
इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2019 के मुंबई एडिशन में शुक्रवार को अर्थव्यवस्था की जानी मानी हस्तियों ने शिरकत की. कार्यक्रम में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य डॉ. शमिका रवि, टाटा संस की चीफ इकोनॉमिस्ट रूपा पुरुषोत्तम, इंडियन सोसायटी ऑफ लेबर इकोनॉमिक्स की वाइस प्रेसिडेंट डॉ रितु दीवान ने अर्थव्यवस्था के मौजूदा हालात पर अपनी राय जाहिर की. शमिका रवि ने जहां भारतीय अर्थव्यवस्था को अवसर बताया वहीं रितु दीवान ने मंदी के हालात को रेखांकित किया.
रितु दीवान ने नोटबंदी को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भारी झटका बताया. उन्होंने कहा कि नोटबंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगा और इससे कई तरह की समस्याएं पैदा हुईं. उन्होंने कहा कि नोटबंदी को लागू करने में बेवजह संसाधनों को बर्बाद किया गया. नोटबंदी का सबसे बुरा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर देखने को मिला. जब उनसे कहा गया कि भारतीय अर्थव्यवस्था को दो नजरिये से देखा जा रहा है. एक नजरिया यह है कि गिलास आधा खाली है जबकि दूसरा नजरिया यह है कि गिलास आधा भरा हुआ है. प्रधानमंत्री गिलास को हमेशा भरा हुआ ही देखते हैं.
इस पर रितु दीवान ने कहा कि नोटबंदी से गिलास पूरी तरह टूट चुकी है. सरकार का यह कदम संसाधनों को नुकसान पहुंचाने वाला साबित हुआ. छोटे-छोटे कारखानों पर बुरा असर पड़ा और बहुतायत की संख्या में फैक्ट्रियां बंद हुईं, और इसका नतीजा यह हुआ कि लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गए. इसी तरह से जीएसटी भी विरोधाभासों से भरा कदम था. हेल्थ लोन, एजुकेशन लोन जैसे लोन महंगे हो गए.स्कूल फीस तक इससे प्रभावित हुई.
रितु दीवान ने कहा कि नोटबंदी की वजह से ग्रामीण अर्थव्यवस्था सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुई. उनका कहना था कि नोटबंदी के तीन साल बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. मनरेगा के हालात भी नहीं सुधर रहे हैं. HOT BUTTON: Economy, Belling the Cat: GDP. Jobs. And gaps in the India story विषय पर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई से बातचीत करते हुए रितु दीवान ने कहा कि नोटबंदी का असर यह है कि महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में पैसा पहुंच ही नहीं पा रहा है. जमीनी हकीकत बता रही है कि लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
रितु दीवान ने हालांकि मोदी सरकार के उज्ज्वला योजना की तारीफ की, लेकिन उन्होंने कहा कि लोगों के पास पहले रोटी और खरीदने की क्षमता होनी चाहिए. उज्ज्वला योजना के तहत लोगों को सिलेंडर और गैस चुल्हा मिल गया, लेकिन उनके पास उसे दोबारा भराने के लिए पैसे नहीं थे. इसी तरह स्वच्छ भारत मिशन पर काफी ज्यादा बजट खर्च कर दिया गया जबकि साफ-सफाई की हर आदमी को बेसिक समझ होती है. जब तक भूमि सुधार नहीं होगा अर्थव्यवस्था की स्थिति में कारगर सुधार नहीं देखा जा सकता है. उन्होंने कश्मीर, केरल और गोवा का उदाहरण देते हुए बताया कि जिन राज्यों ने भूमि सुधार लागू किए हैं वहां अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में मिलती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था पर भी रितु दीवान ने सवाल उठाए और उन्होंने कहा कि अगले पांच वर्षों में हम यह लक्ष्य हासिल करने नहीं जा रहे हैं.