
सरकारी खजाने की कमजोर स्थिति का हवाला देते हुए वैश्विक रेटिंग एजेंसी फिच रेटिंग्स ने भारत के लिए अपनी सरकारी रेटिंग बीबीबी- पर अपरिवर्तित रखी साथ ही भावी परिदृश्य को स्थिर बताया. वर्तमान रेटिंग का स्तर निवेश कोटि में सबसे नीचे है ओर इस अमेरिकी एजेंसी ने भारत को यह एजेंसी लगभग एक दशक पहले दी थी और तब से इसमें कोई बदलाव नहीं किया है.
प्रमुख बैंकर दीपक पारेख ने हैरानी जताई कि आर्थिक व राजनीतिक मोर्चे पर इस तरह की मजबूत बुनियाद वाले देश को इतनी निम्न रेटिंग कैसे दी जा सकती है. एजेंसी का कहना है कि कमजोर वित्तीय स्थिति तथा कठिन कारोबारी माहौल को देखते हुए उसने भारत की सरकारी रेटिंग को अपरवर्तित रखा है. भारत को दी गई बीबीबी- की रेटिंग निवेश वर्ग की सबसे निम्न कोटि की साख है. इंडिया की बीबीबी- की यह रेटिंग निवेश ग्रेड रेटिंग में सबसे नीचे वाली ग्रेडिंग में है और जंक ग्रेड से सिर्फ एक पायदान उपर है.
एजेंसी का अनुमान कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर वित्त वर्ष 2017 व 2018 में बढ़कर 7.7 फीसदी हो जाएगी जो कि वित्त वर्ष 2016 में 7.1 फीसदी थी. भारत में सरकार व अनेक विश्लेषक वैश्विक एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली रेटिंग पर सवाल उठाते रहे हैं और उनका तर्क है कि बीते कुछ वर्षों में देश की आर्थिक बुनियाद में महत्वपूर्ण बदलाव हुआ है लेकिन उक्त रेटिंग एजेंसिया इस पर जैसे ध्यान ही नहीं दे रही हैं.
उल्लेखनीय है कि सरकार ने अपनी आर्थिक समीक्षा 2017 में भी चीन की तुलना में भारत की रेटिंग तय करने में भिन्न मानकों का पालन करने के लिए रेटिंग एजेंसियों की आलोचना की थी. इसमें कहा गया था कि ये एजेंसियां जीएसटी जैसी सुधारों को अपनी गणना में शामिल नहीं कर रही जो कि उनकी खराब साख को ही परिलक्षित करता है.
फिच ने इससे पहले भारत की सरकारी रेटिंग को एक अगस्त 2006 में बीबी प्लस से बीबीबी- स्थिर परिदृश्य के साथ किया था. बाद में 2012 में उसने इसे बदलकर नकारात्मक किया और उसके अगले साथ स्थिर परिदृश्य वाला कर दिया. फिच ने एक नोट में कहा है, सरकारी बांडों की बीबीबी- रेटिंग में मजबूत मध्यावधि वृद्धि पदिृश्य तथा अनुकूल बाह्य संतुलनों के साथ साथ कमजोर राजकोषीय स्थिति तथा कठिन व्यावसायिक वातावरण के बीच बीच संतुलन साधने वाली है. फिच ने कहा है, हालांकि, ढांचागत सुधार एजेंडे के लगातार विस्तार व कार्यानवयन के साथ कारोबार के माहौल में क्रमिक सुधार की संभावना है.
इसके अनुसार सरकार लगभग तीन साल से अपने महत्वाकांक्षी सुधार एजेंडे का लगातार कार्यान्वयन कर रही है और सतत सुधारों को प्रतिबद्ध है. एजेंसी के अनुसार, सुधार कार्यक्रम का निवेश व वास्तविक जीडीपी वृद्धि पर असर इस बात पर निर्भर करेगा कि इसका कार्यान्वयन कैसे किया जाता है और सरकार अब भी कमजोर व्यापारिक माहौल को बेहतर बनाने के लिए अपने मजबूत अभियान को कितना जारी रख पाती है.