
यह पिछले साल 13 से 17 अक्तूबर की बात है. क्रिलपकार्ट ने 'बिग बिलियन डेज' सेल का ऐलान किया था. यह भारतीय ऑनलाइन रिटेल कंपनी के 10 साल के वजूद में इस तरह की कई सारी सेल में से एक थी. इस सेल के दौरान कंपनी ने भारी छूट पर सैकड़ों उत्पाद बेचे. पर तभी उसका ऐप ठप पड़ गया, जिससे कंपनी को शर्मिंदगी उठानी पड़ी और कई खरीदार ताकते रह गए. एक परेशान ग्राहक विकी वोहरा ने ट्वीट किया, ''जिस चीज पर क्लिक करो वह आउट ऑफ स्टॉक. फ्लिपकार्ट को यह क्रलॉप शो बंद कर देना चाहिए. '' फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों को ऐसे मेगा सेल धमाके करते हुए सावधानी बरतनी होगी, खासकर मार्च के बाद जब सरकार ने ई-रिटेल कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर भारी छूट देने पर रोक लगा दी है.
सरकार ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर एक समूह कंपनी या एक विक्रेता से होने वाली कुल बिक्री पर भी 25 फीसदी की ऊपरी सीमा बांध दी. ये नियम भारत के ई-कॉमर्स क्षेत्र के लिए ऐसे वक्त में आए, जब निवेशकों ने धन लगाने से हाथ खींच रखे हैं और 'स्थापित' ई-रिटेल कंपनियां तक डगमगा रही थीं. नियमों के सक्चत होने और कारोबार के सिकुडऩे के साथ इस क्षेत्र में आया उफान शांत होता लग रहा है.
सलाहकार कंपनी केपीएमजी इंडिया के पार्टनर अश्विन वेलोडी कहते हैं, ''वह अबूझ उत्साह फिलहाल ठंडा पड़ चुका है. '' कंपनियां छूट पर पाबंदियों के बावजूद ग्राहकों को लाने और ज्यादा से ज्यादा ऑनलाइन खरीदारी के लिए रिझाने की नई-नई तरकीबें ईजाद कर रही हैं. मिसाल के लिए, अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी की शाखा अमेजन इंडिया ने अपनी रणनीति तीन सीधे खंभों पर खड़ी की है. ये हैं उत्पादों का भारी-भरकम संकलन, कम कीमतें और तेजी से सामान पहुंचाना. यह उसके वैश्विक मानकों के अनुरूप है.
इन नई कोशिशों के नतीजे उत्साह बढ़ाने वाले हैं. मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि कुल सकल व्यापार मूल्य (जीएमवी) या विभिन्न ऑनलाइन खुदरा प्लेटफॉर्म के जरिए बेची गई तमाम चीजों का मूल्य इस साल मई 2016 के आखिर तक पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 13.3 फीसदी बढ़कर 68,136 करोड़ रु. हो गया. इस वृद्धि का काफी हिस्सा अमेजन इंडिया से आया था, जो पिछले साल 6,680 करोड़ रु. से बढ़कर 18,036 करोड़ रु. पर पहुंच गई. इस बीच फ्लिपकार्ट का जीएमवी तकरीबन 26,720 करोड़ रु. पर जस का तस बना रहा, जबकि स्नैपडील का जीएमवी आधा घटकर करीब 8,016 करोड़ रु. पर आ गया.
