
भारतीय थलसेना ने कम सैनिकों के साथ लड़ी जाने वाली नई युद्ध रणनीति की क्षमताओं के आकलन के लिए पहला युद्धाभ्यास किया. उस युद्धाभ्यास का सबसे बड़ा सबक जो सामने आया है, वो ये कि अच्छे संचार को सुनिश्चित करने के लिए सिग्नल्स से जुड़े पहलुओं से कोई समझौता नहीं किया जा सकता. सेना से जुड़े टॉप सूत्रों ने यह जानकारी दी.
भारतीय थलसेना ने करीब एक महीना पहले ‘लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल’ से करीब 90 किलोमीटर दूर अरुणाचल प्रदेश के सेला में 14,000 फीट की ऊंचाई पर यह युद्धाभ्यास किया. इसी युद्धाभ्यास के निष्कर्षों का अब आकलन किया जा रहा है. ये ऊंचाई वाले दुर्गम युद्ध क्षेत्रों में ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ (IBGs) के प्रदर्शन को समझने के लिए किया जा रहा है.
सेना के एक उच्च अधिकारी ने बताया, “पहले ऐसा विचार है कि सिग्नल्स कंपोनेंट को घटाने से हल्की लेकिन चुस्त-दुरुस्त और गतिशील सेना बनाए रखने में मदद मिलेगी. लेकिन युद्धाभ्यास के दौरान हमने देखा कि ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि कुछ क्षेत्रों में संचार संपर्क ही कट गया.”
‘द इंडियन आर्मी कॉर्प ऑफ सिग्नल्स’ के पास सेना के संचार नेटवर्क को संभालने की जिम्मेदारी है. ये खुफिया सूचनाएं एकत्र करने और इलेक्ट्रोनिक वॉरफेयर जैसे ऑपरेशन्स में अहम भूमिका निभाती है. ‘इंटीग्रेटेड बैटल ग्रुप्स’ (IBGs) भारतीय सेना के नए फॉर्मेशन्स हैं जिन्हें युद्ध क्षमताओं को बढ़ाने के लिए अपनाया जा रहा है. इसके लिए शत्रु पर हमले में त्वरित और अधिक घातक होने पर ज़ोर दिया जा रहा है.
IBGs में ऐसी ब्रिगेड होंगी जो दुर्गम क्षेत्रों और खतरों के आधार पर क्षमताओं से लैस होंगी. IBGs के आने से इन्फैंट्री, आर्टिलरी, एयर डिफेंस को सेना के ‘कॉर्प लेवल फॉर्मेशन्स’ में एक ही कमांड के तहत लाया जाएगा. सेना के विभिन्न अंग रिपोर्ट तैयार करने में लगे हैं. जिसे संकलित किया जाएगा. फिर अंतिम तौर पर जो आकलन होगा वो ईस्टर्न कमान की ओर सेना मुख्यालय को भेजा जाएगा.
कोलकाता स्थित ईस्टर्न कमान लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल के साथ चीन फ्रंटियर पर ऑपरेशन्स के लिए ज़िम्मेदार है. थलसेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने नए लाए गए IBGs की तैयारियों को जांचने के लिए हुए वॉर गेम्स की समीक्षा के लिए पिछले महीने सेला (अरुणाचल प्रदेश) का दौरा किया.
एक और पहलू को इस दौरान नोटिस में लिया गया वो था युद्धाभ्यास के दौरान पशुओं के जरिए सामान की ढुलाई और आवाजाही. इसके लिए जहां सड़कें नहीं हैं वहां पशुओं के जरिए परिवहन के लिए बेहतर ट्रैक्स की ज़रूरत है. पाकिस्तान के मद्देनज़र सेना IBGs के परीक्षण के लिए ऐसा ही अभ्यास वेस्टर्न सेक्टर में भी कर चुकी है.
विभिन्न क्षेत्रों में दोनों अभ्यासों के निष्कर्षों का अध्ययन करने के बाद सेना का फोकस इस बात पर है कि लड़ने की क्षमता भौगोलिक स्थिति, मौसम, पर्यावरण और अन्य जरूरतों के हिसाब से अलग अलग हो सकती है. इस हिसाब से पहाड़ों में आर्टिलरी की इन्फैंट्री बटालियन्स के साथ सिनर्जी बढ़ाने की आवश्यकता है. रेगिस्तान में टैंकों से लैस आर्मर्ड कोर यूनिट्स को अन्य विंग्स के साथ बेहतरीन तालमेल की जरूरत है.