देशो के समर्थन की जरूरत रहेगी. चुनाव के दौरान ट्रम्प ने कहा था कि पाकिस्तान दुनिया का सबसे खतरनाक देश है और इसके खिलाफ लड़ाई में भारत अहम भूमिका निभा सकता है जो उनका भारत के प्रति उनके दोस्ताना दृष्टिकोण को दर्शाता है.
पाकिस्तान के खिलाफ भारत और अमेरिका का संबंध अगर मजबूत होता हैं तो इससे आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को मजबूती मिल सकेगी जो दोनों ही देशों के लिए जरूरी है. पाकिस्तान को अमेरिका ने 2002 से अभी तक 30 बिलियन डॉलर मदद के रूप में दिए हैं. ट्रम्प अपने कार्यकाल के दौरान इसपर नियंत्रण लगाने की पूरी कोशिश होगी जिसका जिक्र उन्होंने अपने चुनावी भाषणों में किया था, जो निःसन्देह रूप से भारत के लिए मददगार साबित होगा.
दूसरा महत्वपूर्ण मुद्दा ट्रम्प कार्यकाल के दौरान, चीन पर दोनों देशो की नीति का रहेगा. चीन एक ऐसा देश है जो हमेशा ही अमेरिका और भारत के लिए सिरदर्द बना हुआ है. चीन दोनों देशों के लिए सामरिक रूप से चुनौती तो हैं ही, आर्थिक रूप से भी यह चुनौती बनकर उभरा है. अमेरिका के खिलाफ जिस तरह से पिछले कुछ सालों मे चीन ने अपनी नीतियां बनाई हैं वो उसके लिए बड़ी चिंताजनक है. चाहे पर्ल ऑफ स्ट्रिंग की नीति हो, वन बेल्ट वन रूट की नीति हो या साउथ चाइना सी में चीन के बढ़ते दबदबे की बात. इसका मुख्य उद्देश्य वैश्विक पटल पर अमेरिका और भारत जैसे देशों को किनारे लगाना है. इसके खिलाफ ट्रम्प निश्चित रूप से भारत को साथ को लेकर चलेंगे क्योंकि दोनों ही देश, एक ही बीमारी से ग्रसित हैं.
सामरिक रूप से दोनों देश चीन से प्रभावित तो हैं ही, साथ ही साथ आर्थिक रूप से भी प्रभावित हैं. अमेरिका के अंदर बेरोजगारी की समस्या बढ़ती जा रही है और इसका एक कारण चीन में उत्पादक क्षेत्र के विकास से सीधा जुड़ा है. ट्रम्प ने अपनी चुनावी भाषणों के दौरान इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि यदि वो राष्ट्रपति बनते हैं तो वो चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव को कम करने का पूरा प्रयास करेंगे. भारत भी चीन के साथ व्यापार असंतुलन का शिकार रहा है. पिछले कुछ महीनों में चीन के व्यवहार नें भारत के सामरिक ही नहीं, आर्थिक क्षेत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव डाला है. भारत ट्रम्प से चीन के मुद्दे पर बहुत उम्मीदें लगाए बैठा है जो पारस्परिक हितों पर आधारित रहेगी. यदि ट्रम्प भारत को साथ लेकर चीन को घेरने की कोशिश करते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
चुनाव के दौरान अमेरिकी भारतीयों द्वारा आयोजित एक चुनावी सभा में ट्रम्प ने कहा था कि वो हिंदुओं से और भारत से बहुत प्यार करते हैं. उनका ये कहना यही नहीं रुका, आगे वो कहते है कि मोदी एक सशक्त नेता हैं और वो भी मोदी की तरह और मोदी के साथ काम करेंगे. यही कारण था कि वो चुनावी सभाओं में मोदी की तरह ही नारे लगाएं जैसे 'अबकी बार ट्रम्प सरकार'. मोदी की तरह जनता के दिलों को छूने वालों मुद्दों को उठाया. ऐसा नहीं है कि सिर्फ ट्रम्प ने ही भारत की प्रशंसा की, भारत में भी हिन्दू सेना और दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों ने ट्रम्प के विजय के लिए प्रार्थना सभाएं आयोजित की थी. अमेरिकी चुनाव परिणाम आने के बाद लोगों ने भारत में भी जश्न मनाया. इससे उम्मीद की जानी चाहिए कि दोनों ही एक जैसी सोच वाली सरकारें एक दूसरे के साथ मिलकर काम करेंगी.
ट्रम्प अपने कार्यकाल के दौरान भारत के प्रति अमेरिका की पुरानी नीतियों को भी आगे बढ़ाएंगे जो कि दोनों के संबंधों को प्रगाढ़ बनाएगा. एनएसजी की सदस्यता, संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सदस्यता का मुद्दा या फिर संयुक्त राष्ट्र में आतंकवाद पर भारत के प्रस्ताव का समर्थन जैसे मुद्दों पर अमेरिका द्वारा भारत के सहयोग की संभावनाएं बनी रहेंगी. इसके बदले में भारत द्वारा अमेरिका को विश्व व्यापार संगठन और जलवायु सम्मेलन में सहयोग देने की पूरी संभावना रहेगी.
ऐसा नहीं है कि सहयोग ही रहेगा कुछ ऐसे मुद्दे भी हैं जो दोनों देशों के लिए समस्या का कारण भी बनेगा. अमेरिका में अगर निगमित कर 35% से घटाकर 15% किया जाता है तो इससे व्यापार की संभावना वहां पर ज्यादा होगी जो भारत के लिए नुकसानदायक हो सकता है, जैसा कि ट्रम्प ने चुनाव के दौरान कहा था. ट्रम्प ने अपने भाषणों के दौरान कहा था कि वो कड़े प्रवासी कानून बनाएंगे जिससे अमेरिका में माइग्रेशन पर रोक लग सके जो भारत के लिए किसी भी तरह से अच्छा नहीं होगा क्योंकि बड़ी संख्या मे भारतीय मूल के एच-वन वीजाधारक अमेरिका में कार्यरत हैं, अगर ऐसा होता है तो ये भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में तनाव लाने का कारण बन सकता है.
ट्रम्प ने कहा था कि यदि वो राष्ट्रपति बनते हैं तो वो अमेरिका को तेल के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएंगे. इसके लिए वो ओपेक जैसे तेल व्यापार करने वाले संगठनों को भी प्रभावित करेंगे जो भारत के लिए अच्छा नहीं होगा क्योंकि भारत अपनी तेल की जरूरतों के लिए इनपर निर्भर है. इसपर भी ध्यान देने की जरूरत है कि दोनों देश इस समस्या से कैसे निपटते हैं. स्वास्थ्य क्षेत्र में भी बड़े परिवर्तन करने की घोषणा हो सकती है क्योंकि ट्रम्प ने अपने चुनावी भाषणों के दौरान कहा था कि वो ओबामाकेयर स्वास्थ्य नीति को खत्म कर देंगे. इसका सीधा प्रभाव भारत जैसे विकासशील देशों के स्वास्थ्य क्षेत्र पर पड़ेगा, जोकि पहले से ही स्वास्थ्य समस्याओं से गुजर रहा है. इन चुनौतियों को अगर दोनों देश काबू पाने में सफल हो जाते हैं तो ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत और अमेरिका आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर अपनी पैठ बनाने और अपने हितों की पूर्ति करने में यकीनन सफल रहेंगे.
(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के शहीद भगत सिंह कॉलेज में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक हैं)