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एक साल में अमेरिका से 800 ज्यादा फिल्में बनाकर भी क्यों पीछे है भारत?

दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने की कीर्तिमान भारत के नाम पर है. भारत में 20 से भी ज्यादा भाषाओं में हर साल करीब 1500 से 2000 फिल्में बनाई जाती हैं. इतनी फ़िल्में बनाने के बावजूद फिल्मों से भारत की सालाना आय उन देशों से बहुत कम है जो भारत की तुलना में आधी फ़िल्में भी नहीं बना पाते हैं. इस कमी की बहुत सारी वजहें हैं.

दंगल, स्पाइडरमैन दंगल, स्पाइडरमैन
स्वाति पांडे
  • नई दिल्ली,
  • 30 जनवरी 2018,
  • अपडेटेड 3:54 PM IST

दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्में बनाने की कीर्तिमान भारत के नाम पर है. भारत में 20 से भी ज्यादा भाषाओं में हर साल करीब 1500 से 2000 फिल्में बनाई जाती हैं. इतनी फ़िल्में बनाने के बावजूद फिल्मों से भारत की सालाना आय उन देशों से बहुत कम है जो भारत की तुलना में आधी फ़िल्में भी नहीं बना पाते हैं. इस कमी की बहुत सारी वजहें हैं.

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एक साल में करीब 1500 फ़िल्में बनाने वाली भारतीय फिल्म इंडस्ट्री की सालाना आय करीब 2.1 अरब डॉलर (13,800 करोड़ रुपये) है. जबकि अमेरिका और कनाडा साल में सिर्फ 700 फिल्में बनाकर भी आय के मामले में भारत से बहुत आगे हैं. आर्थिक रिपोर्ट्स की मानें तो अमेरिका और कनाडा के फिल्म इंडस्ट्री की सालाना आय करीब 11 अरब डॉलर है. यह भारत के मुकाबले पांच गुना से ज्यादा है.

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भारतीय फिल्म इंडस्ट्री का मुनाफा साल-दर-साल 11.5% बढ़ने की संभावना है. industry lobby PHD Chamber and bed & breakfast accommodations aggregator BnBNation की रिपोर्ट के मुताबिक, मौजूदा रफ़्तार से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री 2020 तक 3.7 बिलियन डॉलर (23,800 करोड़ रुपये) का व्यापार बन जाएगी.

भारतीय फिल्म उद्योग को तमाम तरह की चुनौतियों का मुकाबला करना होता है. लाइसेंस, अप्रूवल और सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया महत्वपूर्ण है. मसलन एक निर्माता को फिल्म बनाने के लिए 70 अप्रूवल और लाइसेंस की प्रक्रिया में 30 अथॉरिटीज से गुजरना होता है. दूसरी और किसी विदेशी फिल्म निर्माता को भारत में शूट से पहले सूचना और प्रसारण मंत्रालय की मंजूरी लेना जरूरी है. किसी फिल्म के वितरण और उसे दर्शकों तक पहुंचाने में भी तमाम तरह की दिक्कतें हैं, जो एक फिल्म के व्यवसाय पर प्रभावी होती हैं.  फिल्म इंडस्ट्री, केंद्रीय बजट में उन तमाम सहूलियतों की उम्मीद कर रही है जो उसकी जरूरत है.

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इन वजहों से भारतीय फिल्म इंडस्ट्री पीछे है क्या सुधरेंगे हालात?

#1) भारत में स्क्रीन्स की कमी

भारत में 96,300 नागरिकों पर एक स्क्रीन है. यूएस में एक स्क्रीन पर 7,800 नागरिक हैं. चीन में 45,000 नागरिकों पर एक स्क्रीन है. इतने कम स्क्रीन्स होने के कारण कई लोग थिएटर में फिल्म देखने से वंचित रह जाते हैं.

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#2)सिंगल स्क्रीन्स की अधिकता

देश के 13 हजार स्क्रीन्स में 10 हजार स्क्रीन्स सिंगल स्क्रीन्स हैं, जिसमें टिकट के दाम कम होते हैं. इससे भी फिल्म इंडस्ट्री को घाटा होता है.

#3) टैक्स

भारत में फिल्मों पर टैक्स भी बहुत लगता है. यहां की फिल्मों को सर्विस टैक्स और एंटरटेनमेंट टैक्स दोनों देना पड़ता है.

#4) पाइरेसी

भारत में फिल्मों की पाइरेसी भी बहुत होती है. सोशल मीडिया या डीवीडी पर फिल्में आसानी से मिल जाती हैं. कई फिल्में तो रिलीज से पहले ही लीक हो जाती हैं. ऐसे में फिल्मों के कलेक्शन पर असर पड़ता है.

#5) कई भाषाओं में फिल्में बनने से नुकसान

उत्तरी अमेरिका, चीन और ज्यादातर देशों में एक भाषा में फिल्में बनती हैं, लेकिन भारत में 20 से ज्यादा भाषाओं में फिल्में बनती हैं. अलग-अलग क्षेत्रों और भाषाओं की फिल्मों में प्रोडक्शन और मार्केटिंग में तो ज्यादा खर्च आता है, लेकिन मुनाफा ज्यादा नहीं होता.

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#6) टिकटें बहुत सस्ती

भारत में फिल्मों की टिकटें दूसरे देशों की फिल्मों की टिकटों से बहुत कम होती हैं. सरकार ने कुछ जगहों पर टिकट के दाम बहुत सस्ते रखे हैं. तमिलनाडु में टिकटों के दाम 120 रुपये से ज्यादा नहीं हो सकते.

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