
हिंदुस्तान की आजादी की चाह रखने वाले क्रांतिकारियों और देशभक्तों के लिए 1947 का साल ऐतिहासिक रहा क्योंकि उनकी बरसों से चली आ रही आजादी की मांग को मान लिया गया, लेकिन इसी साल एक ऐसा दिन भी आया जिस दिन देश के बंटवारे पर भी मुहर लग गई. हिंदुस्तान के इतिहास का वह अनचाहा दिन इतिहास में दर्ज हुआ था 18 जुलाई को.
18 जुलाई 1947 यानी आज से ठीक 73 साल पहले भारत के बंटवारे पर मुहर लगाने वाला इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट यानी भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम वजूद में आया. इस एक्ट के तहत जहां देश को करीब 200 सालों के संघर्ष के बाद आजादी मिलने जा रही थी तो वहीं भारत के बंटवारे की भी मुहर लग गई और पाकिस्तान के रूप में नए देश के अस्तित्व में आने का रास्ता साफ हो गया.
इंग्लैंड की संसद में आखिरी प्रस्ताव
इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट (IIA) को माउंटबेटन योजना के आधार पर इंग्लैंड की संसद में 4 जुलाई 1947 को पेश किया गया और 14 दिन बाद यह 18 जुलाई 1947 को विधिवत पारित होकर कानून बन गया.
इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट 1947, भारत के अपने उपनिवेशवाद युग के विषय में पारित ब्रिटिश संसद में यह अंतिम अधिनियम (एक्ट) भी था. इस एक्ट के पारित हो जाने के एक महीने के अंदर ही देश का बंटवारा भी हो गया. अगले महीने 14 अगस्त को पाकिस्तान वजूद में आया और इसके एक दिन बाद भारत को आजादी तो मिली लेकिन उसके दो टुकड़े हो चुके थे.
माउंटबेटन ने किया आजादी का ऐलान
इससे पहले इंग्लैंड की सरकार से सलाह-मशविरा करने के बाद तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 3 जून 1947 को यह घोषणा की कि इंग्लैंड की सरकार का विचार है कि 15 अगस्त 1947 से पहले ही शक्ति हस्तांतरण कर दिया जाए. जिसके लिए माउंटबेटन ने एक योजना रखी जिसे माउंटबेटन प्लान यानी माउंटबेटन योजना कहा गया.
क्या है माउंटबेटन प्लान
इस योजना के तहत भारत को भारत और पाकिस्तान नामक दो अलग राष्ट्रों में बांट दिया जाए और दोनों को जून 1948 की बजाए 15 अगस्त 1947 को ही आजादी दे दी जाए. तत्कालीन प्रधानमंत्री लाड ऐटली ने 20 फरवरी 1947 को ब्रिटिश संसद में ऐलान किया था कि जून 1948 से पहले भारत में सत्ता हस्तांतरित कर दी जाएगी, यानी आजादी दे दी जाएगी.
यही नहीं माउंटबेटन प्लान के तहत पंजाब, बंगाल, असम और उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में स्थानीय लोगों की भावना के आधार पर भारत या पाकिस्तान में जनमत संग्रह के जरिए शामिल होने की बात कही गई.
इस योजना के तहत बंगाल और पंजाब के हिंदू बहुल जिलों के लोगों ने अपने-अपने प्रांतों के बंटवारे पर सहमति जताई तो वहीं असम के सिलहट जिले के लोगों ने पाकिस्तान में शामिल होने का फैसला कर लिया. पाकिस्तान में शामिल होने वाला सिलहट मुस्लिम बहुल इलाका था. जबकि 550 से ज्यादा रियासतों ने भारत के साथ जुड़ने का फैसला लिया.
अबुल कलाम आजाद ने किया विरोध
लॉर्ड माउंटबेटन की विभाजनकारी योजना पर विचार करने के लिए 14 जून 1947 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक हुई जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद और पुरुषोत्तम दास टंडन के अलावा कुछ हिंदू सदस्यों और राष्ट्रवादी मुसलमानों ने इसका विरोध किया, लेकिन पंडित जवाहरलाल नेहरू, पंडित गोविंद बल्लभ पंत, सरदार वल्लभभाई पटेल, तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष आचार्य जेबी कृपलानी और महात्मा गांधी ने उस समय के हालातों को देखते हुए इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति जता दी.
लंबे विचार-विमर्श के बाद कांग्रेस द्वारा माउंटबेटन प्लान को आखिरकार स्वीकार कर लिया गया. लगभग सभी राजनीतिक दलों ने माउंटबेटन प्लान को मान लिया.
लंबे संघर्ष और हजारों लोगों की शहादत के बाद हिंदुस्तान को आजादी तो मिली, लेकिन उसका एक हिस्सा टूट चुका था और बंटवारे की वजह से लाखों लोगों को इधर से उधर और उधर से इधर होना पड़ा. विभाजन के दौरान देश ने अनगिनत वीभत्स दंगे भी देखे जिसमें 20 लाख से ज्यादा लोग मारे गए और लाखों लोग बेघर हो गए.