
जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में 17 सितंबर को इंडिया टुडे माइंड रॉक्स यूथ समिट में ईस्ट इंडिया कॉमेडी के सौरभ पंत की कही गई यह बात हंसी-मजाक के अलावा सोशल मीडिया से हांके जाते इस दौर के बारे में भी बहुत कुछ कहती हैः ''लेबल बस तभी जरूरी हैं जब जारा सेल लगाती है." चाहे वह हड़बड़ी में लिखी गई पोस्ट हो या तीखा चुभता हुआ ट्वीट, सोशल मीडिया अपने को जिलाए रखने का औजार बन गया है. यह युवाओं का पसंदीदा खेल का मैदान है.
यह भावना तब भी गूंजी जब टीवीटीएन के मैनेजिंग एडिटर राहुल कंवल बीजेपी सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के बीच जीवंत बहस की शुरुआत कर रहे थे. उन्होंने कहा, ''भक्त, देशद्रोही, संघी, ये ही वे लफ्ज हैं जिनका हम एक दूसरे पर फैसला सुनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं." इस सत्र में अपनी-अपनी बातों पर अडिग दोनों मुखर वक्ताओं ने कुछ ठोस और अकाट्य बातें भी कहीं. जब स्वामी और ओवैसी देशभक्ति के मुद्दे पर एक दूसरे से मोर्चा ले रहे थे, तब दर्शकों ने कुछ देर लगातार नारेबाजी की कमान संभाले रखी. शायद उनकी प्रेरणा का सबब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार का कुछ ही सत्र पहले दिया गया भाषण था. ओवैसी ने पूछाः ''क्या संविधान हमसे स्वदेशी नारे लगाने की मांग करता है?" स्वामी का पलट जवाब यह था कि अपने देश, अपनी मातृभूमि के प्रति वफादारी के इजहार से इनकार करना राष्ट्रविरोधी होना है.
बर्र के इस बेहद संवेदनशील छत्ते में जिस शख्स ने पहले हाथ डाला था, वह थे कन्हैया कुमार. उन्होंने खालिस हिंदी में राजद्रोह के मसले पर धड़ल्ले से अपनी बात रखी. उनकी बातों का लब्बोलुबाब यह थारू ''यह पूरी दुनिया ही जेल है. लड़कियां रात 11 बजे के बाद अपने घरों से नहीं निकल सकतीं, यह जेल है. अगर आदमी ईमानदारी से अपनी रोजी-रोटी नहीं कमा सकता, तो यह भी जेल है. इस बड़ी जेल को ठीक करने के लिए अगर मुझे छोटी जेल में जाना पड़ता है तो ठीक है."
पिंक से रुपहले पर्दे पर आईं स्टार तापसी पन्नू इस दलील के धागे को तार्किक परिणति तक ले गईं. फिल्म के अपने किरदार में वे अपने हमलावर पर जिस तरह पलटवार करती हैं, उसने ''पीड़िता" की शब्दावली को उलट दिया है. फिल्म का एक संवाद दोहराते हुए उन्होंने कहा, ''नहीं एक लक्रज नहीं है, यह एक वाक्य है."
मंच पर तापसी के साथ पिंक के सह-निर्माता सुजीत सरकार और अमिताभ बच्चन थे. बच्चन ने फिल्म में खब्त और अवसाद के दोहरे मनोविकार वाले वकील का किरदार अदा किया है. उन्होंने उस तंत्र के बारे में कुछ मौजूं बातें कहीं जो औरतों की लाचारगी को जायज ठहराते हैं. इस अफसाने में मोड़ उस वक्त आया जब एक युवती ने बिग बी से बेवफाई पर बनी 1980 के दशक की फिल्म सिलसिला का एक संवाद सुनाने को कहा. जवाब में बच्चन उन मोहतरमा के पास गए और अपनी जानी-पहचानी गूंजती आवाज में सीटियां बजा रही भीड़ को हतप्रभ करते हुए चुप करा दिया. उन्होंने शौक से सेल्फियां खिंचवाईं और टी-शर्ट पर ऑटोग्राफ भी दिए.
