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हर औरत को मालूम होने चाहिए ये अध‍िकार

concent यानी कि स्वीकृति. छोटा सा शब्द है, फिर भी कुछ लोग शायद इसका अर्थ समझ नहीं पाते. पिछले दिनों आई फिल्म 'पिंक' में इस शब्द के मायने खूब अच्छी तरह समझाए गए हैं. देश में महिलाओं और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए बहुत से कानून बनाए गए हैं. हर महिला को उससे अवेयर होने की जरूरत है. तभी तो वो अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा पाएंगी.

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मेधा चावला
  • नई दिल्ली,
  • 16 दिसंबर 2016,
  • अपडेटेड 5:55 PM IST

आज जब हम महिला सशक्त‍िकरण की बात करते हैं, तो यह समझ लेना जरूरी है कि सिर्फ नौकरी करने या स्वावलंबी होने से ही महिलाएं सशक्त नहीं बन सकतीं.
इसके जरूरी है कि उन्हें अपने अधिकारों के बारे में भी मालूम हो. पर क्या भारत की शतप्रतिशत महिलाएं अपने संवैधानिक और कानूनी अधिकारों के बारे में जानती हैं. नहीं. एक सर्वे के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 65 फीसदी महिलाओं को अपने कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के बारे में कोई जानकारी नहीं है. वहीं 33 प्रतिशत महिलाओं को अपने अधिकारों के बारे में आधी अधूरी जानकारी है. ऐसी महिलाएं पूरे देश में सिर्फ 2 फीसदी हैं, जिन्हें अपने अधिकारों की पूरी जानकारी है.

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भारत की 120 करोड़ की आबादी में 30 से 40 प्रतिशत महिलाएं हैं. पर उनमें सिर्फ 2 प्रतिशत महिलाओं को अपने अधिकारों की जानकारी होना, महिला सशक्त‍िकरण के बीच का सबसे बड़ा रोड़ा है. यहां हम कुछ ऐसे अधिकारों और कानूनों के बारे में बता रहे हैं, जिनसे हर महिला को अवेयर होना चाहिए.

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Zero एफआईआर 
इस अधिकार के तहत कोई भी औरत छेड़छाड़ या रेप की शिकायत किसी भी शहर के किसी भी पुलिस स्टेशन से कर सकती है. आमतौर पर यह देखा जाता है कि पुलिस स्टेशन जुर्म की उन वारदातों की एफआईआर नहीं लिखते, जो उनके क्षेत्र में नहीं होते. एक बार किसी भी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज होने के बाद, उस पुलिस थाने का कोई सीनियर पुलिस अधिकारी या एसएचओ खुद उस एफआईआर को उस थाना क्षेत्र में जाकर दर्ज कराएगा, जहां से घटना संबंधित है.

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प्राइवेसी का अधिकार 
क्र‍िमिनल प्रोसेड्योर कोड के अंडर सेक्शन 164 के तहत रेप मामले में एक महिला अपना स्टेटमेंट मैजिस्ट्रेट के सामने अकेले में रिकॉर्ड कर सकती है. इसके अलावा वह किसी लेडी कॉन्सटेबल या पुलिस ऑफिसर के सामने भी स्टेटमेंट रिकॉर्ड कर सकती है. यह उस पर निर्भर करता है कि वह अपना स्टेटमेंट किस तरह देना चाहती है.

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फ्री कानूनी मदद 
पुलिस स्टेशन जाकर कोई भी महिला नि:शुल्क कानूनी मदद मांग सकती है.

ईमेल या चिट्ठी से एफआईआर 
महिला अगर पुलिस स्टेशन नहीं जाना चाहती या नहीं जा पा रही है. इस केस में वो ईमेल के जरिये या चिट्ठी भेज कर भी अपनी शिकायत दर्ज करवा सकती है. चिट्ठी या ईमेल मिलते ही थाने का एसएचओ मामले की जांच कर एफआईआर फाइल करवाएगा. इसके बाद पीडि़ता अपना स्टेटमेंट घर से ही लिखा सकती है.

शिकायत कभी भी
शिकायत दर्ज कराने के लिए औरतों को इंतजार करने की जरूरत नहीं है. क्योंकि कानून के मुताबिक वो कभी भी अपनी शिकायत दर्ज करा सकती हैं. यानी थाना की पुलिस यह नहीं कह सकती कि सही समय पर शिकायत न आने की वजह से मामला दर्ज नहीं हो सकता.

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अंधेरे में अरेस्ट नहीं
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार सूरज उगने से पहले या सूरज डूबने के बाद किसी महिला की गिरफ्तारी नहीं हो सकती. महिला कॉन्सटेबल साथ हो या न हो, किसी भी हाल में एक औरत की गिरफ्तारी रात में नहीं हो सकती. गिरफ्तारी के लिए मजिस्ट्रेट का लेटर साथ होना जरूरी है कि आखिर क्यों रात में ही उस महिला की गिरफ्तारी आवश्यक है.

पुलिस स्टेशन में interrogation नहीं
अंडर सेक्शन 160 के तहत एक औरत को interrogation के लिए पुलिस स्टेशन नहीं बुलाया जा सकता. पुलिस उससे घर पर ही पूछताछ कर सकती है. पर वहां उस महिला का परिवार या उसके दोस्त और महिला कांस्टेबल का होना जरूरी है.

हर ऑफिस में हो Sexual Harassment Complaints Committee
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार ऑफिस में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए Sexual Harassment Complaints Committee होनी चाहिए. इस कमेटी के सदस्यों में 50 महिलाओं का होना जरूरी है. यदि ऑफिस में महिला के साथ यौन उत्पीड़न हुआ है तो यौन उत्पीड़न अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करनी होगी।

आंकड़ों की जुबानी
महिला उत्पीड़न और हिंसा पर आधारित एक इंटरनेशनल वुमेन एंड चाइल्ड राइट्स एनजीओ के हालिया सर्वे के नतीजे कुछ ऐसा हाल बयां करते हैं.

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  • 19 साल की उम्र से पहले दस में चार लड़कियां उत्पीड़न और हिंसा का शि‍कार हो जाती हैं.
  • 73 प्रतिशत महिलाओं ने पिछले कुछ महीनों में किसी न किसी तरह का उत्पीड़न या हिंसा सहा है.
  • 41 प्रतिशत महिलाएं ऐसी हैं जो यह बात मानती हैं कि उन्हें हाल ही में जबदस्ती उनकी मर्जी के ख‍िलाफ छूआ गया.

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