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अस्वस्थ युवा: लाइफस्टाइल के मारे ये बेचारे...

आजकल स्ट्रोक को 'यंग स्ट्रोक’ कहते हैं. तनाव और अवसाद आम हो चले हैं. इसके बावजूद युवा भारतीय अपनी लाइफ स्टाइल को लेकर बेफिक्र नजर आते हैं.

अमरनाथ के. मेनन
  • नई दिल्‍ली,
  • 02 दिसंबर 2014,
  • अपडेटेड 3:00 PM IST

यह मोटापे के खिलाफ जंग से भी ज्यादा मुश्किल है. आज किसी भी जंग से ज्यादा कठिन खुद को सेहतमंद रखने की लड़ाई है. आखिर गड़बड़ कहां हो रही है? आज भारतीय युवा अपनी लाइफस्टाइल की वजह से मात खा रहे हैं. जवानी में आम तौर पर बीमारियां दूर रहती हैं लेकिन उम्र बढऩे और कमजोरी होने के साथ वे हावी होने लगती हैं. बीमारियां और कमजोरी 50 साल के आसपास शुरू होती हैं तथा इन्हें गंभीर रूप लेने में 10-20 साल का समय लगता है, लेकिन आजकल 20 और 30 साल के युवाओं में ये बीमारियां दिखने लगी हैं.

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आज युवाओं में तंबाकू, शराब के सेवन और मानसिक सेहत से जुड़ी समस्याएं आम बात हैं. करीब 15 करोड़ युवा तंबाकू का सेवन करते हैं और इनकी संख्या बढ़ती जा रही है, खासकर युवतियों में. करीब 20 फीसदी किशोरों में तनाव और डिप्रेशन की समस्या पैदा हो गई है. युवाओं में मानसिक समस्याओं की जड़ कम उम्र में ही बन जाती है. एक-तिहाई मौतें दिल के रोग से हो रही हैं जिनका संबंध स्ट्रोक से है. आजकल स्ट्रोक को 'यंग स्ट्रोक’ नाम दे दिया गया है, क्योंकि यह 20-40 साल के आयु वर्ग के लोगों को भी तेजी से अपना शिकार बना रहा है. विकसित समाजों से उलट करीब 71 फीसदी भारतीय युवा पूरी तरह निष्क्रिय रहते हैं और 57 फीसदी तो किसी किस्म की कोई कसरत करते ही नहीं हैं. वे उच्च वसा (फैट) वाले फास्ट फूड लेते हैं, मोटे होते हैं, नौकरी के दबाव में उनके व्यक्तित्व में चिड़चिड़ापन और आक्रामकता आ जाती है और कामकाजी जीवन में असंतुलन की वजह से वे जल्द ही हाइ ब्लड प्रेशर और डायबिटीज से ग्रस्त हो जाते हैं.

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इस समस्या को बदतर बनाने का काम पाचन क्रिया की गड़बड़ी कर रही है जो काम के दबाव की वजह से पैदा होती है—जिसमें खाने और पीने की असंतुलित आदतें भरपूर योगदान देती हैं. जल्दी खाने या ढेर सारा प्रोसेस्ड फूड खाने से बैक्टीरिया पैदा होते हैं और बिना पचा खाना परेशानी पैदा करने लगता है, यह जहरीली गैसें पैदा करने का काम करता है जिन्हें एंडोटॉक्सिन कहते हैं जो आंतों को नुकसान पहुंचा सकता है. एंडोटॉक्सिन का अत्यधिक पैदा होना सूजन, जबरदस्त थकान, अपच, डायरिया, मांसपेशियों के दर्द, त्वचा की गड़बड़ी और मानसिक क्षमता में कमी ला सकता है.

शराब न पीने के बावजूद लीवर में सूजन (नॉन एल्कोहलिक फैटी लिवर) एक आम समस्या है. वसा वाली कोशिकाएं ऐसे हॉर्मोन पैदा करती हैं जिनसे सूजन हो जाती है. इस तरह जिन अंगों में लंबे समय तक सूजन रहती है, वे सामान्य तरीके से काम करना बंद कर देते हैं. वसा की मार झेल रही कोशिकाएं उन अंगों में भी फैटी एसिड पैदा करने लगती हैं, जिनसे उनका कोई लेना-देना
नहीं होता, खासकर लिवर में. इससे वसा जमा होता है और इस वजह से लिवर काम करना भी बंद कर सकता है.

इंडियन सोसाइटी ऑफ गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी का अनुमान है कि 20 से 30 फीसदी भारतीय फैटी लिवर के शिकार हैं. इसके मुताबिक दस करोड़ भारतीय गैस्ट्रो इसोफेगल रिफ्लक्स रोग से पीडि़त हैं जिससे सीने में जलन होती है, चार करोड़ को इरिटेबल बोवेल सिंड्रोम (बार-बार पेट में दर्द होना और फूलना) है, 13 करोड़ को कब्ज है और 20 करोड़ को पेट में दर्द है. हेल्थ ऐंड वेलनेस एसोसिएशन ऑफ इंडिया के प्रेसिडेंट एड्रियन केनेडी चेतावनी देते हैं, ''युवा भारतीय अकसर इसकी अनदेखी करते हैं कि हम जैसा खाते हैं वैसे ही बनते हैं.” ओमेगा-3 या ओमेगा-6 जैसे एसेंशियल फैटी एसिड (ईएफए) वाला भोजन लेना महत्वपूर्ण है जो ठंडे पानी की मछली या अलसी या तीसी के बीज में मिलता है. हार्मोन उत्पादन में भूमिका के अलावा ईएफए कार्डियोवैस्कुलर, प्रजनन संबंधी, प्रतिरोधक क्षमता तंत्र और स्नायु तंत्र संबंधी सहयोग मुहैया कराते हैं. इनसे विटामिन और मिनरल का अवशोषण बढ़ता है, बड़ी आंत चिकनी बनी रहती है और पाचन तंत्र दुरुस्त रहता हैं.