ई-रिटेल कंपनियों पर पाबंदियां एक बड़े अप्रत्याशित फायदे के साथ आईं. सरकार ने ई-कॉमर्स में 'मार्केटप्लेस' मॉडल पर 100 फीसदी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की छूट दे दी, जिससे इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की शर्तें और ज्यादा साफ हो गईं (फ्लिपकार्ट और स्नैपडील की बोर्ड में विदेशी निवेशक हैं). औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (डीआइपीपी) ने नए दिशानिर्देश घोषित किए और मार्केटप्लेस मॉडल और सामान-सूची मॉडल की परिभाषाएं भी साफ कर दीं. मार्केटप्लेस मॉडल में ऐसी ई-कॉमर्स कंपनियां आती हैं जो डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क पर आइटी प्लेटफॉर्म मुहैया करवाती हैं और विक्रेता तथा खरीदार के बीच सहायक का काम करती हैं. वस्तु सूची आधारित मॉडल में ई-कॉमर्स कंपनी खुद उन सामान और सेवाओं की मालिक होती है जो सीधे उपभोक्ताओं को बेची जाती हैं. डीआइपीपी ने साफ कर दिया कि मार्केटप्लेस कंपनी को उन विक्रेताओं के साथ लेन-देन की इजाजत दी जाएगी जो उसके प्लेटफॉर्म पर बी2बी आधार पर रजिस्टर होंगे.
पैसे की तंगी
क्या इसे इस क्षेत्र में समझदारी का, ई-कॉमर्स कंपनियों की तरफ से ज्यादा बारीक नजरिए का संकेत कहा जा सकता है? शायद हां. मगर यह एक ऐसे वक्त में आया है, जब काफी मुश्किलें पेश आ रही हैं. उद्यम पूंजीपतियों और शेयर पूंजी के नए खिलाडिय़ों ने पिछले 10 साल में भारत की 2,000 से ज्यादा स्टार्ट-अप कंपनियों को धन का सहारा दिया है. वे अपनी पूंजी के बदले बड़ा धमाका चाहते हैं. केपीएमजी और सीबी इनसाइट्स का एक अध्ययन कहता है कि निजी शेयर पूंजी और वीसी कंपनियों ने भारतीय स्टार्ट-अप में मार्च में खत्म होने वाली तिमाही में 7,682 करोड़ रु. लगाए, जो दिसंबर 2015 की तिमाही से 24 फीसदी कम है. अमेरिका स्थित म्यूचुअल फंड टी. रोव प्राइस ने फ्लिपकार्ट में दिसंबर 2014 में 668 करोड़ रु. निवेश किए थे. उसने अप्रैल में कंपनी में अपने शेयर 15 फीसदी घटा दिए. जुलाई में उसने फिर अपने शेयरों का मूल्य 20 फीसदी तक कम कर दिया. यहां तक कि तब भी जब ई-रिटेल कंपनी ने कहा था कि वह खर्चे घटाने के लिए 300-600 नौकरियों में कटौती कर रही है.
शेयरों का मूल्य घटाने का मतलब यह है कि कंपनी के कुल मूल्य निर्धारण को घटा देना, जिससे शेयरों की बिक्री की हालत में वे संभावित खरीदार के लिए और भी सस्ते हो जाएंगे. यह फ्लिपकार्ट के लिए फरवरी 2016 के बाद तीसरा बड़ा झटका था, जब एक और निवेशक मॉर्गन स्टेनली ने अपने शेयरों का मूल्य 27 फीसदी तक घटा दिया. इस बीच, बताते हैं कि निवेशक स्नैपडील में प्रोमोटरों की चाही गई कीमतों पर नई रकमें झोंकने से परहेज कर रहे हैं. एक निजी इक्विटी कंपनी मैट्रिक्स पार्टनर्स के एमडी अविनाश बजाज कहते हैं, ''यह सेंटीमेंट और रुख में गिरावट है. ई-कॉमर्स के क्षेत्र में बेसिर-पैर का वह उछाह नीचे आ गया है... निवेशक पूरी तरह चौकन्ने हो गए हैं. ''
अभी तक ज्यादातर कामयाब स्टार्ट-अप कंपनियों का राजस्व उनकी भारी छूटों की पेशकश की बदौलत आ रहा था. बदले में वे निवेशकों की दरियादिली से चल रही थीं. अब इसमें तब्दीली तय है. इसे बदलना ही है, क्योंकि अब वक्त आ गया है जब ई-कॉमर्स कंपनियों को टिकाऊ मॉडल पर ध्यान देना होगा, जिससे मुनाफों में भी स्थिरता आएगी. फिलहाल तो हालत नाउम्मीदी की है. कोटक इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज का एक अध्ययन बताता है कि चोटी की 22 ई-कॉमर्स कंपनियों का मिला-जुला राजस्व 2014-15 के वित्त वर्ष में 191 फीसदी बढ़ा, जबकि उनका कुल घाटा 264 करोड़ रु. से छलांग लगाकर 7,900 करोड़ रु. पर पहुंच गया.
