
पूरी दुनिया न दिखाई देने वाले एक दुश्मन से जंग लड़ रही है. पॉलिसीमेकर्स और रिसर्चर्स दिन रात कोरोना वायरस के फैलाव और असर का अनुमान लगाने के लिए समाधानों की तलाश कर रहे है. अभी तक नोवेल कोरोना वायरस उनके प्रयासों से कहीं तेज़ साबित हुआ है जिसकी वजह से उस पर नियंत्रण रख पाना मुश्किल हो रहा है. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से जुड़े भारतीय मूल के दो स्कॉलर्स ने एक नया मैथमेटिकल मॉडल तैयार किया है. इस मॉडल का अनुमान है कि भारत में 21 दिन के मौजूदा लॉकडाउन से वायरस पर नियंत्रण पाना मुमकिन नहीं लगता.
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर मैथमेटिकल साइंस से जुड़े राजेश सिंह और आर अधिकारी की ओर से तैयार मॉडल ने भारत के सामाजिक संपर्क के अनोखे आयाम को इंगित किया है. इसी का हवाला देकर उनकी दलील है कि भारत के सामाजिक ढांचे की वजह से वायरस यहां चीन और इटली की तुलना में अलग बर्ताव कर सकता है. मॉडल में केस की संख्या, आयुवर्ग के हिसाब से बंटवारा, सामाजिक संपर्क ढांचे के हिसाब से भारत, चीन और इटली की तुलना की गई है. इसमें Prem et.al. नाम के एक दूसरे चर्चित संकलन का भी इस्तेमाल किया गया है जो कॉन्टेक्ट सर्वे और जनसांख्यिकीय आंकड़ों (डेमोग्रेफिक डेटा) के जरिए 152 देशों के सामाजिक संपर्क सांचे को प्रोजेक्ट करता है.
मॉडल ने संक्रमण के तीन पीढ़ियों में फैलने की वजह के लिए ठेठ भारतीय घरों के स्वरूप की पहचान की है. भारत की तुलना में चीन में इस तरह के संपर्क की संख्या कम है, वहीं इटली में ये नगण्य है.
जर्मनी में Covid19 के खिलाफ रणनीति बनाने में सामाजिक संपर्क ढांचे का इस्तेमाल मुख्य आधार रहा है. यूरोप में कोरोना वायरस संकट में जर्मनी की मृत्यु दर सबसे कम रही है. साधारण भाषा में कहें तो जर्मनी ने ये सुनिश्चित किया कि वहां दादा-दादी या नाना-नानी, जिनमें संक्रमण की संभावना सबसे अधिक है, वो युवा पीढ़ी से दूर रहें. क्योंकि युवा पीढ़ी के जरिए दूसरों में संक्रमण तेजी से फैल सकता है.
घर, दफ्तर और समाज में अन्यत्र विभिन्न नियंत्रण उपायों की गणना से ये निष्कर्ष निकले हैं.
मैथमेटिकल मॉडल ने लॉकडाउन की दो किस्मों की अवधि और अंतराल की गणना की है जो असल में संक्रमण के स्तर को 50 से कम लोगों तक ला सकता है. मॉडल ने दो परिदृश्यों का पूर्वानुमान व्यक्त किया है.
(Source: Rajesh Singh, R. Adhikari, Cambridge University)
गणित के मुताबिक तीन लगातार लॉकडाउन, (पहला 21 दिन का, दूसरा 28 दिन का और तीसरा 18 दिन का) कारगर हो सकते हैं.
मॉडल की सीमाएं
अगर मैथमेटिकल मॉडल्स पर नजर डालें तो इसकी सीमाओं को समझना भी अहम है. प्रस्तावित मॉडल की कुछ सीमाओं की ओर भी पेपर में इंगित किया गया है. जैसे कि, “ये संभव है कि अलग तरह के नियंत्रण, जिनमें विभिन्न समयों में, विभिन्न अवधि में अलग सोशल डिस्टेंसिंग उपायों का इसतेमाल किया गया, इसलिए इन्हें हर जगह के लिए फिट सेटिंग के तथ्य की तरह नहीं लिया जा सकता.”
पेपर में एप्लाईड मैथमेटिक्स की एडवांस्ड ‘ऑप्टिमल कंट्रोल थेरेपी’ का इस्तेमाल नहीं किया गया जो एक्शन की अवधि में विभिन्न नियंत्रण उपायो के नतीजे का अनुमान लगा सकती थी. दिलचस्प है कि पेपर के साथ एक केवियट (चेतावनी) भी मशहूर ब्रिटिश स्टेटिसटिशियन जार्ज ई पी बॉक्स का भी हवाला दिया गया है जिन्होंने कभी कहा था- ‘सारे मॉडल गलत होते हैं परन्तु कुछ उपयोगी होते हैं.’
मॉडल का संभावित इस्तेमाल
भारत सरकार ने अब तक लॉकडाउन को आगे बढ़ाए जाने की रिपोर्ट्स को खारिज किया है. हालांकि इस प्रक्रिया के जानकार कुछ अधिकारियों ने इंडिया टुडे को बताया, ऐसे क्षेत्र जहां Covid19 मरीजों की खासी संख्या होगी उन्हें लॉकडाउन के बाद हॉट जोन्स की तरह चिह्नित किया जा सकता है. ऐसे क्षेत्रों के लिए अलग तरह के उपाय काम में लाए जा सकते हैं. इस तरह के वैज्ञानिक मॉडल हॉट जोन जैसी स्थिति को काबू रखने में कारगर सकते हैं. हालांकि ऐसे मामलों में लॉकडाउन की अवधि कितनी रहनी चाहिए ये स्थानीय डेटा के हिसाब से अलग अलग हो सकती है.