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1 साल में 5 लाख करोड़ मजबूत हुई GDP, क्‍या पूरा होगा सरकार का सपना?

रिजर्व बैंक ने जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को कम कर दिया है. आरबीआई ने यह कदम ऐसे समय में उठाया है जब सरकार 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी पर जोर दे रही है.

आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ अनुमान को घटाया है आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ अनुमान को घटाया है
दीपक कुमार
  • नई दिल्‍ली,
  • 05 अक्टूबर 2019,
  • अपडेटेड 4:14 PM IST

  • आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ के अनुमानित आंकड़े में 0.8 फीसदी की कटौती कर दी है
  • सरकार साल 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी के लक्ष्‍य पर जोर दे रही है

भारतीय रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष की भारत की आर्थिक वृद्धि दर यानी जीडीपी के अनुमान को कम कर दिया है. आरबीआई की नई समीक्षा के मुताबिक चालू वित्त वर्ष 2019-20 के लिए जीडीपी का अनुमान घटाकर 6.1 फीसदी रह जाएगा. इससे पहले आरबीआई ने 6.9 फीसदी की दर से जीडीपी ग्रोथ का अनुमान जताया था. यानी कुछ महीनों में ही आरबीआई ने जीडीपी ग्रोथ के अनुमानित आंकड़े में 0.8 फीसदी की कटौती कर दी है. अगर आरबीआई का यह अनुमान हकीकत बन जाता है तो केंद्र की मोदी सरकार के लिए किसी झटके से कम नहीं है.

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दरअसल, सरकार साल 2025 तक 5 ट्रिलियन डॉलर ( करीब 350 लाख करोड़ रुपये) इकोनॉमी के लक्ष्‍य पर जोर दे रही है. इस लक्ष्‍य को हासिल करने के लिए सरकार को फीसदी के हिसाब से जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार भी तेज करने के लिए काम करना होगा. इसके अलावा इस लक्ष्‍य को हासिल करने में रुपये की मजबूती भी अहम भूमिका निभाएगी. रुपया जितना मजबूत होगा रकम के हिसाब से देश की जीडीपी भी बढ़ेगी. 

इसे उदाहरण से समझते हैं

हम वित्त वर्ष साल 2017 और 2018 में रकम के हिसाब से जीडीपी की तुलना करते हैं. वित्त वर्ष साल 2017 में भारत की सालाना जीडीपी ग्रोथ 6.7 फीसदी आंकी गई थी. इस आधार पर देश की जीडीपी 2,652,250 मिलियन डॉलर (188 लाख करोड़ के करीब) की हो जाती है. दुनियाभर की अर्थव्‍यवस्‍था पर नजर रखने वाली कंट्री इकोनॉमी की वेबसाइट के मुताबिक वित्त वर्ष 2018 में भारत की जीडीपी 2,716,750 मिलियन डॉलर (193 लाख करोड़ के करीब) होने का अनुमान है. यानी एक वित्त वर्ष में देश की जीडीपी में महज ‭5 लाख करोड़ के करीब की बढ़ोतरी हुई है. 

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मोदी सरकार में जीडीपी का हाल

वहीं आरबीआई के अनुमानित आंकड़ों के आधार पर बात करें तो वित्त वर्ष 2019 में जीडीपी का 6.1 फीसदी रह जाएगा. अगर ऐसा होता है तो जाहिर सी बात है कि रकम के हिसाब से भी जीडीपी कम हो जाएगा. यहां बता दें कि डॉलर और रुपये की विनिमय दर पर अनियंत्रण होने की वजह से नुकसान और बढ़ सकता है. अगर आने वाले समय में रुपये का मूल्य घटता है तो डॉलर के संदर्भ में यह भारत की अर्थव्यवस्था पर बुरा असर डालेगा, लेकिन अगर डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होता है तो इसका फायदा मिलेगा.

क्‍या है जीडीपी का आंकड़ा?

सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी किसी भी देश की आर्थिक सेहत को मापने का सबसे अहम पैमाना होता है. इस आंकड़े से यह स्‍पष्‍ट होता है कि देश की आर्थिक स्थिति क्‍या है और आने वाले दिनों में अर्थव्‍यवस्‍था की क्‍या दिशा होगी. भारत में जीडीपी की गणना हर तीसरे महीने यानी तिमाही के आधार पर होती है.

अलग-अलग मंत्रालय के गणना के बाद सरकारी संस्‍था केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) की ओर से आंकड़े जुटाए जाते हैं. ये आंकड़े मुख्य तौर पर आठ औद्योगिक क्षेत्रों- कृषि, खनन, मैन्युफैक्चरिंग, बिजली, कंस्ट्रक्शन, व्यापार, रक्षा और अन्य सेवाओं के क्षेत्र के होते हैं. इसके बाद सीएसओ जो आंकड़े जारी करता है उसे ही आधिकारिक माना जाता है.

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आरबीआई का जीडीपी अनुमान क्‍या है?

अर्थव्‍यवस्‍था की सेहत को देखते हुए केंद्रीय बैंक आरबीआई मॉनिटरिंग पॉलिस कमिटी की बैठक में जीडीपी की समीक्षा करता है. यह बैठक हर दो महीने पर होती है. तीन दिन तक चलने वाली इस समीक्षा बैठक के बाद आरबीआई जीडीपी के अनुमानित आंकड़े पेश करता है.

अगर आरबीआई के जीडीपी पर अनुमानित आंकड़े कम होते हैं तो यह केंद्र की सरकार के लिए एक अलर्ट होता है. मतलब यह कि जो सरकार सत्‍ता में होती है उस पर आर्थिक मोर्चे पर कुछ बड़े फैसले लेने का दबाव बढ़ता है. लगातार जीडीपी का आंकड़ा कम होने से ये संकेत मिलते हैं कि अर्थव्यवस्था काफी कमजोर प्रदर्शन कर रही है.  इससे पता चलता है कि लोगों के पास खर्च करने के लायक भी पैसा नहीं है.    

 दुनिया भर की रेटिंग एजेंसियां भी अलग-अलग पैमाने पर जीडीपी की गणना करती हैं. इस गणना के आधार पर रेटिंग एजेंसियां दुनिया भर के देशों की जीडीपी के अनुमानित आंकड़ों को घटाती या बढ़ाती हैं. आमतौर पर ये एजेंसियां अर्थव्‍यवस्‍था की वर्तमान सेहत के आधार पर अगले 3 वित्‍तीय वर्ष तक के जीडीपी ग्रोथ के अनुमान को पेश करती हैं.

जीडीपी का आम लोगों से क्‍या है कनेक्‍शन?

जीडीपी के आंकड़ों का आम लोगों पर भी असर पड़ता है. अगर जीडीपी के आंकड़े लगातार सुस्‍त होते हैं तो ये देश के लिए खतरे की घंटी होती है. जीडीपी कम होने की वजह से लोगों की औसत आय कम हो जाती है और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं. इसके अलावा नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार भी सुस्‍त पड़ जाती है. आर्थिक सुस्‍ती की वजह से छंटनी की आशंका बढ़ जाती है. वहीं लोगों का बचत और निवेश भी कम हो जाता है.

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