अब अच्छी बातें. भारत ई-कॉमर्स के जोरदार बाजारों में से एक है. देश में 27.7 करोड़ इंटरनेट ग्राहक हैं जो चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी तादाद है. अगले पांच साल में इसके दोगुना हो जाने की उम्मीद है. ऑनलाइन खरीदारी का काफी बड़ा हिस्सा मोबाइल फोन के जरिए होता है. रिसर्च फर्म आइडीसी का कहना है कि मार्च 2016 में खत्म तिमाही में 23.50 करोड़ ग्राहकों के साथ भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाजार है. एक और रिसर्च फर्म फॉरेस्टर बताती है कि भारत में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले केवल 14 फीसदी (करीब 3.50 करोड़) लोग ऑनलाइन खरीदारी करते हैं और 2018 तक यह तादाद बढ़कर 12.80 करोड़ हो जाएगी. उद्योगों की संस्था एसोचैम के मुताबिक, भारत का ई-कॉमर्स क्षेत्र 2015 के साल में 1.53 लाख करोड़ रु. का था और 2016 के आखिर में यह 2.53 लाख करोड़ रु. पर पहुंच जाएगा.
घरेलू खिलाड़ी तो छोड़ ही दें, ऑनलाइन खुदरा बिक्री की अमेजन और ई-बे सरीखी विदेशी कंपनियां भी इसके हिस्से पर नजरें गड़ाए हैं. अमेजन तीन साल पहले भारत में दाखिल हुई थी. यह न केवल भारी-भरकम निवेशों (संस्थापक जेफ बेजोस ने इस साल जून में 20,000 करोड़ रु. से ज्यादा झोंकने का ऐलान किया) का वादा कर रही है, बल्कि आखिरी छोर तक मजबूत बुनियादी ढांचा खड़ा कर रही है और ज्यादा तेजी से उत्पाद पहुंचाना पक्का कर रही है. जनवरी 2016 तक यह स्नैपडील को पीछे छोड़कर देश की दूसरी सबसे बड़ी ऑनलाइन खुदरा कंपनी बन गई (फ्लिपकार्ट सबसे बड़ी बताई जाती है). विक्रेता कमिशन, विज्ञापन राजस्व और अपने ई-रीडर किंडल की बिक्री से कमाने वाली यह कंपनी 2015-16 में दरअसल पिछले वित्त वर्ष की बनिस्बत छह गुना बढ़ी है. 2015 में तमाम ई-कॉमर्स कंपनियों में इसके पोर्टल पर सबसे ज्यादा लोग आए और सबसे तेजी से बढ़ता शॉपिंग ऐप भी इसी का था.
