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मानवाधिकारों का सम्मान करते हैं भारतीय सशस्त्र बल: जनरल बिपिन रावत

जनरल रावत ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल न सिर्फ हमारे अपने लोगों के मानवाधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हैं बल्कि युद्धबंदियों के साथ भी जेनेवा समझौते के मुताबिक ही व्यवहार करते हैं.

जनरल बिपिन रावत (फाइल फोटो- पीटीआई) जनरल बिपिन रावत (फाइल फोटो- पीटीआई)
मंजीत नेगी
  • नई दिल्ली,
  • 27 दिसंबर 2019,
  • अपडेटेड 8:28 PM IST

  • भारतीय सशस्त्र बलों का मुख्य स्वभाव है इंसानियत और शराफत
  • सेना मुख्यालय ने 1993 में एक मानवाधिकार सेल का गठन किया

थल सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने शुक्रवार को कहा कि भारतीय सशस्त्र बल बेहद अनुशासित है. इतना ही नहीं वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का भी बेहद सम्मान करते हैं. जनरल रावत ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बल न सिर्फ हमारे अपने लोगों के मानवाधिकारों के संरक्षण को सुनिश्चित करते हैं बल्कि युद्धबंदियों के साथ भी जेनेवा समझौते के मुताबिक ही व्यवहार करते हैं.

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जनरल बिपिन रावत नई दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने मानवाधिकार भवन में “युद्ध के समय और युद्धबंदियों के मानवाधिकारों का संरक्षण” विषय पर आयोग के इंटर्न और सीनियर अधिकारियों को संबोधित किया.

सेना प्रमुख ने कहा कि भारतीय सशस्त्र बलों का मुख्य स्वभाव है “इंसानियत” और “शराफत”. वे बेहद धर्मनिरपेक्ष हैं. उन्होंने कहा कि अब प्रौद्योगिकी के आने के बाद युद्ध की बदलती रणनीति सेना के लिए एक चुनौती है. किसी भी सशस्त्र बल के हमले के विपरीत, अंतरराष्ट्रीय कानून में आतंकी हमले अस्वीकार्य हैं. इसलिए, आतंकवाद और उग्रवाद विरोधी अभियानों का मुकाबला लोगों के दिलों को जीतने के तरीके से किया जाना चाहिए ताकि किसी तरह के नुकसान के बिना विद्रोहियों की पहचान कर उन्हें अलग किया जा सके. यह कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण और कठिन हो जाता है.

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जनरल रावत ने कहा कि सेना के मुख्यालय ने 1993 में एक मानवाधिकार सेल का गठन किया था, जिसे अब अपर महानिदेशक के नेतृत्व में निदेशालय के स्तर पर अपग्रेड किया जा रहा है. इसमें सशस्त्र बलों के खिलाफ मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों का समाधान करने और संबंधित पूछताछ की सुविधा के लिए पुलिसकर्मी तैनात होंगे.

सेनाप्रमुख जनरल रावत ने कहा कि मिलिट्री पुलिस फोर्स में महिला जवानों की नियुक्ति के साथ इस अक्टूबर से नई पहल की गई है.

उन्होंने कहा कि सेना तलाशी अभियान में कई पुलिसकर्मियों को अपने साथ ले जाती है लेकिन ऐसे अभियानों के दौरान महिलाओं की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए सेना ने अब अपनी सैन्य पुलिस बल की महिला जवानों को भी तैनात करने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा कि मानवाधिकार कानून के प्रावधानों और मानवाधिकारों की सुरक्षा के महत्व को ध्यान में रखते हुए अब हर उग्रवाद विरोधी ऑपरेशन के बाद कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी आयोजित की जा रही है और इससे संबंधित सभी रिकॉर्ड की फाइल्स बनाई जाती है.

आर्म्ड फोर्स स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) का जिक्र करते हुए सेना प्रमुख ने कहा कि यह एक्ट सेना को करीब करीब वही शक्ति देता है जो सर्च और जांच ऑपरेशन के दौरान पुलिस और सीआरपीएफ को मिलता है.

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हालांकि, वर्षों से सेना के प्रमुखों द्वारा जारी किए गए दस आदेशों के तहत सेना ने अपने तरीके से इसके उपयोग को खुद ही कम कर दिया है. जिसका हर सैनिक द्वारा कड़ाई से पालन किया जाता है, विशेष रूप से उन सैनिकों द्वारा जो उग्रवाद विरोधी क्षेत्रों में ऑपरेशन के लिए तैनात किए गए हैं.

'सैनिक सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का पालन करते हैं'

जनरल रावत ने कहा कि इस बारे में सैनिकों की ओर से सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का भी कड़ाई से पालन किया जाता है. जो भी सैनिक आतंकवाद विरोधी अभियानों में तैनात हैं उन्हें तैनाती से पहले विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है.

जनरल रावत के पहले, मानवाधिकार आयोग के सदस्य जस्टिस पीसी पंत ने सभा को संबोधित करते हुए मानवाधिकारों की रक्षा करने वाले विभिन्न कानूनों की जानकारी दी. उन्होंने कुछ मौलिक अधिकारों के बारे में भी बताया, जो सशस्त्र बलों को उनकी ड्यूटी के मुताबिक नहीं दिए जाते हैं.

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मानवाधिकार आयोग के महासचिव जयदीप गोविंद ने जनरल रावत का स्वागत करते हुए कहा कि आयोग ने अपने इंटर्नशिप कार्यक्रमों के माध्यम से प्रतिष्ठित व्यक्तियों और वरिष्ठ अधिकारियों की एक विशेष व्याख्यान श्रृंखला शुरू की है, जो उनके क्षेत्रों में मानवाधिकारों, इससे संबंधित मुद्दों और चुनौतियों से आयोग के अधिकारियों को परिचित कराएगा.

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