
अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है और कर्ज लौटाने की उम्मीद घटती जा रही है, बावजूद इसके देश के बैंक टॉप 20 कर्जदारों को भारी भरकम लोन बांटकर जोखिम बढ़ा रहे हैं. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के मुताबिक केवल 20 कर्जदारों को बैंकों ने 13 लाख करोड़ से ज्यादा के कर्ज बांटे हैं. यानी देश भर में कुल 100 रुपये के लोन में से 16 रुपये टॉप 20 कर्जदारों को दिया गया है.
यह जानकारी रिजर्व बैंक ने इंडिया टुडे की डाटा टीम डीईयू के RTI के जवाब में दी है. रिजर्व बैंक ने कहा है कि वित्तीय साल 2019 में टॉप 20 कर्जदारों पर कुल 13.55 लाख करोड़ रुपये बकाया है.
देश के टॉप 20 कर्जदारों पर न केवल भारी-भरकम लोन बकाया है, बल्कि उनका बकाया लोन बाकी लोगों के कर्ज के मुकाबले दोगुने स्पीड से बढ़ा है. वित्तीय साल 2018 में बैंकों का कुल बकाया कर्ज 76.88 लाख करोड़ रुपये थी जो 2019 में करीब 12 फीसदी बढ़ोतरी के साथ 86.33 लाख करोड़ रुपये हो गई. लेकिन इस दौरान 20 कर्जदारों के लोन में करीब 24 फीसदी बढ़ोतरी हुई और वह 10.94 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 13.55 लाख करोड़ रुपये पहुंच गई.
उद्योग जगत के कुल कर्ज का आधा हिस्सा केवल 20 कर्जदारों के पास
अगर हम इन टॉप 20 कर्जदारों के लोन की तुलना उद्योग जगत से करें तो कुल उद्योग जगत को जितने कर्ज दिए गए उसका करीब आधा हिस्सा इन प्रभावशाली कर्जदारों को दिया गया. वित्तीय साल 2019 में उद्योग जगत पर कुल 28.85 लाख करोड़ का कर्ज बकाया था. उद्योगों में भी अगर हम छोटे, मध्यम और लघु उद्योगों के बकाया कर्ज की बात करें तो इन 20 कर्जदारों के ऊपर तीगुनी रकम बकाया है. वित्तीय साल 2019 में छोटे, मध्यम और लघु उद्योगों पर 4.74 लाख करोड़ रुपये का कर्ज बकाया था.
एक्सपर्ट का कहना है कि कर्ज का इस तरह से केंद्रीकरण होना अर्थव्यवस्था के लिए घातक है. डलास स्थिति यूनिवर्सिटी ऑफ डलास के प्रोफेसर सुमित मजुमदार ने इंडिया टुडे से कहा कि 'कर्ज के केंद्रीकरण का सबसे ज्यादा नकारात्मक असर छोटे और मध्यम उद्योगों पर पड़ता है क्योंकि उनके लिए फंड की किल्लत हो जाती है जो कि उनके कारोबार के लिए मुश्किलें खड़ी कर देता है. भारत में करीब 10 करोड़ छोटे एंव मध्यम लघु उद्योग हैं जो 30 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं, जबकि बड़े उद्योग करीब एक करोड़ नौकरियां पैदा करते हैं. ये छोटे उद्योग ही है जिनपर कर्ज के केंद्रीकरण का सबसे बुरा असर पड़ता है.'
अर्थव्यवस्था में हैं किस तरह की चुनौतियां
भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी है और ऐसे में लिए गए कर्ज और उसके ब्याज को चुकाना मुश्किल है. एक्सपर्ट मानते हैं कि ब्याज की औसत दर सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के बराबर या आसपास होनी चाहिए. 2019 के वित्तीय साल में औसत ब्याज दर 10 फीसदी के आसपास रही, जबकि जीडीपी 6.6 फीसदी दर्ज की गई. करीब ढाई फीसदी का यही अंतराल वास्तविक अर्थव्यवस्था को कुतरना शुरू करता है. वित्तीय साल 2020 के शुरुआत महीनो में तो जीडीपी 5 फीसदी पर सिमट गई है.
जीडीपी और ब्याज दरों के अंतर को दूर करने के लिए बैंक और सरकार कई तरीके अपनाते हैं, जिसमें सबसे ज्यादा पॉपुलर ब्याज दरों में कटौती है. लेकिन अब यह कम ब्याज दर भी मुसीबत बनती जा रही है.
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ ने एक रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया की आठ सबसे ताकतवर देशों की कंपनियां ने सस्ते लोन रेट के बाद इतना कर्ज लिया है कि करीब 19 ट्रिलियन डॉलर का लोन मुश्किल में आ गया है. कोष आगे कहता है कि अगर 2008 में आई मंदी के आधे के बराबर भी अर्थव्वस्था गिरती है तो ये सारे लोन डूब जाएंगे.
मंदी का क्या होगा असर?
आईएमएफ की Global Financial Stability Report तैयार करने वाले दो अधिकारियों तोबियस अद्रियन और फैबियो नटालुसी का कहना है 'हमने अर्थव्यवस्था में मंदी का का अनुमान लगाने की कोशिश की है. पहला तो यह कि अगर 2008 के मंदी के आधे के बराबर अर्थव्यवस्था डूबती है तो क्या होगा. हमने पाया कि कंपनियों की आमदनी इतनी घट जाएगी कि वे लिए गए कर्ज और उसके ब्याज को चुका नहीं पाएंगी. जोखिम वाले कर्ज की दायरा 19 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा.'
इसी रिपोर्ट में आईएमफ ने कहा है कि भारत सहित ब्राजील, कोरिया और टर्की जैसे देशों का बैकिंग सिस्टम भी बड़े जोखिम का सामना कर रहा है. मैकेंजी एंड कंपनी ने भी भारत सहित 11 देशों की कुल 23000 कंपनियों के बहीखाते को खंगाला और पाया कि 2007 और 2017 के बीच कंई कंपनियां कर्ज और ब्याज चुकाने के बराबर कमाई नहीं कर पा रही हैं.
किसी बैंक में कर्ज पर रोक है तो कुछ बंद हो गए हैं. कुल मिलाकर भारतीय वित्तीय संस्थान दबाव में हैं ऐसे में चुनिंदा लोगों को भारी-भरकम लोन आर्थिक संकट को और घातक बनाने के लिए न्योता देने जैसा है.