अमेजन इंडिया के एमडी अमित अग्रवाल कहते हैं, ''भारत में ई-कॉमर्स के जीवनकाल का यह बहुत शुरुआती दौर है और भारत में अमेजन के जीवनकाल की यह हमारी बिल्कुल शुरुआत ही है. '' वे आगे कहते हैं, ''हम क्या काम करना चाहते हैं और क्या हासिल करना चाहते हैं, इसको लेकर हमारा नजरिया भी काफी दूर तक देखने वाला है. हम भारत में खरीद और बिक्री के बुनियादी तौर-तरीकों को बदल देना चाहते हैं और ऐसा करते हुए लोगों की जिंदगी के कायापलट में अपना थोड़ा-सा योगदान देना चाहते हैं. ''
अग्रवाल मानते हैं कि उनकी कंपनी 5.5 करोड़ उत्पादों के साथ भारत का सबसे बड़ा ऑनलाइन स्टोर है. इसके 'फुलफिलमेंट' यानी पूर्ति केंद्रों (गोदाम के लिए उद्योग में इस्तेमाल किया जाने वाला खास लफ्ज) पर बाहर भेजे जाने के लिए तैयार 1.3 अरब उत्पाद हैं. अग्रवाल कहते हैं, ''तादाद के लिहाज से यह सबसे बड़ा संकलन है और इसे लेकर हम बेहद उत्साहित हैं. '' जहां तक कम कीमतों की बात है तो यहां भी कंपनी उसी उसूल पर चलती है, जिसका वह दुनिया भर में पालन करती है. वह उसूल है—विक्रेताओं के लिए सस्ती संचालन लागत. कंपनी 10 सूबों में 21 पूर्ति केंद्रों की मालिक है. इस साल जुलाई में कंपनी ने हरियाणा के सोनीपत में अपना सबसे बड़ा फुलफिलमेंट सेंटर खोला है, जो 2,00,000 वर्ग फुट में फैला है और जिसकी क्षमता 8,00,000 घन फुट से ज्यादा है.
इस बीच फ्लिपकार्ट ने पिछले साल पिक-अप स्टोर शुरू किए ताकि ग्राहक अपनी सुविधा के वक्त पर आकर डिलिवरी पार्सल ले जा सकें. उसका मंसूबा 10 से ज्यादा शहरों में ऐसे 20 केंद्र खोलने का है. कंपनी का सबसे बड़ा गोदाम हैदराबाद के बाहरी छोर पर 2,20,000 वर्ग फुट जमीन पर बना है, जिसकी भंडारण क्षमता तकरीबन 6,00,000 घन फुट है. इसके स्वचालित केंद्र अपने कामकाज को बढ़ाने और ग्राहकों को बेहतर सेवा देने में मदद करते हैं और जिले में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 17,000 नौकरियां भी पैदा करते हैं. इसके संचालन तंत्र की शाखा ई-कार्ट ने उपभोक्ताओं तक बेहतर पहुंच के लिए मुंबई के डिब्बावालों से हाथ मिलाया है.
स्नैपडील का पोर्टल भारत की 10 क्षेत्रीय जबानों में है और इसने पिछले 18 महीनों में अपने संचालन और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूती देने के लिए 2,000 करोड़ रु. से ज्यादा का निवेश किया है. इसके 63 फुलफिलमेंट केंद्र हैं जो 25 शहरों में फैले हैं और इसने 10 शीर्ष शहरों में 'इंटीग्रेटेड वन-टच लॉजिस्टिक्स सेंटर' खोले हैं. कंपनी के एक प्रवक्ता कहते हैं, ''हमने अपने सबसे शानदार स्नैपडील प्लस (एसडी+) कार्यक्रम को मजबूत किया है, जो हमारे केंद्रों से बाहर भेजे जा रहे तमाम उत्पादों पर शुरू से आखिर तक नजर रखते हुए उत्पादों की गुणवत्ता और पैकेजिंग की छानबीन करता है. '' पैकेजिंग की गुणवत्ता ऑनलाइन खरीदारी में महत्वपूर्ण कारक है.
