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छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के आत्मसमर्पण की लगी झड़ी

रमन सरकार की तीसरी पारी में नक्सलियों के आत्मसमर्पण की जैसे झड़ी-सी लग गई है. नक्सली असलहों से तौबा कर रहे हैं.

aajtak.in
  • रायपुर,
  • 03 सितंबर 2014,
  • अपडेटेड 2:54 PM IST

बस्तर में एक बार फिर माओवादियों के बीच खिलाफत की चिनगारी सुलग रही है. हालात 2005 में शुरू हुए सलवा जुडूम की मानिंद बनने लगे हैं. फर्क महज इतना है कि तब बगावत पर आम आदिवासी उतरे थे, और इस बार उनके साथी ही उनसे उकता कर हथियारों से तौबा कर रहे हैं. यही वजह है कि माओवादियों के गढ़ बस्तर में बीते तीन माह में 12 महिलाओं समेत 93 माओवादियों ने पुलिस के सामने हथियार डाल दिए हैं. इनमें मिलिट्री कंपनी के कमांडर से लेकर जन मिलिशिया और चेतना नाट्ïय मंडली के सदस्य भी शामिल हैं जबकि इसी अवधि में 2012 और 2013 में समूचे छत्तीसगढ़ से सिर्फ 6-6 नक्सलियों ने ही आत्मसमर्पण किया था.

नक्सलियों के आत्मसमर्पण के सिलसिले की शुरुआत जून माह में एस.आर.पी. कल्लूरी के बस्तर रेंज का आइजी बनने के साथ हुई. माओवादियों को उन्हीं के तरीकों से जवाब देने के लिए ख्यात कल्लूरी दंतेवाड़ा में बतौर एसपी अपने कार्यकाल के दौरान खासे चर्चित रहे हैं. उनका दावा है कि आने वाले दिनों में और भी माओवादी समर्पण कर सकते हैं.

माओवादियों पर दबाव बनाने के लिए रमन सरकार अपनी तीसरी पारी में मजबूत रणनीति के तहत काम कर रही है. कल्लूरी को आइजी बनाने के अलावा सरकार ने अनुभवी और तेज-तर्रार अधिकारियों को नक्सल प्रभावित इलाकों की कमान सौंपी है. बी. श्रवण को सुकमा जिले का एसपी बनाया गया है तो कमलोचन कश्यप को दंतेवाड़ा और के.एस.धु्रव को बीजापुर का एसपी नियुक्ïत किया गया है. कश्यप और धु्रव आइपीएस अधिकारी नहीं हैं इसके बावजूद नक्सल इलाके के उनके तजुर्बों को देखते उन्हें यह जिम्मेदारी दी गई है. इनके अलावा, जगदलपुर के एसपी अजय यादव, कोंडागांव के एसपी अभिषेक मीणा, नारायणपुर के एसपी अमित कामले, कांकेर के एसपी राजेंद्र दास और राजनांदगांव के एसपी संजीव शुक्ल को भी नक्सली इलाकों में काम करने का काफी अनुभव और गुरिल्ला युद्ध की गहरी समझ है.

समर्पण के बाद मिलने वाली इनाम की भारी रकम के लालच से भी माओवादी आत्मसमर्पण को प्रेरित हो रहे हैं. गृह विभाग ने 2008 के आदेश में संशोधन कर इनाम की राशि को पांच गुना तक बढ़ा दिया है. अब अन्य देशी हथियारों के साथ आत्मसमर्पण करने पर अतिरिक्त इनाम का प्रावधान भी कर दिया गया है. अतिरिक्त मुख्य गृह सचिव एन.के. असवाल इसका श्रेय आत्मसमर्पित माओवादियों के लिए पुनर्वास की नई नीति को देते हुएकहते हैं, ''उन्हें यकीन दिलाया जा रहा है कि समर्पण के बाद उनके साथ किसी तरह का अन्याय नहीं होगा. '' इधर, समर्पण को लेकर राजनीति तेज हो गई है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल का आरोप है कि सरकार फर्जी सरेंडर करवा रही है. हालांकि छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक ए.एन. उपाध्याय मानते हैं कि यह पुलिस की कोशिशों और दबाव का नतीजा है.

माओवादियों में आपसी फूट भी समर्पण की प्रमुख वजह है. दरअसल छत्तीसगढ़ में आंध्रप्रदेश के माओवादी उच्च पदों पर काबिज हैं, वे स्थानीय माओवादियों के साथ भेदभाव करते हैं. इधर, पुलिस का दबाव भी अपना काम कर रहा है. अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक आर.के. विज कहते हैं, ''स्थानीय आदिवासियों का माओवादी आदर्शवाद से मोह भंग हो रहा है. '' हकीकत यह है कि माओवादियों के लिए हालात दिन-ब-दिन मुश्किल हो रहे हैं. उन्हें दुर्गम पहाडिय़ों, नदी-नालों और बियाबान जंगलों की खाक छाननी पड़ती है. पुलिस के दबाव की वजह से वे अपने लिब्रेटेड जोन के अलावा अन्य जगहों पर दो घंटे से ज्यादा नहीं ठहरते. नई जगहों पर तो आधा घंटा भी नहीं ठहर पाते क्योंकि अंदरूनी इलाकों में लगातार थाने-चौकियां खुल रही हैं.