असल जिंदगी में दबंग आधुनिक औरत की नुमांइदगी करने वाली यूट्यूब पर रिक्शावाली से मशहूर अनीशा दीक्षित और वेब सीरीज बैंग बाजा बारात से मशहूर अंगिरा धर ने लोटपोट हो रहे दर्शकों को खूब लुभाया. साफ है कि डिजिटल कहानियों का अनगढ़ आकर्षण दर्शकों का दिल जीत रहा है, जो लीक से हटकर हैं. चाहे वह औरत का अपनी चोली से प्यार और नफरत का रिश्ता हो या हमजोलियों के साथ जुड़ावों का गड़बड़झाला हो, वैकल्पिक अफसाने साफ तौर पर मुख्यधारा को ही बहा ले जाने का खतरा पैदा कर रहे हैं.
मनोरंजन के चेहरे की हकीकत की नुमाइंदगी दलित रैपर गिन्नी माही और सो यू थिंक यू कैन डांस की विजेता अलीशा बेहुरा कर रही थीं. अलीशा ने तेजाब में माधुरी दीक्षित अभिनीत गाने एक दो तीन...की प्रवाहपूर्ण प्रस्तुति से हर किसी को हैरान कर दिया. उन्होंने कहा कि जब भी उन्हें दिल्ली या मुंबई के डांसरों के साथ मुकाबले के बारे में सोचकर डर महसूस होता, वह खुद को याद दिलातीं कि भिलाई (उनके गृहनगर) को प्रतिभाओं के नक्शे पर लाना है. बैकफ्लिप का प्रदर्शन करते हुए उनकी गरिमा और लालित्य ने और माही के बेचैन कर देने वाले कठोर गीतों ने भीड़ को लगातार बावला बनाए रखा.
अपने चमकीले सूट के साथ ऊंची ऐडिय़ों के बावजूद नन्ही-सी दिखाई दे रहीं साक्षी मलिक कामयाबी की विनम्रता से ओतप्रोत थीं. ओलंपिक के अपने शानदार सफर में आई रुकावटों के बारे में उन्होंने इतनी शाइस्तगी से बात की कि कहीं भी खुद अपनी पीठ थपथपाती नजर नहीं आईं. उन्होंने बहुत संकोच के साथ कहा, ''मेरे माता-पिता ने एक शर्त पर मुझे खेलने जाने दिया कि मेरे कानों को कुछ न हो. उन्हें सबसे ज्यादा फिक्र इसकी थी कि मैं चोट लगा लूंगी और लड़कियों की तरह नहीं दिखूंगी." उन्होंने बताया कि महिला पहलवानों की कमी की वजह से उन्हें आम तौर पर लड़कों के साथ कुश्ती सीखनी पड़ती थी और उनके कोच को महिलाओं के लिए अखाड़ा चलाने की वजह से भला-बुरा सुनना पड़ता था. उन्होंने कहा, ''मगर अब जब लड़कियां लड़कों से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं, तो सबकी जुबान पर ताले लग गए हैं."
सुशांत सिंह राजपूत बॉलीवुड में रोमांस के सबसे जिंदाजिल चेहरों में से हैं. इस प्यारे और साधारण-से छैलछबीले ने पर्दे पर एम.एस. धोनी का किरदार निभाने की अपनी तैयारियों के बारे में बात की. उन्होंने कहा कि बात सिर्फ क्रिक्रेट की तकनीक की नहीं थी बल्कि उस शख्स के दिमाग और सोच की थी. जिन लोगों के ख्वाब क्रिकेट या बॉलीवुड से इतर होते हैं, उनके लिए स्टार्ट-अप गुरु शांतनु देशपांडे (बॉक्वबे शेविंग कंपनी के सह-संस्थापक) और विवेक प्रभाकर (चुंबक के सह-संस्थापक) बेशकीमती सलाह लेकर आए. दोनों ने अपने ख्वाबों के लिए शानदार करियर को तिलांजलि दे दी थी. देशपांडे कहते हैं कि कामयाबी आसानी से नहीं मिलती, बल्कि महामानव सरीखा जज्बा चाहिए, ''अगर आपकी दिलचस्पी क्रिकेट में है, तो रणजी ट्रॉफी का सपना मत देखो, अगला सचिन बनने का सपना देखो."
