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इंडिया@70: अगर ये क्रांतिकारी कामयाब होता, तो नहीं होती भगत सिंह को फांसी

स्वतंत्रता संग्राम में कुछ ऐसे क्रांतिकारी भी शामिल थे, जो चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, सरदार भगत सिंह, राजगुरु और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे बड़े क्रांतिकारियों को अपनी प्रेरणा मानते थे. गुजरात की धरती से आने वाले ऐसे ही एक क्रांतिकारी का नाम था भगवती चरण बोहरा. जिन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में भगत सिंह और सुखदेव से सहयोग लेकर रूसी सोशलिस्ट रिवोल्यूशन की तर्ज पर अपना एक समूह बनाया था. भगवती का एक ही मकसद था कि देश को आजाद कराने के लिए कैसे काम किया जाए.

क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा क्रांतिकारी भगवती चरण बोहरा
परवेज़ सागर
  • नई दिल्ली,
  • 09 अगस्त 2017,
  • अपडेटेड 2:48 PM IST

स्वतंत्रता संग्राम में कुछ ऐसे क्रांतिकारी भी शामिल थे, जो चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, सरदार भगत सिंह, राजगुरु और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे बड़े क्रांतिकारियों को अपनी प्रेरणा मानते थे. गुजरात की धरती से आने वाले ऐसे ही एक क्रांतिकारी का नाम था भगवती चरण बोहरा. जिन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज में भगत सिंह और सुखदेव से सहयोग लेकर रूसी सोशलिस्ट रिवोल्यूशन की तर्ज पर अपना एक समूह बनाया था. भगवती का एक ही मकसद था कि देश को आजाद कराने के लिए कैसे काम किया जाए.

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वर्ष 1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना की गई. तब भगवती ने ही उसका मेनीफेस्टो भी तैयार किया.1928 में काकोरी कांड के बाद दिल्ली में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का फिर से गठन हुआ. उसके प्रचार का जिम्मा भगवती चरण को ही सौंपा गया. मेनीफेस्टो बनाने में भगवती ने चंद्रशेखर आजाद की मदद की. और कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में उसे जमकर बांटा.

जब लाहौर की बम फैक्ट्री पकड़ी गई तो एचएसआरए दो हिस्सों में बट गई. जब एक समूह की जिम्मेदारी आजाद, यशपाल, कैलाशपति और भगवती के जिम्मे थी. भगवती को इस दौरान एक महारत हासिल हो गई थी, और वो थी बम बनाना.

1929 में भगवती ने एक दूसरी बम फैक्ट्री बनाने की योजना बनाई और लाहौर में ही कश्मीर बिल्डिंग में एक कमरा किराए पर ले लिया. जहां उन्होंने एक बम फैक्ट्री शुरू कर दी. दरअसल, भगवती ब्रिटिश वायसराय लॉर्ड इरविन पर हमला करना चाहते थे.

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23 दिसंबर 1929 के दिन लॉर्ड इरविन दिल्ली से आगरा जा रहा था. वह ट्रेन में सवार था. तभी भगवती ने उस पर हमला किया और ट्रेन पर बम फेंका गया. लेकिन बम गलत बोगी पर फेंका गया और इरविन बच गया. वो बम इतना शक्तिशाली था कि ट्रेन की दो बोगियां तबाह हो गई थीं.

इस घटना के बाद भगवती चरण बोहरा ने ‘फिलॉसफी ऑफ बम’ नाम से एक लेख लिखा. जिसमें उनकी मदद जेल में बंद भगत सिंह ने की. दरअसल, क्रांतिकारी गांधी जी के अहिंसात्मक तरीकों से सहमत नहीं थे. यही वजह थी कि भगवती ने गांधीजी को ‘फिलॉसफी ऑफ बम’ के जरिए अपना संदेश देने की कोशिश की थी. इस लेख के पर्चे छपवाए गए और उन्हें साबरमती आश्रम के बाहर चिपका दिया गया.

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु जेल में बंद थे. अंग्रेज उन्हें सजा-ए-मौत देने वाले थे. इसी दौरान भगवती चरण बोहरा ने जेल तोड़कर भगत सिंह को छुड़ाने का प्लान बनाया. इसके लिए उन्होंने एक बम बनाया. जिसे जांचने के लिए प्रयोग किया जाना था. लेकिन उसी दौरान अचानक वो बम फट गया और भगवती चरण बोहरा गंभीर रूप से घायल हो गए. बाद में उनकी मौत हो गई.

मरने से पहले भगवती ने कहा था कि अगर उनकी मौत दो दिन के लिए टल जाती तो उन्हें बड़ी कामयाबी मिल जाती, और उनकी आखरी ख्वाहिश अधूरी ना रहती. उनके पीछे पत्नी दुर्गा और बेटा सचिन्द्र रह गए थे. उनकी पत्नी का देहांत वर्ष 1999 में गाजियाबाद में हुआ था.

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