
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद अब ये साफ हो गया है कि देश का अगला राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति बीजेपी की पसंद का होगा. यही वजह है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी को अगला राष्ट्रपति बनाए जाने की अटकलें लगाई जाने लगी हैं. खबरें तो यहां तक आईं कि सोमनाथ में पिछले दिनों हुई एक मीटिंग में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आडवाणी के नाम को लेकर चर्चा की. हालांकि मीटिंग में मौजूद तमाम लोग इससे साफ इनकार कर रहे हैं.
8 मार्च को हुई थी सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिंग
1992 में लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से ही अयोध्या यात्रा की शुरुआत की थी और तब उनके सारथी मोदी ही थे. 8 मार्च को सोमनाथ ट्रस्ट की मीटिेंग सोमनाथ में हुई जिसमें नरेंद्र मोदी , बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह, सोमनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष केशुभाई पटेल, बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व चीफ सेक्रेटरी पीके लहरी के अलावा समिति ट्रस्ट के दो और सदस्य शामिल हुए. करीब एक घंटे तक चली इस मीटिंग में सोमनाथ मंदिर को लेकर तो चर्चा हुई और कई अहम फैसले लिए गए लेकिन दूसरे किसी मुद्दे पर बात नहीं हुई.
मीटिंग में नहीं हुई राष्ट्रपति पद पर चर्चा
पूर्व चीफ सेक्रेटरी पीके लहरी ने बताया कि मीटिंग में सोमनाथ ट्रस्ट के एजेंडा के अलावा किसी भी दूसरे मुद्दे को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई. केशुभाई पटेल ने भी कहा कि बैठक में राष्ट्रपति पद को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई. यहां ये भी उल्लेख करना जरूरी है कि मीटिंग से ठीक एक दिन पहले आडवाणी सोमनाथ पहुंच गए थे. उसके बावजूद वे न तो प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में मंच पर पहुंचे और न ही मोदी, केशुभाई और अमित शाह के साथ सोमनाथ मंदिर में पूजा के लिए गए. मोदी और आडवाणी के बीच की दूरियां अब छिपी बात नहीं है.
इसलिए मजबूत है आडवाणी की दावेदारी
लालकृष्ण आडवाणी पार्टी के सबसे सीनियर नेता हैं. अगर उन्हें राष्ट्रपति बनाया जाता है तो ये उनकी वरिष्ठता का सम्मान तो होगा ही, खुद मोदी और अमित शाह के लिए भी ये अच्छा फैसला हो सकता है. दरअसल मोदी पार्टी में इतने बड़े नेता हो गए हैं कि पार्टी अब बीजेपी कि जगह उनके नाम से ही जानी जाती है. ऐसे में पार्टी के दूसरे नेता जिन्हें मोदी का बढ़ता कद खटक रहा है वो आडवाणी से मिलते रहते हैं और मोदी-शाह की शिकायत करते रहते हैं. अगर आडवाणी को राष्ट्रपति बनाया जाता है तो वे इन नेताओं से दूर हो जाएंगे जो मोदी-शाह के लिए अच्छी बात होगी क्योंकि संसदीय बोर्ड का सदस्य न होने के बावजूद पार्टी में उनकी राय सुननी पड़ती है.
साभारः आईचौक