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...अब नंबर-1 बनने में चूका भारत तो 200 साल बाद आएगा नंबर

आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की आर्थिक इकाई स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय कनवेनर आर सुंदरम का मानना है कि यदि जल्द से जल्द हम अपनी 40 करोड़ की वर्कफोर्स को केन्द्र में रखकर पूरी दुनिया के लिए उत्पादन करने की क्षमता नहीं बनाते तो हम नंबर वन देश बनने से चूक जाएंगें.

कहीं इस वर्कफोर्स के साथ हम नंबर वन बनने से चूक न जाएं कहीं इस वर्कफोर्स के साथ हम नंबर वन बनने से चूक न जाएं
राहुल मिश्र
  • नई दिल्ली,
  • 31 अक्टूबर 2017,
  • अपडेटेड 12:10 PM IST

लंबे समय से भारत कोशिश कर रहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र की स्थाई सदस्यता पा जाए. ऐसा इसलिए कि भारत आज दुनिया की टॉप अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है. दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश भी है. साथ ही अपनी सुरक्षा के लिए एक बड़ी सेना के साथ-साथ एक न्यूक्लियर वेपन से लैस देश है. इसके अलावा कृषि उत्पादन के क्षेत्र में भी वह कई फसलों में अग्रणी है. और सबसे खास बात कि यह दुनिया का एकमात्र देश है जहां 40 फीसदी आबादी युवा है जो कि ग्लोबल वर्कफोर्स का सबसे बड़ा हिस्सा है. ऐसे में यदि अब भारत नंबर वन बनने से चूकता है जो जाहिर है दोबारा उसका नंबर शायद 200 साल के बाद आए. ऐसा क्यों, हम आपको इसका कारण बता रहे हैं.

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कैसे बनेंगे नंबर वन?

भारत की आर्थिक क्षमता और जनसंख्या की ताकत पर आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की आर्थिक इकाई स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय कनवेनर आर सुंदरम का मानना है कि यदि जल्द से जल्द हम अपनी 40 करोड़ की वर्कफोर्स को केन्द्र में रखकर पूरी दुनिया के लिए उत्पादन करने की क्षमता नहीं बनाते तो हम नंबर वन देश बनने से चूक जाएंगें. सुंदरम के मुताबिक आज जो वर्कफोर्स हमारी ताकत का सबसे बड़ा हथियार है वही अगले दो दशकों में हमें आर्थिक नुकसान पहुंचाने लगेगी यदि हम उसके सहारे अपनी अर्थव्यवस्था में बड़ी छलांग नहीं लगा पाए.

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पहले भारत ने ऐसे गंवाया है मौका

दुनिया का नंबर वन देश बनने का भारत के लिए यह कोई पहला मौका नहीं है. इतिहास को खंगालें तो कहा जाता है कि भारत एक वक्त में ऐसा देश था जहां सोने की चिड़िया उड़ा करती थी. वैश्विक कारोबार में भारत अपने सिल्क रोड के चलते केन्द्र में रह चुका है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यूरोप से भारत तक समुद्री रास्ता खोजने निकला कोलंबस गलती अमेरिका की खोज कर लेता है. वहीं यूरोप के एक हिस्सा से भारत पर आक्रमण करने के लिए सिकंदर अपनी सेना के साथ हजारों किलोमीटर लंबा सफर तय करके पहुंचता है.

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कैसे छिना था ताज

इसके बाद भारत से नंबर वन का यह ताज छीनने के लिए लगातार मुसलमानों का आक्रमण होता रहा और नतीजा यह रहा कि इस एशियाई क्षेत्र पर मुसलमानों का राज कायम हो गया. इसके बावजूद भारत से नंबर वन का ताज पूरी तरह नहीं छिना और यूरोप की अन्य सभ्यताओं ने भारत का रुख किया. पुर्तगाल, फ्रांस और इंग्लैंड ने दुनिया के इस कोने को अपने कब्जे में करने के लिए लगातार मुहिम चलाई और नतीजा यह रहा कि भारत पर अंग्रेजी हुकूमत स्थापित हुई और एशिया का यह नंबर वन रहा क्षेत्र गरीबी और लाचारी के दलदल में चला गया.

