
पाकिस्तान के चुनाव नतीजे अब पूरी तरह से साफ हो गए हैं. अभी तक आए रुझानों में पूर्व क्रिकेटर इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ को बड़ी बढ़त मिल रही है, लेकिन वह बहुमत से दूर हैं. हालांकि, बहुमत का आंकड़ा ज्यादा दूर नहीं है अगर इमरान चाहे तो छोटी पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बना सकते हैं.
लेकिन इमरान के चुनाव जीतने पर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं, चुनाव से पहले ही जिस तरह से सेना ने खुले तौर पर इमरान का साथ दिया है. उससे इस तरह की आशंका लगाई जा रही है कि ये किसी तरह का इलेक्शन नहीं बल्कि एक सिलेक्शन था. चुनाव में धांधली का आरोप सिर्फ जानकार ही नहीं बल्कि नवाज शरीफ की पार्टी भी लगा रही है.
नवाज शरीफ के छोटे भाई शहबाज शरीफ ने सीधे तौर पर कहा है कि वह नतीजों को स्वीकार नहीं करेंगे. ये पूरी तरह से धांधली है. शिकायत करने वालों में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी समेत 6 पार्टियां शामिल हैं. सबका एक ही आरोप है कि मतगणना के दौरान अफसरों ने पोलिंग एजेंट को पोलिंग बूथ से निकाल दिया.
चुनाव के दौरान जीत-हार पर जारी किया जाने वाला फॉर्म 45 देने से भी अफसर मुकर गए. शिकायतों के पिटारे के साथ सबसे पहले बिलावल भुट्टो की पार्टी पीपीपी सामने आई.
जैसे ही दुनिया भर और भारत की मीडिया ने इमरान को पाकिस्तानी सेना के समर्थन की बात कही तो वह आग बबूला हो गए. चुनाव प्रचार से पहले आखिरी रैली में उन्होंने कहा कि आजकल एक कमाल चीज़ चल रही है हिंदुस्तान की मीडिया को तकलीफ हो रही है कि पाकिस्तान में धांधली हो रही है पश्चिमी मीडिया को तकलीफ हो रही है कि पाकिस्तान में धांधली हो रही है और फौज करवा रही है धांधली. हिंदुस्तान के मीडिया को क्यों परवाह हो गई जब मैं 126 दिन धरने पर था धांधली के खिलाफ था तब क्यों कुछ नहीं हुआ.
पाकिस्तान चुनाव में आर्मी की भूमिका पर सवाल इसलिए भी उठ खड़े हुए हैं क्योंकि चुनाव पाक फौज को मजिस्टेरियल पॉवर दिए गए. इसके तहत पोलिंग स्टेशन के अंदर और बाहर फौज की तैनाती की गई है. अब सियासी दल मतगणना के दौरान अपने पोलिंग एजेंट को जबरन खदेड़ने का आरोप लगा रहे हैं यानी जिस चुनावी फिक्सिंग का अंदेशा पहले से लगाया जा रहा था. क्या वो सच्चाई में बदल गया.
क्या आवाम की वोट की ताकत वर्दी से फिर हार गई. क्या पाकिस्तानी सेना एक बार फिर अपने प्यादे को सत्ता में बिठाने पर कामयाब रही. पाकिस्तान की दो बड़ी सियासी पार्टियां के साथ-साथ 6 दूसरी पार्टियों का एक सुर में आवाज बुलंद करना पाकिस्तान की चुनाव प्रक्रिया पर गंभीर सवाल है.
चुनावों में इमरान की जीत के पीछे सेना का भी हाथ बताया जा रहा है. लगातार ऐसा कहा जा रहा है कि पाकिस्तानी सेना की पहली पसंद इमरान खान ही हैं, इसलिए सेना इमरान को जीताने के लिए पूरा जोर लगा रही है. पाकिस्तान सेना नहीं चाहती कि कोई स्थिर नागरिक सरकार सत्ता में आए, क्योंकि इससे प्रशासन पर उसका प्रभाव कम होगा. ऐसे में वह इमरान खान की पार्टी को बढ़ावा दे रही है. इमरान खान की सोच सेना की सोच से काफी मिलती जुलती है.
इमरान खान आतंकी ग्रुपों के साथ बातचीत का रास्ता अपनाने की सोच रखते हैं. साथ ही कट्टरपंथी संस्थाओं और आतंकी संगठन के साथ मलिकर चलने में विश्वास रखते हैं. ऐसे में कई बार विपक्षी उनको तालिबानी खान कहकर भी विरोध करते हैं.
पाकिस्तानी सेना इसलिए भी इमरान पर दांव खेल रही है क्योंकि पूर्व में नवाज शरीफ की पार्टी (पीएमएल-एन) और पाकिस्तान पिपल्स पार्टी दोनों ही भारत के साथ रिश्ते सुधारने पर जोर दे चुके हैं.