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सेहत के प्रति लापरवाही कई तरीकों से सामने आ सकती है. टेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता की वजह से लंबे समय तक कंप्यूटर या फोन के सामने बैठने से कमर के साथ-साथ आंखों पर भी असर पड़ता है. अहमदाबाद के शैल्बी हॉस्पिटल के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर डॉ. विक्रम आइ. शाह कहते हैं, ''अधिकतर युवा फिट शरीर तो चाहते हैं लेकिन खुद को फिट रखने के लिए समय नहीं देना चाहते. अगर आपके पास फोन या कंप्यूटर है तो आप आसानी से जान सकते हैं कि क्या खाना है और क्या नहीं, कौन-सी वर्जिश करनी है, योग से कैसे तनावमुक्त होना है. लेकिन सवाल यह है कि कितने लोग इन सलाहों का सही इस्तेमाल कर पाते हैं?”

सेहत को दुरुस्त करने और उसे सही रखने के लिए एहतियाती कदम उठाने की खातिर चिकित्सीय सलाह पर अमल करना जरूरी है. फिलहाल जो तस्वीर दिखाई दे रही है वह काफी डरावनी है. प्रिवेंटिव (बचाव संबंधी) हेल्थकेयर में काम करने वाली इंडस हेल्थ प्लस पुणे के जेएमडी अमोल नायकवादी कहते हैं, ''2013 के अब तक के प्रिवेंटिव हेल्थकेयर चेकअप से जुड़े आंकड़े बताते हैं कि बीमारियों से ग्रस्त 35 फीसदी लोग युवा हैं और इनमें भी 60 फीसदी जानलेवा बीमारियों से ग्रस्त हैं.”

सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात यह है कि 30 साल से नीचे के 900 भारतीय रोजाना दिल के दौरे से मर रहे हैं. दिल की बीमारियों से होने वाली करीब 40 फीसदी मौत अचानक और अनपेक्षित होती हैं. पुणे स्थित इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. अनिरुद्ध बी. चंदोरकर कहते हैं, ''दिल के दौरे की यह सुनामी समाज के सबसे उत्पादक तबके पर असर डाल रही है और इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का सिर्फ अंदाजा लगाया जा सकता है.” लाइफस्टाइल से उपजे रोगों का सबसे बढिय़ा इलाज यह है कि जितनी जल्दी हो, उन पर नियंत्रण पा लिया जाए.

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विभिन्न बीमारियों से निबटने के लिए अब भी बहुत कुछ जानना बाकी है. भारतीय पुरुषों और स्त्रियों की सेहत के केनेडी के तुलनात्मक अध्ययन में सामने आया है कि हालांकि कोई महिला मामूली रूप से ज्यादा मोटी होती है और कम शारीरिक वर्जिश करती है, लेकिन वह स्वस्थ रहती है. केनेडी कहते हैं, ''चूंकि पुरुष ज्यादा शराब पीते हैं और धूम्रपान करते हैं, और उनके पास तनाव भगाने के कम साधन होते हैं, लिहाजा उनके दो जानलेवा बीमारियों की दिशा में बढऩे की ज्यादा संभावनाएं रहती हैं—हार्ट अटैक और कैंसर!” केनेडी के मुताबिक युवा महिलाओं और किशोरियों के मामले में पुरुषों से यह अंतर अब घट रहा है. सेहतमंद रहने के कुछ आसान उपाय हैं: हफ्ते में छह दिन रोजाना 40 मिनट पैदल चलें या एरोबिक से जुड़ी कसरत करें. स्वस्थ खुराक लें. ब्लड प्रेशर की नियमित तौर पर जांच करें और नियंत्रित करें. कोलेस्ट्रॉल के स्तर पर निगरानी रखें और धूम्रपान छोड़ दें.

बंगलुरू स्थित 2एंपावर हेल्थ मैनेजमेंट सर्विसेज कर्मचारियों की शारीरिक गतिविधियों पर निगरानी रखती है ताकि लाइफस्टाइल से उपजे रोगों से उन्हें बचाया जा सके. गेटऐक्टिव नाम के इसके प्रोग्राम में एक पेडोमीटर होता है जो शारीरिक गतिविधि को मापता है और एक पर्सनल डैशबोर्ड होता है जिस पर आंकड़े आते हैं. इन्होंने 15 कंपनियों के 2,500 कर्मचारियों का सर्वे किया और पाया कि किसी कॉर्पोरेट कर्मचारी के औसत कदमों की संख्या 1,200 होती है जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिशों के मुताबिक यह 10,000 होनी चाहिए. 2एंपावर के संस्थापक एम.एच. नदीम कहते हैं, ''असंचारी (नॉन-कम्युनिकेबल) और लाइफस्टाइल से जुड़े रोगों को दूर रखने का यह पहला कदम है.” वे खुद रोजाना 14,000 कदम चलते हैं. शुरुआत करनी है, तो अपने कदम गिनना चालू कर दीजिए!

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