Advertisement

क्या चीन भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता निभाने को उत्सुक है?

8 जून को इंडिया टुडे से बातचीत में भारत और पाकिस्तान में चीन के राजदूत रह चुके झाओ गैंग ने कहा कि यह सम्मेलन भारत और पाकिस्तान से रिश्तों में चीन की भूमिका को बढ़ा सकता है.

जुदा अंदाजः  चीनी राजदूत लुओ झाओहुई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान जुदा अंदाजः चीनी राजदूत लुओ झाओहुई दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान
अनंत कृष्णन/संध्या द्विवेदी/मंजीत ठाकुर
  • नई दिल्ली,
  • 27 जून 2018,
  • अपडेटेड 1:26 PM IST

चीन क्या अब भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाना चाहता है? वर्षों से चीन ने भारत से संबंधों की अस्थिरता और कश्मीर के प्रति नई दिल्ली की संवेदनशीलता को देखते हुए उन मुद्दों पर खासी सावधानी बरती है जिनके कारण भारत को पाकिस्तान से शिकायत है.

इसके बावजूद कि अपने मेगा प्रोजेक्ट चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर (सीपीईसी) के अंतर्गत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में चीन मोटा निवेश कर रहा है, आधिकारिक रूप से उसने कश्मीर मामले में 'हस्तक्षेप नहीं करने' का रुख अपना रखा है.

Advertisement

18 जून को नई दिल्ली में चीन के राजदूत लुओ झाओहुई ने यह सुझाव देकर चर्चाओं का बाजार गर्म कर दिया कि भारत-चीन-पाकिस्तान को त्रिपक्षीय बातचीत की रूपरेखा बनानी चाहिए. झाओहुई एक मंझे हुए राजनयिक हैं और उन्हें भारतीय मामलों का विशेषज्ञ माना जाता है और वे पाकिस्तान में भी चीन के राजदूत रह चुके हैं.

उन्होंने दिल्ली में एक भाषण के बाद संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ''मेरे कुछ भारतीय दोस्तों ने सुझाव दिया कि शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के प्रावधानों के अंतर्गत चीन, भारत और पाकिस्तान को त्रिपक्षीय सहयोग की दिशा में बढ़ना चाहिए.''

उन्होंने कहा, ''चिंगदाओ में एससीओ सम्मेलन के दौरान चीन, रूस और मंगोलिया के बीच अलग से एक त्रिपक्षीय बैठक हुई थी. तो चीन, पाकिस्तान और भारत इस तरह की बैठक क्यों नहीं कर सकते?'' लुओ की टिप्पणी के बाद स्वाभाविक रूप से खलबली मच गई.

Advertisement

विदेश मंत्रालय को आनन-फानन में बयान जारी कर कहना पड़ा, ''चीन सरकार की ओर से ऐसा सुझाव नहीं आया है. हमें लगता है कि चीनी राजदूत का निजी तौर पर ऐसा मानना होगा. भारत और पाकिस्तान के बीच के मामले विशुद्ध रूप से द्विपक्षीय हैं और इसमें तीसरे पक्ष के शामिल होने की कोई संभावना नहीं.''

यह पहली बार नहीं है जब लुओ ने सार्वजनिक तौर पर गैर-परंपरागत बयान दिए हों. मई 2017 में एक भाषण के दौरान उन्होंने पाक कब्जे वाले कश्मीर की संप्रभुता को लेकर भारतीय चिंताओं को दूर करने के लिए सीपीईसी का नाम बदलने का प्रस्ताव दिया था.

बीजिंग में अधिकारियों ने तुरंत सफाई दी कि चीन उनके बयान का समर्थन नहीं करता. भारतीय अफसरों को लगता है कि 'त्रिपक्षीय बातचीत' की उनकी टिप्पणी भी वैसी ही होगी. एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ''अगर चीन गंभीर होता तो पहली बार इसका जिक्र दिल्ली में उनके राजदूत ने इतने अनौपचारिक तरीके से नहीं करते.''

संभव है कि लुओ ने समय से पहले इस तरह की बात कर दी हो, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है-चिंगदाओ में 10 जून को एससीओ सम्मेलन की मेजबानी करने के बाद शी जिनपिंग इस मंच को भारत और पाकिस्तान में तनाव घटाने का एक जरिया बनाना चाहते हैं.

Advertisement

8 जून को इंडिया टुडे से बातचीत में भारत और पाकिस्तान में चीन के राजदूत रह चुके झाओ गैंग ने कहा कि यह सम्मेलन भारत और पाकिस्तान से रिश्तों में चीन की भूमिका को बढ़ा सकता है.

भारत ने स्पष्ट कर रखा है कि द्विपक्षीय बातचीत और आतंकवाद साथ-साथ नहीं चल सकते. बीजिंग के चारहार इंस्टीट्यूट में सीनियर रिसर्च फेलो लांग शिंगचुन ने कहा कि पाकिस्तान से हो रहे आतंकवाद पर भारत की चिंताओं के निराकरण में एससीओ मददगार हो सकता है.

उन्हें लगता है कि आतंकवाद के मामले में पाकिस्तान ''कुछ समझौता कर सकता है. लेकिन एक सदस्य देश को दूसरे सदस्य देश के खिलाफ आतंकवाद को हथियार के तौर पर इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.''

***

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement