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Conclave16: संजय दत्त बोले- मैंने जेल में ऐसी सब्जी खाई, जो गधे भी नहीं खाते

कॉन्क्लेव-2016 में संजय दत्त ने कहा कि जेल में मैंने जो समय बिताया वो भयानक दौर की तरह थे.

कॉन्क्लेव में संजय दत्त कॉन्क्लेव में संजय दत्त
स्‍वपनल सोनल
  • नई दिल्ली,
  • 18 मार्च 2016,
  • अपडेटेड 10:13 AM IST

नायक से खलनायक और 'खलनायक' की सजा काटकर नायक बनकर रिहा हुए संजय दत्त शुक्रवार को इंडिया टुडे कॉन्क्लेव- 2016 के मंच पर पहुंचे. 'हार्ड रोड टू फ्रीडम' सत्र में बोलते हुए इस दौरान उन्होंने अपने जेल के दिनों के अनुभवों को भी साझा किया. इस दौरान उन्होंने आजादी का महत्व समझाते हुए कहा कि यह एक ऐसी चीज है, जिसे कोई भी कीमत चुकाकर खरीदा नहीं जा सकता.

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इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई के साथ बातचीत में संजय दत्त ने बताया कि कैसे वह जेल में कैदियों के साथ अपना समय बिताते थे. हालांकि इस दौरान उन्होंने भारतीय जेलों के तंत्र पर भी सवाल उठाए. उन्होंने कहा कि हम आज भी अंग्रेजों के जमाने के मैनुअल फॉलो कर रहे हैं. जेल में ऐसा लगता है, जैसे कोई अंग्रेज आपके सिर पर बैठा है. इसे बदलने की जरूरत है.

आगे पढ़े, संजय दत्त से बातचीत ज्यों का त्यों-

सवाल: क्या आप वाकई अब आप आजाद महसूस कर रहे हैं?
संजय: आजाद महसूस करने में थोड़ा समय लगेगा. कई सारी चीजे हैं. यह सिर्फ 5 साल नहीं है, यह 23 साल का लंबा वक्त है. पैरोल और उस दौरान पुलिस थाने में जाकर हाजिरी ये सब ऐसी चीजे हैं, जिनसे उबरने में समय लगेगा. अभी मैं एक दिन उठा और अपने आदमी शंकर से कहा चल डायरी निकाल, हाजिरी देने चलना है. उसने कहा कि सर अब आप आजाद हो. तो ये ऐसी स्थि‍ति है.

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सवाल: जेल का समय कैसा रहा, कैसा बीता?
संजय: वो भयानक दिन रहे हैं. लेकिन मैंने इसे सकारात्मक लिया. वहां दिन की शुरुआत छह बजे होती थी. मैं रोता था. परिवार को, बच्चों को याद करता था. मुझे सुरक्षा कारणों से अकेले रखा गया था. तो मैं व्यायाम करता था. मैंने वहां शि‍व पुराण पढ़ा, गणेश पुराण. मैं वहां पंडित बन गया था. मैं भोलेनाथ का भक्त हूं. मैंने जेल के जीवन को सकारात्मक ढंग से लिया. मैंने जेल में भोलेनाथ के बारे में बहुत कुछ जाना. मैंने हिंदू धर्म को जाना.

सवाल: वजन न बढ़े, इसके लिए आप एक्सरसाइज करते थे?
संजय: मैंने बाल्टी में पानी भरकर डम्बेल की तरह इस्तेमाल किया. लकड़ी के बीम पर बॉक्सिंग की. डिप्स लगाया. दर्द होता था, लेकिन सहता था, क्योंकि वजन नहीं बढ़ाना था. मुझे लगता है कि अगर आपको वजन कम करना है तो जेल जाइए.

सवाल: जेल का खाना कैसा था?
संजय: खाना भयानक था. डेढ़ साल तक चने की दाल खाया. एक सब्जी थी राजगीरा. मैंने पूछा ये कौन खाता है, तो बताया कि गधे भी नहीं खाते.

सवाल: आप ये कहना चाहते हैं कि जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं मिला?
संजय: मुझे ऐसा लगा जैसे ब्रिटिश रूल वापस आ गया. सुपरिटेंडेंट आते तो आपको बैठना पड़ता. बैठकर नमस्कार करना पड़ता. ये अंग्रेजों के समय में रहने जैसा था. वो मैनुअल चेंज नहीं करते. 100 साल पुराना मैनुअल है.

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सवाल: आपने जेल में आरजे और पेपर बैग बनाने का काम किया?
संजय: मैं पेपर बैग बनाने में माहिर हो गया हूं. मैंने इससे 450 रुपये कमाए. मैंने ये पैसे अपनी पत्नी को दिए. एक बैग में आप 5 किलो वजन उठा सकते हैं.

सवाल: आपके पिता कहते थे कि मेरा बेटा आतंकी नहीं है, उनके लिए दुख होता है?
जवाब: मेरे परिवार ने बहुत कुछ झेला है. खासकर पापा. मेरा पूरा परिवार देशभक्त है. मैं या मेरा परिवार कभी देश को नुकसान पहुंचाने के बारे में सोच भी नहीं सकते. लोगों का शुक्रिया कि उन्होंने सपोर्ट किया. उन्होंने यह नहीं माना कि मैंने गद्दारी की.

सवाल: आपको लगता है कि आपने पिता का सिर झुकाया?
संजय: नहीं, मैंने कभी उनका सिर नीचे नहीं झुकने दिया. मैंने हमेशा उन्हें गर्व का एहसास करवाया. उन्होंने मरने के समय भी कहा कि मुझे तुम पर गर्व है. इसका मतलब है कि मैंने कुछ अच्छा किया.

सवाल: आपको पछतावा होता है कि आपने एके-56 क्यों रखा?
संजय: पछतावे से बड़ी बात है कि मैंने उस घटना से बहुत कुछ सीखा. मैंने सीखा कि दिल से नहीं, दिमाग से सोचना चाहिए. मैंने सीखा कि देश के नियम को आप तोड़ नहीं सकते.

सवाल: आपको लोग अभी भी संजू बाबा बुलाते हैं?
संजय: ये लोगों का प्यार है. जेल में भी मुझे संजू बाबा बुलाते थे.

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सवाल: ये नया हेयरकट, जेल में लिया आपने?
संजय: मैं जेल में बोर हो गया था. एक मिश्रा जी थे, जौनपुर के. उन्होंने कहा कि मैं आपके बाल काटता हूं, नए डिजाइन में. उन्होंने कहा कि बाहर बाल मत काटना, ये चुटिया होगा आगे. बस बाहर जाकर इसको सुनहला करना. तो मैंने बाहर आकर इसे गोल्डन करवाया है.

सवाल: क्या आपके ड्रग्स की आदत के कारण मां-पापा को परेशानी हुई?
संजय: मैं जीवन में बहुत शर्मिला हूं. शांत रहना चाहता हूं. हैबिट ऑफ ड्रग की जहां तक बात है. मेरे पिता को शुरू में यह समझ नहीं आया, मैंने ही उन्हें बताया. मैं कहीं सो जाता. मैंने एक दिन पापा से कहा कि पापा मैं ड्रग्स पर हूं, कुछ कीजिए. उन्होंने मुझे अस्पताल भेजा और तब से अब तक मैंने इसे नहीं छुआ. मैंने अपने माता-पिता को टफ टाइम दिया, लेकिन मैं अच्छा इंसान भी बना.

सवाल: आपके बच्चों के लिए यह टफ टाइम था?
संजय: मैंने अपनी पत्नी से कहा कि उन्हें जेल मत लाना. मैंने उनके स्कूल फंक्शन को मिस किया. उनके बड़े होने को मिस किया.

सवाल: आपने कहा, जेल में बैठा जेलर ब्रिटिश की तरह है?
संजय: मैं अपने सिर पर किसी ब्रिटिश को बैठे नहीं देख सकता. वहां सब कुछ अंग्रेजों की तरह होता है. मुझे लगता है जेलों में बहुत कुछ बदलने की जरूरत है.

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सवाल: जब आप जेल से रिहा हो रहे थे, कुछ लोग रो रहे थे?
संजय: हां, मैं वहां आरजे वाला काम करता था. मैंने उनसे बात करता था. जो कुछ मदद कर सकता था, करता था. सुझाव देता था. उन्हें कहानियां सुनाता था. तो ऐसे में हमारे बीच बॉन्डिंग हो गई थी. रिलीज से पहले रात को मैं सो नहीं पाया. हम बात करते रहे. इनमें पुलिस वाले भी थे.

सवाल: आपके जीवन में लवली लेडीज का खास रोल रहा है?
संजय: मुझे लगता है कि मैं ईमानदार हूं. मैं दिल से बोलता हूं. ये चार्म जैसा कुछ नहीं है. मैंने मान्यता से कहा कि मुझसे शादी करोगी. उसने कहा कि अभी तुम मुझे ठीक से जानते भी नहीं. मैंने कहा यही तो अच्छा है.

सवाल: कोई पछतावा है?
संजय: दिमाग की सुनों, दिल की मत सुनो. और कभी दिल की भी सुनो, दिमाग की मत सुनो. जिस दिन वो हथियार आया, मुझे उस दिन पर पछतावा है.

सवाल: आज का मुन्ना भाई कैसा है?
संजय: मैं संजय ही रहना चाहता हूं. मैं मुन्ना भाई नहीं बनना चाहता. मैं कुछ बेहतरीन फिल्में करना चाहता हूं. कुछ अच्छा और अलग करना चाहता हूं.

सवाल: कोई रोल जिस पर काम कर रहे हैं?
संजय: मैं सिद्धार्थ आनंद के साथ काम कर सकता हूं. एक एक्शन फिल्म होगी. विधू चोपड़ा के साथ एक लव स्टोरी. अगली मुन्ना भाई की 2017 में शूटिंग शुरू होगी. तो ये तीन फिल्में हैं.

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सवाल: बायोपिक के बारे में क्या खयाल है?
संजय: मैं नहीं समझता कि दो घंटे में आप जिंदगी को कैसे समेटेंगे.

सवाल: नरगिस और सुनील दत्त के साथ कॉम्प्लेक्स रिलेशन रहा?
संजय: मेरे पिता कहते थे कि अगर तुम्हें मुझसे डर लगता है तो मतलब कि तुम गलत कर रहे हो. तब मैं नहीं समझता था. अब समझता हूं. जब मां नहीं रही तो खालीपन आया, लेकिन फिर चीजें बदलीं. मैं फिल्मों में व्यस्त रहने लगा. पिताजी राजनीति में आ गए.

सवाल: जब आप गिरफ्तार हुए, लोगों ने आपसे दूरी बनाई?
संजय: देखिए, लोग बिजनेस करते हैं. फिल्म इंडस्ट्री बिजनेस है. कोई भी ऐसे आरोप वाले आदमी के साथ जुड़ना नहीं चाहेगा. लेकिन मैं फिल्में ही करते रहना चाहता हूं. रजानीति में कोशिश की थी, लेकिन अब नहीं.

सवाल: अब आजादी का क्या मतलब है?
संजय: जब हम आजादी की बात करते हैं तो यही कहूंगा कि लोगों को फ्रीडम फॉर ग्रांटेड नहीं लेना चाहिए. आप आजादी पैसे से या किसी चीज से नहीं खरीद सकते. इसके बराबर कुछ नहीं है. यह भगवान का दिया सबसे बड़ा तोहफा है. हमें इसके महत्व को समझना चाहिए.

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