जहां स्टार्ट-अप टिमटिमाते और चमक उठते हैं, वहीं सियासत अब भी ऐसा पेशा नहीं है जिसके बारे में युवा संजीदगी से विचार करते हैं. आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता राघव चड्ढा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सचिन पायलट और केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री अनुप्रिया पटेल ने इस पर रोशनी डाली कि इसे क्यों बदलने की जरूरत है. चड्ढा ने कहा कि भारत में राजनीति में आगे नहीं बढ़ सकते, इस अंदेशे से युवाओं को इससे बिदकना नहीं चाहिए. उन्होंने कहा, ''मैं 27 साल का हूं, एक पूर्व केंद्रीय मंत्री और एक मौजूदा केंद्रीय मंत्री के बीच में बैठा हूं." तो पटेल ने कहा, ''एक तपा-तपाया राजनेता किसी भी उम्र का हो सकता है बशर्ते उसमें अपने काम के लिए परिपक्वता हो."
अपने चाहने वालों के दिलों की धड़कन वरुण धवन से परिपक्वता पर सलाह बांटने की उम्मीद नहीं थी, पर वे दार्शनिक सरीखे निकले. उन्होंने कहा, ''मुझे नहीं लगता कि यह पीढ़ी उतनी तेज है जितनी लोगों को लगती है. मेरा मतलब है 1970 के दशक में भी अहिंसक विचारधारा वाली पीढ़ी थी...आज भी आपको रिश्तों पर काम करना पड़ता है और लोगों पर समय देना पड़ता है." उन्होंने पहली बार अपना दिल टूटने और उससे उबरना सीखने के बारे में याद किया. उन्होंने बेहद संकोच और विनम्रता से माना कि इसे लेकर वे नाटकीय थे क्योंकि ''एक ऐक्टर भला और कैसे प्रतिक्रिया कर सकता है?" उन्होंने दर्शकों की फरमाइश मानते हुए दंड-बैठकों का खुशी-खुशी प्रदर्शन किया, पर अपने मशहूर सिक्स पैक दिखाने से विनम्रता के साथ इनकार कर दिया.
कंगना रनौट ने अपनी भूमिकाएं कभी भी बचते-बचाते हुए नहीं निभाईं. हमेशा की तरह यहां भी उन्होंने खुले दिल से अपनी बात कही और ताजगी से भर दिया. उन्होंने कहा, ''यह साबित करना पड़े कि औरतें आदमियों के बराबर हैं, यह हमारी शान के खिलाफ है...नारीवादी होने के नाते हमें औरतों की इज्जत और शान की हिफाजत करनी चाहिए और उन आदमियों को सलाम करना चाहिए जो औरतों को बराबरी का दर्जा देते हैं." दिग्गजों से निपटने के उनके तजुर्बे को भी भीड़ की खासी तवज्जो मिलीः ''दबंग वही जबान समझता है जिसमें उसने महारत हासिल की है, जो आम तौर पर शारीरिक हिंसा की जबान है. उसकी मानसिकता तोड़ो और उसी जबान का इस्तेमाल करो जो वह समझता है—चाहे वह ईमादारी की जबान हो या बौद्धिकता की." सलाह पुरानी मगर दमदार है जिंदगी भर का एक सबक जो कभी पुराना नहीं पड़ेगा.
(—साथ में आदित्य विग और अदिति दहिया)