छूट के नए नियमों के लागू होने के बाद ई-रिटेल कंपनियों के लिए ग्राहक हासिल करना और कितना चुनौतीपूर्ण हो गया है? अमेजन के अग्रवाल कहते हैं, ''जब हमारे पास कम कीमतों, ऊंची बिक्री और कमतर खामियों का तिहरा फायदा था, तब हर बिक्री पर ज्यादा खालिस रुपया बनाते थे. इसे कम कीमतों के रास्ते से वापस लौटा दिया जाता था और यह भारत में 'रोजमर्रा की कम कीमतों' के लिए हमारा टिकाऊ तरीका है. ''
कुछ ई-टेलरों का कहना है कि उन्होंने छूट पर कभी ध्यान नहीं दिया. लेकिन ज्यादातर कंपनियां छूट देती हैं. डिजिटल विज्ञापन कंपनी पिनस्टोर्म के संस्थापक और शुरुआती दौर के स्टार्ट-अप उद्यमी महेश मूर्ति ने पहले एक इंटरव्यू में इंडिया टुडे से कहा था कि भारत की ई-रिटेल कंपनियां भारी छूट देकर खुद को कगार पर धकेल रही हैं और यह टिकाऊ मॉडल नहीं है. उन्होंने कहा था, ''कंपनियां बर्बादी के फेर में पड़ गई हैं, जो खुदकुशी के बराबर है. बस एक अमेजन का मामला अलग है. पूरे इतिहास में किसी ने भी छूट और रियायतों से पैसा नहीं बनाया. ''
स्टार्ट-अप कंपनियों के एक सक्रिय निवेशक नाम का खुलासा न करने की गुजारिश के साथ कहते हैं कि ज्यादातर ई-टेलर कीमतों पर छूट देते हैं, हालांकि वे यह कभी कुबूल नहीं करते. रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आरएआइ) ने मई, 2015 में ई-कॉमर्स कंपनियों को आड़े हाथों लिया, जब उसने ऑनलाइन खुदरा कंपनियों के खिलाफ विदेशी निवेश के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए दिल्ली हाइकोर्ट में मुकदमा किया था. मूर्ति कहते हैं, ''छूट और रियायतें तकलीफदेह हैं क्योंकि ये कंपनियां ग्राहकों को कम कीमतों का आदी बना रही हैं और कीमतें बढ़ाते ही वे उन्हें गंवा देंगी. '' अमेजन ने अरसा पहले यह जान लिया था कि 'रोज कम दाम' सबसे सेहतमंद मॉडल है, जिसका मतलब है कि दाम आमतौर पर कम हों. यही कारगर रणनीति है. बहुत धीरे-धीरे आप दूसरों को भी इसी में आते देखेंगे क्योंकि ई-कॉर्मस में यही अकेली टिकाऊ रणनीति है. ''
टिकाऊपन ही वह लक्रज है, जो ई-कॉमर्स के शब्दकोष में सबसे अहम होता जा रहा है. कैलिफोर्निया स्थित एक स्टार्ट-अप कंपनी मिनर्वा स्कूल्स के संस्थापक और सीईओ बेन नेल्सन कहते हैं, ''कारोबार की कुंजी उसका टिकाऊ होना है. '' उनका मानना है कि टिकाऊपन से ही वृद्धि में निवेश मुमकिन है.
मैट्रिक्स पार्टनर्स के बजाज कहते हैं कि आने वाले समय में भारत में ई-कॉमर्स बहुत तेजी से बढ़ता रहेगा क्योंकि इसे बढ़ाने वाली ताकतें अभी बची हुई हैं और आने वाले समय में इनकी संख्या में इजाफा होगा. अब ज्यादा से ज्यादा ग्राहक ऑनलाइन खरीदारी कर रहे हैं और मोबाइल इसका अव्वल जरिया बनता जा रहा है. तो भी कंपनियां आत्मतुष्ट और गाफिल नहीं हो सकतीं. जमे-जमाए खिलाडिय़ों के लिए इसे मुनाफेदार बनाए रखने पर जोर देने का वक्त आ गया है. कोई भी आखिरकार लंबे वक्त तक कारोबार के बुनियादी उसूलों की अनदेखी करना गवारा नहीं कर सकता.