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दलित मां-बेटी को छत नसीब नहीं, घर का पता 'कुएं वाला घर'

मामला बांदा जिले की नरैनी तहसील के नसेनी गांव का है, जहां पर 50 वर्षीय विधवा 15 वर्षीय बेटी रोशनी के साथ कुएं के चबूतरे पर रह रही है. घर गृहस्थी का सामान और किताबें कुएं के चबूतरे में रखे हुए हैं, गांववाले बताते हैं कि बारिश के समय पानी से बचने के लिए मां बेटी उनके घरों में आकर शरण लेते हैं और बारिश थमते ही फिर वहीं कुएं पर चले जाते हैं.

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वरुण शैलेश
  • बांदा,
  • 09 अप्रैल 2018,
  • अपडेटेड 4:52 AM IST

देश में भले ही एससी/एसटी एक्ट को कमजोर बनाने को लेकर घमासान मचा हुआ है, लेकिन इस बीच उत्तर प्रदेश के बांदा में बीते 15 वर्षों से एक दलित महिला अपनी  बेटी के साथ कुएं के चबूतरे पर रहने को इसलिए मजबूर है क्योंकि पति की मौत के बाद गांव वालों ने उसे बाहर निकाल दिया था. तब से बेवा ने नसेनी गांव के इस कुएं को ही अपना घर बना लिया. इस महिला को पंद्रह साल से सरकारों से एक छत तक न नसीब हो सकी है.

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मामला बांदा जिले की नरैनी तहसील के नसेनी गांव का है, जहां पर 50 वर्षीय विधवा 15 वर्षीय बेटी रोशनी के साथ कुएं के चबूतरे पर रह रही हैं. घर गृहस्थी का सामान और किताबें कुएं के चबूतरे में रखे हुए हैं, गांववाले बताते हैं कि बारिश के समय पानी से बचने के लिए मां बेटी उनके घरों में आकर शरण लेते हैं और बारिश थमते ही फिर वहीं कुएं पर चले जाते हैं.

'आजतक' के माध्यम से यह मामला डीएम के संज्ञान में आते ही उन्होंने अफसरों को मौका मुआयना के निर्देश दिए हैं. भरोसा दिलाया कि जल्द ही सरकारी आवास आवंटित करेंगे. महिला मूल रूप से ग्राम पांडेपुरवा (अजयगढ़, जिला पन्ना, एमपी) की रहने वाली है, जहां से 15 साल पहले इसे भगा दिया गया था.

आस पड़ोस के लोगों ने बताया कि कुछ साल पहले इन्हें जमीन आवंटित हुई थी, लेकिन इसे भी बदकिस्मती कहेंगे कि जो जमीन का टुकड़ा मिला वह जगह कब्रिस्तान के बिल्कुल पास थी. पीड़ित परिवार को सरकार की ओर से आधार कार्ड मिला हुआ है, लेकिन पता वही है 'कुएं वाला घर'. इसे महिला का दुर्भाग्य ही कहेंगे कि आज तक महिला को सर ढकने को एक छत तक न नसीब हुई.

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बांदा के जिलाधिकारी दिव्य प्रकाश गिरी ने मामले की गंभीरता को समझते हुए मदद का भरोसा दिलाया है. उन्होंने कहा कि मौके पर अफसरों की टीम जाएगी और सरकारी आवास आवंटन के साथ साथ हर संभव मदद दिलाने की कार्रवाई शुरू की जाएगी.

पीड़ित महिला ने बताया कि एक दो दिन में मजदूरी मिलती है, बाकी खाली जाता है, दूसरों के यहां काम करती हूं, झाड़ू पोछा, बर्तन धोकर गुजारा करती हूं. पंद्रह साल पहले पति की मृत्यु हो गई. बच्ची तब छोटी थी. तीन चार साल से अधिकारियों से कालोनी की बात चल रही है, लेकिन नहीं मिली. अपनी बेटी के साथ इसी कुएं में रह रही हूं.

 

वहीं बेटी रोशनी ने बताया कि सबके पास मदद के लिए गए लेकिन घर नहीं मिला तो क्या करें, पिता जी खत्म हो गए. यही गांव के स्कूल में पढ़ते हैं. मां के साथ तहसीलदार के पास गए थे, लेकिन कोई मदद नहीं मिली.

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