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इंग्लैंड-अमेरिका और चीन ऐसे ही बने थे मजबूत

इतिहास में जिस देश ने नंबर वन का खिताब अपने-अपने नाम किया उनमें एक खासियत रही जिसका फायदा उठाने में वह सफल हुए. बात चाहे औपनिवेशिक युग की हो जब अपनी बड़ी जनसंख्या और सैन्य क्षमता के दम पर इंग्लैंड नंबर वन बनने में कामयाब रहा. इस दौरान इंग्लैंड ने अपना यूनियन जैक दुनिया के लगभग तीन-चौथाई हिस्से पर फहराया. इंग्लैंड से यह खिताब प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका छीनने में सफल हुआ. अमेरिका ने भी यह काम ऐसे समय पर किया जब उसकी जनसंख्या में युवा अधिकांश थे और उसने पूरे विश्व के लिए युद्ध सामाग्री का उत्पादन कर अपने लिए नंबर वन का खिताब तय कर लिया.

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विश्व युद्ध के बाद 1980 के दशक तक नंबर वन पर अमेरिका काबिज रहा हालांकि इसी वक्त चीन अपनी बड़ी आबादी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के सहारे नंबर वन के लिए तैयार हो रहा था. अपनी बड़ी जनसंख्या के साथ पूरी दुनिया के लिए मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की कवायद के सहारे आज चीन को दुनिया में नंबर वन माना जा रहा है. वैश्विक जानकारों का भी दावा है कि चीन महज अगले एक दशक तक और इस नंबर वन के खिताब को बचा सकता है क्योंकि अब चीन ने युवा जनसंख्या के लाभ को खत्म कर लिया है और उसकी जनसंख्या अब वृद्ध हो रही है.

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बीते कई वर्षों से वैश्विक स्तर के जानकारों समेत कई अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं दावा कर चुकी हैं कि आने वाले दशक एक बार फिर भारत को नंबर वन की स्थिति पर पहुंचाने के लिए तैयार हैं.

भारत से उम्मीद क्यों?

हाल ही में हार्वर्ड युनिवर्सिटी की एक शोध में दावा किया गया था कि भारत आने वाले दशक में ग्लोबल इकोनॉमिक ग्रोथ का मुख्य केन्द्र बिंदु होगा और यह चीन के मुकाबले आगे बना रहेगा. यूनिवर्सिटी के इस रिसर्च में हालांकि, आने वाले दशक में ग्लोबल इकोनॉमिक ग्रोथ में लगातार सुस्ती का दौर जारी रहने की भी चेतावनी भी दी गई थी और दावा किया गया था कि इस सुस्ती के दौरान भारत तेजी से आगे बढ़ेगा और चीन को पीछे छोड़ते हुए नंबर वन बनने में सफल हो जाएगा.

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तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था सबसे बड़ा सहारा

रिसर्च के मुताबिक साल 2025 तक भारत 7.7 फीसदी वार्षकि वृद्धि के साथ दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी रहेंगी. हार्वर्ड युनीवर्सिटी के अंतरराष्ट्रीय विकास केन्द्र में शोधकर्ताओं द्वारा आर्थिक वृद्धि के बारे में प्रस्तुत अपने अनुमानों में कहा गया है, वैश्विक आर्थकि गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बिंदु पिछले कुछ सालों के दौरान चीन से हटकर पड़ोसी देश भारत बन गया है. रिपोर्ट के मुताबिक अगले एक दशक तक भारत ही आर्थिक गतिविधियों का मुख्य केन्द्र बने रहने की संभावना है. आने वाले समय में उभरते बाजारों की वृद्धि की रफ्तार विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले तेज बने रहने का अनुमान है.

लिहाजा, एक बात साफ है कि यदि अगले एक दशक में भारत अपनी युवा जनसंख्या और तेज भागती अर्थव्यवस्था का फायदा उठाते हुए नंबर वन बनने में सफल नहीं हुआ तो संभव है कि कोई और देश यह खिताब लेने के लिए तैयार हो जाए. ऐसी स्थिति में यदि भारत इस मौके से चूक जाता है तो ऐसी स्थिति में पहुंचने के लिए उसे लंबा इंतजार करना होगा.

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