अभियान की सफलता से खुश पुलिस माओवादियों पर दबाव और बढ़ाने की तैयारी में है. कल्लूरी बताते हैं, ''बारिश के चलते अभी एक तिहाई बल ही जंगलों में है. बारिश के बाद थाना-चौकियों की सुरक्षा में केवल एक तिहाई बल तैनात होगा, बाकी दो तिहाई बल को जंगलों में उतारा जाएगा. बस्तर में पुलिस के अलावा अर्धसैनिक बलों की 24 बटालियन तैनात हैं, 20 बटालियन और बुलवाई जा रही है. नागालैंड सशस्त्र पुलिस की 4 बटालियन भी आने वाली हैं जिसे माओवादियों के लिब्रेटेड जोन में तैनात किया जाएगा. अतिरिक्त बटालियनों के पहुंचते ही यहां तैनात अर्ध सैनिक बलों की तादाद करीब 44,000 हो जाएगी. कुल मिलाकर बारिश के बाद बस्तर में बड़े अभियान की तैयारी है. '' 

आत्मसमर्पण के इस सिलसिले से जहां माओवादियों का नेटवर्क बुरी तरह से प्रभावित है, वहीं पुलिस को उनकी गतिविधियों के अहम सुराग हासिल हो रहे हैं. 25 अगस्त को समर्पण करने वाले मिलिट्री प्लाटून के.चैतराम सलाम और उसकी पत्नी मंजुला ने बताया कि 25 मई, 2013 को झीरम घाटी में हुए नक्सली हमले की योजना बीजापुर में सेंट्रल कमेटी के सदस्य देवजी ने दो माह पहले ही तैयार कर ली थी.

दंपती से मिली जानकारी के आधार पर पुलिस ने कांग्रेसी नेता महेंद्र कर्मा को गोली मारने वाले नक्सली सुखदेव नाग और उसके साथी मांझीराम को गिरफ्तार कर लिया. हथियार डालने वाले सभी माओवादी स्थानीय हैं, जो मुठभेड़ के वक्त आंध्र प्रदेश के नेताओं के सुरक्षा घेरे का काम करते थे.

आत्मसमर्पण के इस दौर से तो यही लगता है कि अब स्थानीय माओवादियों में विचार मंथन चल रहा है. वे अपनी तकदीर बदलने को बेचैन हैं. लेकिन इतिहास गवाह है, जब भी अंदरूनी फूट का संकेत मिलता है, माओवादी बौखलाहट में किसी बड़ी वारदात को अंजाम देने की तैयारी करने लगते हैं. शायद इसी आशंका से बस्तर का अंदरूनी इलाका सहमा है और यहां पसरी खामोशी आने वाले तूफान का संकेत दे रही है.

(आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली संपत और आसमती)
एक-दूजे के लिए
माओवादियों को प्रेम और संतान पैदा करने की इजाजत नहीं होती,   प्रेम पर पहरे ने ही संपत और आसमती को सरेंडर करने पर मजबूर किया. जानिए उनकी कहानी.
10 लाख रु. के इनामी नक्सली 38 वर्षीय संपत और 8 लाख रु. की इनामी नक्सली 20 वर्षीया आसमती की कहानी बड़ी दिलचस्प है. इन दोनों ने 18 अगस्त को कोंडागांव में आत्मसमर्पण किया है. पूर्वी बस्तर डिविजनल कमेटी के अधीन मिलिट्री कंपनी का कमांडर संपत उर्फ सट्टे राजनांदगांव के मदनवाड़ा में कुछ साल पहले हुए माओवादी हमले में शामिल था जिसमें पुलिस अधीक्षक विनोद कुमार चौबे समेत दो दर्जन जवान मारे गए थे. ढेरों हिंसक वारदातों में शामिल रहे संपत की मुलाकात कंपनी के लड़ाकों का इलाज करने वाली आसमती से हुई तो उसका जीवन ही बदल गया. इनका प्रेम परवान चढ़ ही रहा था कि इसकी भनक कमेटी के सचिव राजू उर्फ  रामचंद्र रेड्डी को लग गई. दोनों प्रेमियों को जबरन अलग कर दिया गया. प्रेमी जोड़े को यह नागवार गुजरा. दोनों घर बसाना चाहते थे. आखिरकार उन्होंने हथियारों से नाता तोड़ लिया. आसमती बताती है कि विवाह हो जाता तो भी परेशानी बनी रहती क्योंकि माओवादी विवाह के बाद जबरन नसबंदी करा देते हैं. आखिरकार प्रेम की जीत हुई.


बस्तर को नक्सल मुक्त कर देंगे: आइजी
बस्तर के आइजी एस.आर.पी. कल्लूरी ने बतौर एसपी सरगुजा से नक्सलियों का सफाया कर दिया था. संजय दीक्षित से उनकी बातचीत के कुछ अंश:
-नक्सलियों के सरेंडर को किस रूप में देखते हैं?
बस्तर में आंध्र के नक्सलियों का दबदबा है. वे स्थानीय नक्सलियों का शोषण करते हैं. अब स्थानीय लोगों को उनकी असलियत समझ में आ गई है.
- जंगलों में ऑपरेशन का तेज होना भी लगातार हो रहे सरेंडर की वजह?
पुलिस कई मोर्चों पर एक साथ काम कर रही है. नक्सलियों के परिवारों को समझाया जा रहा है कि वे हिंसा का रास्ता छोड़ कर मुख्य धारा में शरीक हो जाएं. जंगलों में चल रही सर्चिंग से भी नक्सलियों में डर है.
- क्या बस्तर से नक्सलियों का खात्मा हो सकता है?
निश्चित तौर पर. सरगुजा की तरह बस्तर से भी माओवादियों का सफाया कर देंगे

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