
भारत अपनी आजादी के 71 साल पूरे कर रहा है. हर कोई अपने-अपने तरीके से आजादी के जश्न में डूबा हुआ है. आजादी से पहले और आजादी के बाद भी देश में कई ऐसे लोग आए जो अपनी कलम के जरिए अपने जज्बातों को दुनिया के सामने रखते थे. कुछ ही ऐसी पंक्तियां इतिहास में दर्ज हो गईं. इस मौके पर हम आपको उर्दू शायरी के कुछ ऐसे शेर पढ़ा रहे हैं, जिनसे आजादी का जश्न और भी शानदार हो सकता है.
हम भी तिरे बेटे हैं ज़रा देख हमें भी,
ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से शिकायत नहीं करते
- खुर्शीद अकबर
हम ख़ून की किस्तें तो कई दे चुके हैं लेकिन
ऐ ख़ाक-ए-वतन क़र्ज अदा क्यों नहीं होता
- वाली आसी
खुदा ऐ काश 'नाज़िश' जीते-जी वो वक्त भी आए
कि जब हिंदुस्तान कहलाएगा हिंदोस्तान-ए-आज़ादी
- नाज़िश प्रतापगढ़ी
लहू वतन के शहीदों का रंग लाया है,
उछल रहा है ज़माने में नाम-ए-आज़ादी
- फिराक़ गोरखपुरी
सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा
हम बुलबुले हैं इसके ये गुलसितां हमारा
- अलामा इकबाल
मुसलमां और हिंदू की जान
कहां है मेरा हिंदोस्तान
मैं उस को ढूंढ रहा हूं
मिरे बचपन का हिंदोस्तां
न बंग्लादेश न पाकिस्तान
मिरी आशा मिरा अरमान
वो पूरा-पूरा हिंदोस्तान
मैं उस को ढूंढ रहा हूं
- अजमल सुल्तानपुरी