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ट्रेन में मिलते हैं गंदे कंबल-तकिये, महीनों तक नहीं होती है धुलाई

बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने वाली सुरेश प्रभु की रेलवे अपने रेल यात्रियों को महीनों तक ना धोए गए कंबल औढ़ने को देती है. कैग ने ट्रेन में मिलने वाले कंबल की साफ सफाई के बारे में जारी की गई अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है.

प्रतीकात्मक प्रतीकात्मक
सिद्धार्थ तिवारी
  • नई दिल्ली,
  • 22 जुलाई 2017,
  • अपडेटेड 3:31 AM IST

बुलेट ट्रेन का सपना दिखाने वाली सुरेश प्रभु की रेलवे अपने रेल यात्रियों को महीनों तक ना धोए गए कंबल औढ़ने को देती है. कैग ने ट्रेन में मिलने वाले कंबल की साफ सफाई के बारे में जारी की गई अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है.

कंबलों की दो महीने में एक बार धुलाई जरूरी

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की इस रिपोर्ट के मुताबिक, रेलवे में कई जगह कंबल की धुलाई 6 से 26 महीनों के अंतराल में की जाती है. गौरतलब है कि रेलवे बोर्ड के निर्देशों के मुताबिक, हर 2 महीने में कम से कम एक बार कंबल की ड्राई क्लीनिंग की जानी जरूरी है.

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लेखापरीक्षा ने 33 चयनित कोचिंग डिपो में रिव्यू पीरियड के दौरान कंबलों की संख्या और धुले हुए कंबल की संख्या के डाटा का अध्ययन किया. यह अध्ययन 2012-13 से 2015-16 के दौरान इस्तेमाल किए गए कंबलों पर किया गया.

कैग ने अपने अध्ययन में पाया कि 9 क्षेत्रीय रेलवे के 14 चुने गए कोचिंग डिपो में कोई कंबल ड्राइ वॉश नहीं किया गया था. इसके अतिरिक्त पांच क्षेत्रीय रेलवे के 7 डिपो को छोड़कर किसी भी चुने गए डिपो में लिनेन की सफाई नहीं की गई थी.

ठेकों का भारी उल्लंघन उजागर

दक्षिण मध्य रेलवे में क्लोरो इथिलीन संचालित ड्राई क्लीनिंग मशीनों से ऊनी कपड़ों की ड्राई क्लीनिंग के लिए सभी धुलाई ठेकों में एक विशिष्ट क्लॉज जोड़ा गया था. इसके बावजूद उपरोक्त ठेका प्रावधान के उल्लंघन में ऊनी कंबलों को धोया जा रहा था.

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तीन क्षेत्रीय रेलवे उत्तर मध्य रेलवे, मध्य रेलवे और पश्चिम रेलवे में संयुक्त जांच के दौरान यह देखा गया कि प्रत्येक महीने कंबल की ड्राई क्लीनिंग के लिए ठेके में प्रावधान दिए गए थे, लेकिन यह मासिक रूप से नहीं किया गया था. इसी प्रकार दक्षिण पूर्व रेलवे में 1 महीने में दो बार धुलाई का प्रावधान था, परंतु ऐसा नहीं किया जा रहा था.

6 से 26 महीनों के अंतराल पर कंबंलों की सफाई

कंबल की सफाई और रोगाणुनाशक के प्रयोग के लिए कोई प्रावधान नहीं किए गए थे. लेखापरीक्षा ने पाया की 35 कोचिंग डिपो में से कंबलों की सफाई का प्रावधान पांच क्षेत्रीय रेलवे के केवल 6 डिपो के लिए ठेकों में मौजूद थे. हालांकि उत्तर रेलवे के दो डिपो के ठेकों में इसका कोई प्रावधान नहीं था. कंबलों को हॉट एयर तरीके से 30 दिन और 15 दिन के अंतराल पर साफ किया जाता था, लेकिन कंबल की भाप से सफाई या रसायन से सफाई नहीं की जाती थी.

कैग ने अपनी जांच में यह पाया 2015-16 के दौरान 8 क्षेत्रीय रेलवे के 12 कोचिंग डिपो के संबंध में यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि यहां पर 6 से 26 महीनों के अंतराल के बाद कंबल को धोया गया था.

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तकिये तो धुले ही नहीं!

यह तो हुई कंबल की बात अब बात करते हैं रेलवे में मिलने वाले तकिए की धुलाई और सफाई की. मार्च 2016 में रेलवे बोर्ड ने निर्देश दिए कि तकियों की धुलाई प्रत्येक 6 महीने में या जरूरत पड़ने पर पहले भी कम से कम एक बार की जानी चाहिए ताकि प्रत्येक यात्री को साफ तकिये उपलब्ध कराए जा सके. मार्च 2016 से पहले तकिये की धुलाई के संबंध में कोई निर्देश नहीं दिए गए थे.

इसके बावजूद जहां धुलाई योग्य तकिये खरीदे गए उन तकियों की धुलाई की जानी थी. लेकिन कैग ने यह पाया कि निर्देशों के अभाव में समीक्षा की अवधि के दौरान दो क्षेत्रीय रेलवे को छोड़कर किसी भी दूसरे क्षेत्रीय रेलवे में तकिए नहीं धोए गए.

इस तरह कैग ने अपनी जांच में पाया कि रेलवे में कंबल और तकिये की यात्रियों को आपूर्ति कर आने से पहले काफी लंबी अवधि तक ना तो इनको ड्राइक्लीन किया गया और ना ही इनकी सफाई की गई.

 

 

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